सालासर बालाजी

राजस्थान में स्तिथ हिंदू मंदिर, भारत

सालासर बालाजी मंदिर भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चुरू जिले में जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है।[1] [2]वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। [3]हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। सालासर धाम में आने वाले सभी यात्रियों की सुविधा व धाम का विकास “श्री बालाजी मंदिर” के माध्यम से “श्री हनुमान सेवा समिति” द्वारा समुचित रूप से किया जाता है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री सालासर बालाजी मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। यहाँ की मान्यता है की मात्र नारियल बांधने से बालाजी महाराज सभी इच्छाओं को पूरी करते है।

सालासर बालाजी
सालासर बालाजी
सालासर बालाजी के मंदिर में स्थापित बालाजी की मूर्ति
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताहनुमान
अवस्थिति जानकारी
ज़िलाचुरू
राज्यराजस्थान
देशभारत
सालासर बालाजी is located in राजस्थान
सालासर बालाजी
राजस्थान में सालासर बालाजी मंदिर की स्थिति
भौगोलिक निर्देशांक27°43′N 74°43′E / 27.72°N 74.71°E / 27.72; 74.71निर्देशांक: 27°43′N 74°43′E / 27.72°N 74.71°E / 27.72; 74.71
वेबसाइट
https://shreesalasarbalajimandir.com

स्थान संपादित करें

सालासर कस्बा, राजस्थान में चूरू जिले का एक हिस्सा है और यह जयपुर - बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है।[4] यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की नियमित बस सेवा के द्वारा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भली प्रकार से जुड़ा है। इंडियन एयरलाइंस और जेट एयर सेवा जो जयपुर तक उड़ान भरती हैं, यहाँ से बस या टैक्सी के द्वारा सालासर पहुँचने में 3.5 घंटे का समय लगता है। सुजानगढ़, सीकर, डीडवाना, जयपुर और रतनगढ़ सालासर बालाजी के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।[5][6]

सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास संपादित करें

संत शिरोमणी, सिद्धपुरूष, भक्त प्रवर श्री मोहनदास जी महाराज की असीम भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं रामदूत श्री हनुमान जी ने मूर्ति रूप में विक्रम संवत् 1811 (सन् 1755) श्रावण शुक्ला नवमी शनिवार, आसोटा ग्राम में प्रकट होकर अपने परम भक्त मोहनदास जी महाराज की मनोकामना पूर्ण की। अपने आराध्य से प्राप्त आशीर्वाद के फलस्वरूप श्री मोहनदास जी ने विक्रम संवत 1815 (सन् 1759) में सालासर में उदयराम जी द्वारा मंदिर-निर्माण करवाकर श्री उदयराम जी एवं उनके वंशजों को सेवा-पूजा का कार्य सौंपकर स्वयं जीवित समाधिस्थ हो गये।[7][8][9]

श्रावण शुक्लपक्ष नवमी, संवत् 1811 - शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागौर जिले में असोटा गाँव का एक किसान अपने खेत को जोत रहा था।अचानक उसके हल से कोई पथरीली चीज़ टकरायी और एक गूँजती हुई आवाज पैदा हुई। उसने उस जगह की मिट्टी को खोदा और उसे मिट्टी में सनी मूर्त्ति मिलीं। उसकी पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी। उन्होंने अपनी साड़ी (पोशाक) से मूर्त्ति को साफ़ की। यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाये और भगवान बालाजी की पूजा की और उसने अपनी पत्नी द्वारा भोजन में लाए गए बाज़रे के चूरमे का भोग लगाया और तभी से आज तक श्री बालाजी महाराज को बाज़रे के चूरमे का भोग लगाते हैं। भगवान बालाजी के प्रकट होने का यह समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया। असोटा के ठाकुर ने भी यह खबर सुनी। बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर भेज दिया जाए। उसी रात भगवान हनुमान के एक भक्त, सालासर के मोहन दासजी महाराज ने भी अपने सपने में भगवान हनुमान यानि बालाजी को देखा। भगवान बालाजी ने उसे असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरन्त आसोटा के ठाकुर के लिए एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को इस बारे में ज्ञान है, तो वे चकित हो गये। निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था। इधर अपने आराध्य की कृपा से मोहनदास जी को यह सब भान (ज्ञात) हो जाने के कारण, अपने प्रभु की अगवानी करने के लिए उन्होंने सालासर से प्रस्थान किया। मूर्ति सम्मानपूर्वक लाई गई। महात्मा मोहनदास जी ने निर्देशित किया कि “बैल जहाँ पर भी रूकेंगे, वहीं पर मूर्ति की स्थापना होगी”| कुछ समय पश्चात बैल रेत के टीले पर जाकर रूक गये तो उसी पावन-पवित्र स्थान पर विक्रम संवत् 1811 श्रावण शुक्ला नवमी (सन् 1755) शनिवार के दिन श्री बालाजी महाराज की मूर्ति की स्थापना की गई। मूर्त्ति को सालासर भेज दिया गया और इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है। विक्रम संवत् 1815 (सन 1759) में नूर मोहम्मद व दाऊ नामक कारीगरों से मंदिर का निर्माण करवाया गया, जो कि साम्प्रदायिक सौहार्द एवं भाईचारे का अनुपम (अनूठा) उदाहरण हैं।

अपने आराध्य ईष्ट को साक्षात् मूर्तिस्वरूप में पाकर उनकी सेवा-पूजा हेतु श्री मोहनदास जी ने अपने शिष्य/भांजा उदयराम को अपना चोगा पहनाकर उन्हें दीक्षा दी। तत्पश्चात् उसी चोगे को गद्दी के रूप में निहित कर दिया गया। श्री हनुमान जी की मूर्ति का स्वरूप दाड़ी व मूंछ युक्त कर दिया क्योंकि सालासर आने से पूर्व श्री हनुमान जी ने स्वप्न में श्री मोहनदास जी को इसी स्वरूप में दर्शन दिये थे। मंदिर प्रांगण में ज्योति प्रज्जवलित की गई जो विक्रम संवत् 1811 (सन् 1755) से अद्यावधि पर्यन्त अखण्ड रूप से अनवरत दीप्यमान है। भक्त शिरोमणी मोहनदास जी महाराज अपने तपो बल से विक्रम संवत् 1850 (सन् 1794) वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को प्रातःकाल जीवित समाधि लेकर ब्रह्म में लीन हो गये।[10]

सालासर बालाजी मंदिर दो प्रमुख उत्सव “श्री मोहनदास जी महाराज का श्राद्ध दिवस (श्राद्ध पक्ष में त्रयोदशी) एवं “श्री बालाजी महाराज का प्राकट्य दिवस” (श्रावण शुक्ला नवमी) बहुत ही हर्षोल्लास व उत्साह के साथ मनाता है, जिसमें बाबा के हजारों अनन्य भक्त व श्रद्धालुजन भाग लेते हैं।

सिद्धपुरूष महात्मा मोहनदास जी महाराज के वचनानुसार भक्त की मनोकामना-पूर्ति हेतु श्री बालाजी महाराज का समर्पित भाव से ध्यान लगाकर “मनोति” (मनोकामना) का नारियल बांधा जाता है। भगवान के भक्तों द्वारा बांधे गये “मनोती” के नारियलों के प्रति यहाँ बहुत अधिक श्रद्धा है, अतः इनका किसी अन्य प्रयोजन में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।[11]

दिल्ली से: 1.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम (गुड़गाँव) -> रेवाड़ी -> नारनौल -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासर बालाजी (318 किलोमीटर)

(आपको रेवाड़ी रोड़ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 को छोड़कर रेवाड़ी से झुंझुनू जाने वाला रास्ता लेना होगा) (सबसे छोटा रास्ता और सबसे अच्छा रास्ता )


2.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> नारनौल -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासरबालाजी (335 किलोमीटर)

(ऊपर बताये गये रास्ते से यह मार्ग बेहतर है, आपको बहरोड़ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा, यह भी छोटा और बहुत अच्छा मार्ग है)


3.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली -> नीमकाथाना -> उदयपुरवाटी -> सीकर -> सालासर बालाजी (335 किलोमीटर) (आपको कोटपुतली से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा)

4.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली-> शाहपुरा-> अजीतगढ़ -> सामोद -> चोमूँ -> सीकर -> सालासर बालाजी (392 किलोमीटर) (आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा) इसे सामोद मार्ग के रूप में भी जाना जाता है।

5.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली-> शाहपुरा -> चंदवाजी -> चोमूँ -> सीकर -> सालासर बालाजी (399 किलोमीटर) (आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा) इसे चंदवाजी मार्ग भी कहा जाता है। हालाँकि यह मार्ग लम्बा है, इसकी लम्बाई लगभग 225 किलोमीटर है, परन्तु राष्ट्रीय राजमार्ग-8 एक्सप्रेसवे पर गाड़ी चलाकर आराम से जा सकते हैं।


6.) नयी दिल्ली -> बहादुरगढ़ -> झज्झर -> चरखीदादरी -> लोहारू -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासर बालाजी (302 किलोमीटर) यह नया रास्ता है जिसे कम भक्त जानते हैं।


7.) नयी दिल्ली -> रोहतक -> हिसार -> राजगढ़ -> चुरू -> फतेहपुर -> सालासर बालाजी (382 किलोमीटर)

दर्शनीय स्थल संपादित करें

मोहनदास जी का धूंणा वह जगह है, जहाँ महान भगवान हनुमान के भक्त मोहनदास जी के द्वारा पवित्र अग्नि जलायी गयी, जो आज भी जल रही है।श्रद्धालु और तीर्थयात्री यहाँ से पवित्र राख ले जाते हैं। श्री श्री मोहनदास जी और की दादी की समाधी(मोहनदास जी की बहन), बालाजी मंदिर के बहुत ही पास स्थित है, यह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि मोहनदास जी और कनिदादी के पैरों के निशान यहाँ आज भी मौजूद हैं।इस स्थान को इन दोनों पवित्र भक्तों का समाधि स्थल माना जाता है।पिछले आठ सालों से यहाँ निरंतर रामायण का पाठ किया जा रहा है।


अंजनी माता का मंदिर लक्ष्मणगढ़ की ओर सालासर धाम से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अंजनी माता भगवान हनुमान या बालाजी की माँ थी।

शयनन माता मंदिर, जो यहाँ से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में एक अद्वितीय पहाड़ी पर स्थित है, माना जाता है कि यह 1100 साल पुराना मंदिर है, यह भी दर्शन के योग्य है।


श्री हनुमान जन्मोत्सव का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है।श्री हनुमान जन्मोत्सव के इस अवसर पर भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।

प्रमुख मेले - आश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन किया जाता है और बड़ी संख्या में भक्त इन मेलों में भी पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा पर आयोजित किये जाने वाले मेले भी बाकी मेलों की तरह आकर्षक होते हैं। इन अवसरों पर नि:शुल्क भोजन, मिठाईयों और पेय पदार्थों का वितरण किया जाता है।

संदर्भ संपादित करें

  1. GANGASHETTY, RAMESH (2019). THIRTHA YATRA: A GUIDE TO HOLY TEMPLES AND THIRTHA KSHETRAS IN INDIA (अंग्रेज़ी में). Notion Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-68466-134-3.
  2. Saluja, Kuldeep (13 March 2021). Impact Of Vaastu On Nations, Religious & Historical Places (अंग्रेज़ी में). Diamond Pocket Books Pvt Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-90504-86-2.
  3. "Official Website of Salasar Balaji Temple". Shree Salasar Balaji Mandir. 22 September 2021. अभिगमन तिथि 28 November 2023.
  4. "बालाजी के इस मंदिर में दाड़ी मूंछ वाली विश्व की इकलौती प्रतिमा, मंदिर का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक मेंं दर्ज". News18. अभिगमन तिथि 28 November 2023.
  5. "As Gehlot firefights, Sachin Pilot remembers Salasar Balaji temple". Free Press Journal. अभिगमन तिथि 10 August 2023.
  6. "Religious places gear up to reopen, wait for govt guidelines". The Times of India. 6 June 2020.
  7. "Magical story of Salasar Balaji". zeenews. 10 January 2023. अभिगमन तिथि 28 November 2023.
  8. "Siddhpeeth Salasar Balaji Temple | सिद्धपीठ सालासर बालाजी मंदिर का 268वां स्थापना दिवस आज, तैयारियां हुई पूरी | Navabharat (नवभारत)". enavabharat.com. अभिगमन तिथि 10 December 2022.
  9. "Salasar Balaji Temple Rajasthan". tourism.rajasthan.gov.in.
  10. "श्री सालासर बालाजी इतिहास". Shree Salasar balaji mandir. अभिगमन तिथि 28 November 2023.
  11. "About Salasar Balaji Temple". templeknowledge.com. 6 October 2022. अभिगमन तिथि 28 November 2023.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें