सदस्य:Sharon Sardar/प्रयोगपृष्ठ
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भारतीय गणितज्ञ
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महेन्द्र दयाशकर गोर सूरी, सन १४ के जैन [[ऐस्ट्रोनोमर]] थे जिन्होने यन्त्रराजा लिखा था। वह मदाना सूरी के छात्र थे। उन्के पिता दयाश्न्कर और माता विमला थी। महेन्द्र सूरी जैन परिवार से थे। वे उर्मिला नामक एक महिला से शदी किए और उन्कि ४ बेटियान थी। उनकाअ नाम सुर्य के नाम से रखा गया था।
६ सदी मे जैन धर्म की व्रिद्धी हुइ। उस समय मे जैन धर्म का गणित पर एक भारी प्रभाव था। महेन्द्र सूरी इस्लामिक और सान्सक्रितिक सीख्नने की परम्परा मे मध्यस्थ का काम करते थे। उन्की लिखी हुइ किताब यन्त्रराज को ५ अध्यायो मे बाटा गया है- गनिताध्यया ऐस्ट्रोएबल के निर्मान के लिए तिगनोमेति पैरामिटर प्र्दान करती है; यन्त्रघटनाध्याया, एस्ट्रोएब्ल के विभिन्न भागो का विशलेशन करता है; यन्त्रराकानाध्याया, आम ऊत्तरी एस्ट्रोएबल और अन्य वेरिएन्त का निर्मान करता है; यन्त्रसोधनाध्यया, पृष्ट करने के विधी है कि क्या ऐस्ट्रोएबल टीक से निर्मित है या नही, और आखिर मे यन्त्राविकारानाध्याया,एक अवलोकन और कम्प्यूटेशनल साधन के रूप मे एस्ट्रोएबल का ऊपयोग किया जाता है। सूरी के समय मे जैन धर्म की महत्व खो गयी थी और तभी इस्लाम धर्म की व्र्द्धी हुइ। महेनद्र सूरी, मदना सूरी के छात्र थे। वो पहले वक्ती थे जिन्होनें एसट्रोएबल पर प्रथम संक्रतिक ग्रंथ लिखा था। भारत मे एसट्रोएबल को फिरूज शाह तुघलूक के समय पर लाया गया था। वे भरत के उस समय के बहुत बडे ऐस्ट्रोनोमर थेय जिनको बहुत प्रसिद्धी मिलि थी। [1] [2] [3]