पियूष मिश्रा

            भारतीय थिएटर ने हमेशा से ही प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ अपने दर्शकों को आश्र्चर्यचकित किया है, जिन्होंने न केवल अपना दिल और आत्मा को भारतीय थियेटर के लिए समर्पित किया है बल्कि क्ला के जरिए समाज में बहुत बड़ा योगदान दिया है। और ऐसे ही एक अभिनेता पियूष मिश्रा है, जिन्होंने अपने अभ्दुत प्रदर्शन के सात हिंदी थियेटर का नाम रोशन किया है और दिल को छूने वाले श्यारियों के कौशल के सात लोगों के दिल में भी अपना स्थान बनाया है।

प्रारंभिक जीवन और पृष्टभूमि संपादित करें

पियूष मिश्रा का जन्म ग्वालियर में १३ जनवरी १९६३ को हुआ, लेकिन बाद में उनके पिता प्रताप कुमार की बड़ी बहन तारादेवी ने उनको गोद लिया।[1] पियूष मिश्रा ने कार्मेल कान्वेंट स्कूल, ग्वालियर से अपनी पढाई की जहां से उन्हों को चीत्रकला, गायन और अभिनय में रुचि पायी। एक रूढ़िवादी घ्रर में बढ़ते हुए और अस्थिर बचपन के कारण पियूष मिश्रा ने एक वीद्रोही भावना विकसित कर लिया जो स्पष्ट रूप से अनके पहमली कविता "ज़िदा हो हा तुम कोई शक नहिं, सांस लेते देखा मैंने भी है" में दिखाई दि जिसे उन्होंने ८ वीं कश्रा में लीखा था। पियूष मिश्रा प्रियकांत शर्मा के नाम से बडें हुए लेकिन उन्होंने १६ वर्ष की उम्र में आधिकारीक तौर से अपना नाम पियुष मिश्रा में बदल दिया।

थियेट्रिकल व्यवसाय संपादित करें

पियुष मिश्रा पुरी तरह से थियेटर में लिप्त हो गए, ग्वालियर के कला मंदिर और लिटल बैले ट्रौप जैसे स्थानों पर उनकी प्रतिभा की पहचान हुई। बाद में पियूष मिश्रा ने नेशनल स्कूल औफ ड्रामा, दिल्ली में सिर्फ ग्वालियर से बाहर निकलने के लिए आवेदन किया। फ्रिट्ज बैनविट्ज़ एक जर्मन निर्देशक ने पियूष मिश्रा को एनएसडी के दूसरे वर्ष के अपने नाटक का नेतृत्व करने के लिए मुख्य भूमिका बनाया। १९८६ में स्नातक होने के बाद पियूष मिश्रा ने छात्र नाटक के लिए मशरिकी हुर नाम का अपना पहला संगीत स्कोर बनाया। पियूष मिश्रा अपने नाटकीय कामं जेसे गैंगमैन दममा बजे, मणीका, कोर्ट मार्ल, कॉमेडी टेरेरो आदि के लिए जाने जाते है, उन्होंने न केवल इन नाटकों मे अभिनय किया बल्कि उनमें से कुछ नाटक लिखे भी है।

दूरदर्शन और फिल्मी व्यवसाय संपादित करें

पियूष मिश्रा ने अभिनय के प्रतिभा के साथा हिंदी दूरदर्शन की ओर रुख किया और राजधानी (१९८९), एक ख़ोज (१९८८), किले का रहस्य (१९८९) जैसी धारावाहिकों में काम किया। उन्होंने १९८९ में हिंदी सिनेमा में अपना पहला अभिनय पदार्पण मणि रत्नम व्दारा निर्देशित फिल्म दिल से से कीया[2], जहां उन्होंने सीबीआई जांच अधिकारी का किरदार निभाया। पियूष मिश्रा न केवल फिल्मों में अभिनय करते है बल्कि एक चित्रपट लेखक, गीताकार, और संगीत निर्देशक भी है। विशाल भरव्दाज की मकबूल (२००३), गुलाल (२००९), गैंगज औफ वासेपुर (२०१२) और पिंक (२०१६) जेसे फिल्मो में उनके प्रदर्शन को काफी पसंद किया गया है। दिल पे मत ले यार (२००२) उनका गीतकार के रूप में सर्वश्रेष्ट काम है।

पुरस्कार संपादित करें

पियुष मिश्रा को ज़ी सिने पुरस्कार में 'द त्राजेडी औफ भगत सिंह' के लीए सर्वोत्तम संवाद पुरस्कार से सम्मनित किया गया है, गुलाल फिल्म में सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन के लीए उनको स्टारडस्ट पुरस्कार से सम्मनित किया है, २०१४ में पियुष मिश्रा को सर्वश्रेष्ट आभिनेथा के रूप मैं जुलिएन डुबुक्वे इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल व्दारा भी सम्मानित किया गया है।

व्यक्तिगत जीवन संपादित करें

१९९२ में पियूष मिश्रा कि मुलाकात एक वास्तुकार प्रिया नारायण से स्कुल औफ प्लेनिंग ऍंड आर्किटेक्जर में एक नाटक का निर्देशन के दौरान हुई और १९९५ ने दोनों ने शादी कर ली।

मीडीया में संपादित करें

पियूष मिश्रा ने अपने नवीवतम में कहा कि उनको विधि अभिनय से सख्त़ नफ़रत है, उनका मानना है कि कलाकारों को प्रेरित होने के लिए किसी भी साधन पे निर्भर नहिं होना चाहिए बलके कला के शद्ध रूप से लोगों को प्रेरित करना चाहिए। 

अन्य रुचियां संपादित करें

पियूष मिश्रा हमेशा खुद को अलग-अलग कला रूपों में व्यस्त रखते है, परंतु अपने खाली समय में वे शायरीयों को लिखकर अपना समय बिताते है। "मै तुमसे अब कुछ नहिं मांगता ऐ कुधा, तेरी देकर छीन मेने की आदत मुझे मंज़ूर नहिं", "आज मैंने फिर से जस्बात भेजे आज तुमने फिर से अल़फाज़ ही समजे"[3] आदि उनके प्रसिद्ध शायरीया है, इससे पता लगता है कि वे कभी कला का धामन नहिं छोड़ेगे न कला उनका धामन कभी छोंड़ेगी, और एक दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में पियूष मिश्रा का नाम सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा।
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