रुडयार्ड किपलिंग
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Rudyard Kipling
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जन्म जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग
३० नवम्बर १८६५
बंबई
मौत जनवरी 18, १९३६(१९३६-01-18) (उम्र 70)
लन्दन
प्रसिद्धि का कारण लधुकथा लेखन,पत्रकार,कवि

रुडयार्ड किपलिंग

रुडयार्ड किपलिंग(३० दिसम्बर १८६५ - १८ जनवरी १९३६) एक ब्रिटिश लेखक और कवि थे। ब्रिटिश भारत में बंबई में जन्मे। किपलिंग को मुख्य रूप से उनकी पुस्तक द जंगल बुक(१८९४) (कहानियों का संग्रह जिसमें रिक्की-टिक्की-टावी भी शामिल है), किम १९०१ (साहस की कहानी), द मैन हु वुड बी किंग (१८८८) और उनकी कविताएं जिसमें मंडालय (१८९०), गंगा दीन (१८९०) और इफ- (१९१०) शामिल हैं, के लिए जाने जाते हैं। उन्हें "लघु कहानी की कला में एक प्रमुख अन्वेषक" माना जाता है ।उनकी बच्चों की किताबें बाल-साहित्य की स्थाई कालजयी कृतियाँ हैं और उनका सर्वश्रेष्ठ कार्य एक बहुमुखी और दैदीप्यमान कथा को प्रदर्शित करते हैं। १९ वीं शताब्दी के अंत में और २० वीं सदी में किपलिंग अंग्रेजी के गद्य और पद्य दोनों में अति लोकप्रिय लेखकों में से एक थे। राजनैतिक और सामाजिक परिवेश के अनुसार किपलिंग की उत्तरवर्ती प्रतिष्ठा परिवर्तित हो गई थी और जिसके परिणामस्वरूप २० वीं सदी में ज्यादा तक उनके बारे में परस्पर विरोधी विचार जारी था।

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

रुडयार्ड किपलिंग का जन्म ३० दिसम्बर १८६५ में भारत के बंबई शहर में ऐलिस किपलिंग और लॉकवुड किपलिंग के यहां जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग के रूप में हुआ था जो उस समय ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था। ऐलिस किपलिंग (चार उल्लेखनीय विक्टोरियन बहनों में से एक) एक जोशपूर्ण महिला थी। लॉकवुड किपलिंग एक मूर्तिकार और मिट्टी के बर्तनों के डिजाइनर थे। यह दम्पति उस वर्ष की शुरुआत में ही भारत चले गए थे और दो साल पहले इंग्लैंड के स्टेफोर्डशायर के रूडयार्ड के रूडयार्ड झील में प्रेम संबंध में बंधे थे और उस झील की सुंदरता से इतना मोहित हुए कि उन्होंने अपने पहले जन्मे बच्चे का नाम उस झील के नाम के आधार पर रखा दिया था।किपलिंग के माता-पिता अपने को आंग्ल भारतीय मानते थे इसीलिए उनका बेटा भी आंग्ल भारतीय होगा हालांकि वास्तव में उसने अपना अधिकांश जीवन कहीं और बिताया है। जब वे पाँच साल के थे तो उन्हें और उनके बेहेन को इंग्लैंड ले जाया गया था जहा अगले छह वर्षों के लिए कैप्टन और श्रीमती होलोवे दम्पति के साथ उनके घर लोरने लॉज में रहना था। अगर श्रीमती होलोवे के हाथों उपेक्षा का अनुभव नहीं किया होता तो उनके साहित्यिक जीवन की शुरुआत तेजी से नहीं हो पाती। १८७८ में स्कूल में उनकी पढ़ाई लगभग समाप्त होने को थी और तब पता चला कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में छात्रवृति पर दाखिला प्राप्त करने के लिए उन्ह के पास शैक्षणिक योग्यता की कमी थी और उनके माता-पिता भी आर्थिक रूप से उतने समर्थ नहीं थे। इसी कारण उनके पिता ने उन्हें लाहौर में नोकरी दिलाया। नोकरी करते उन्होंने बोहोत सारि यात्राएं की जहा १८८६ में उन्होंने डिपार्मेंटल ड्यूटिज नामक अपनी कविताओं की पहली संग्रह को प्रकाशित किया था। उनका लेखन कार्य अतिउत्तेजित गति से जारी रहा।

लेखन के रूप में उनका करियर संपादित करें

उनके करियर की प्राप्ति में उन्होंने बहुत संघर्ष किया। केवल एक देश में नहीं बल्कि अलग अलग देशो में जैसे लंदन , अमेरिका और अफ्रीका। उनके करियर का शिखर तेज़ गति से बढ़ाता ही चला गया। २० वीं शताब्दी के पहले दशक में उनके लोकप्रियता को ऊंचाई पर देखा गया था। १९०७ में उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस नोबेल पुरस्कार को स्थापित किया गया था और किपलिंग पहले अंग्रेजी भाषा के प्राप्तकर्ता बने थे। दूसरे सम्मानों में उन्हें ब्रिटिश पोएट लौरिएटशिप और कई अवसरों पर नाइटहूड दी गई थी। १० दिसम्बर १९०७ को स्टॉकहोम में आयोजित पुरस्कार समारोह में स्वीडिश अकादमी के स्थायी सचिव सी. डी अफ विर्सेन ने किपलिंग और तीन शताब्दियों के अंग्रेजी साहित्य की प्रशंसा की। प्रथम विश्व युद्ध के शुरूआत में अन्य कई लेखकों की तरह किपलिंग ने भी पर्चा लिखा जिसमें ब्रिटेन के युद्ध उद्देश्यों का जोशपूर्ण समर्थन था।

प्रमुख कार्य और लेखन संपादित करें

उनके कई अनेक कार्य और लेखन है जो बहुत प्रसिद्ध हुए है। उनमें से सबसे मुख्य रूप से द जंगल बुक और अनेक कवितायें जैसे गुंगा दिन,मंडयाली, इफ आदी। उनके और भी कई सारी रचनाएँ है। उनके पुस्तकों के कई पुराने संस्करणों के कवर में कमल फूल लिए एक हाथी की तस्वीर के साथ स्वस्तिका मुद्रित है। किपलिंग के स्वस्तिका का उपयोग का आधार भारतीय सूरज प्रतीक था जो सौभाग्य और कल्याण प्रदान करता है।

भारत की प्रतिष्ठा संपादित करें

आधुनिक भारत में जहाँ उन्होंने अपने अठिकतर ठोस रचना का निर्माण किया था वह इनकी प्रतिष्ठा विशेष रूप से आधुनिक राष्ट्रवादियों और कुछ उत्तर उपनिवेशवादी आलोचकों के बीच विवादास्पद है।भारतीय परिपेक्ष्य में किपलिंग से संबंधित एक नकारात्मक पक्ष भी जुड़ा हुआ है जब जलियांवाला बाग हत्याकांड का मुख्य आरोपी जनरल डायर वापिस लंदन पहुँचा तब मॉर्निंग पोस्ट समाचार पत्र के अनुसार डायर के लिए २६,००० पाउंड की राशि जुटाई गई और इस फण्ड में सबसे बड़ा योगदान रुडयार्ड किपलिंग ने किया।

मृत्यु और विरासत संपादित करें

७० वर्षीय किपलिंग का देहांत जॉर्ज पंचम से दो दिन पहले १८ जनवरी १९३६ को छिद्रित गृहणी संबंधी घाव से हुआ। १९३० के दशक के प्रारम्भ तक किपलिंग ने अपनी लेखनी को बरकरार रखा था लेकिन उनकी गति काफी धीमी हो गई थी और पहले के मुकाबले उनकी रचनाएं कम सफल होने लगी थी। गोल्डर्स ग्रीन श्मशान मैं उनका दाह संस्कार किया गया और उनकी राख को वेस्टमिंस्टर एब्बे के साउथ ट्रांसपेट भाग के पोएट्स कॉर्नर में दफनाया गया था जहाँ कई जानी-मानी साहित्यिक हस्तियों को दफनाया या उनका स्मारक बनाया गया है।

संदर्भ संपादित करें

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