जैन धर्म में सिद्ध शब्द यानी मुक्त आत्मा, जिन्होंने अपने सारे कर्मो का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया है उन्हें संबोधित करने के लिए किया जाता हैं। सिद्ध दूसरे परमेष्ठी हैं तथा पांचों परमेष्ठियों में सबसे बड़े परमेष्ठी हैं।