श्री सम्मेत शिखर जी जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है यहा से 20 तीर्थंकरों का निर्वाण हुआ था ‘समेत’ (सम+ इत) अर्थात सम्यक भाव को धारण किए हुए और दूसरा‘सम्मेद’संस्कृत शब्द ‘मे’में सम् उपसर्ग लगाने से बना है जिसका अर्थ है ‘सुगंधयुक्त! सुंदर, प्रशस्त, और उसके साथ पर्वत शब्द के विविध पर्याय को जोड़ने से; सम्मेत शैल, समेताचल, समताचल, मलयपर्वत, सम्मेतगिरी, सम्मेतशिखरी, सम्मेतशिखरीन, समाधिगिरी, शिखर जी और सर्व मान्य ‘सम्मेत शिखर शिखरजी के नाम से जाना जाता है [1] झारखंड राज्य के गिरडीह जिले के पारसनाथ क्षेत्र मे स्थित है इसे शिखर जी नाम से जाना जाता है|

शिखर जी पहाड़ पर जाने के अनेक रास्ते हैं| तोपपाचीसे पैदलजानेकेरास्ते पर मात्र चार कोस काअंतरहै श्री चंद्रप्रभु की देहरीसे और श्री शुभस्वामी गणधर की देहरी से भी चढ़ाजाता है, लेकिन अभी 2 रास्ते ही प्रसिद्धहै



[2]

  1. शाह, डॉ शैफाली (2011). श्री सम्मेअ शैलं तमहं थूणामि. अहमदाबाद: सद्भावना संगीत अकादमी. पृ॰ 635.
  2. आचार्यश्री, देवेंद्र सूरी जी (1345). वंदारूवृति. भारत: जैन ग्रंथमाला. पृ॰ 1000.