फ्रंटियर मेल जिसे अब स्वर्ण मंदिर मेल के नाम से जाना जाता है, भारत की सबसे पुरानी रेलगाड़ियों में से एक है, जिसका परिचालन आज तक किया जा रहा है।

अपने शुरुआती दौर में, फ्रंटियर मेल बंबई (अब मुंबई) को पेशावर से जोड़ती थी जो कि अविभाजित भारत के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में स्थित था और इसी से इसका नाम फ्रंटियर (सीमांत) पड़ा था। इस रेलगाड़ी का जिक्र हिंदी फिल्म नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो में किया गया है: कहते हैं कि नेताजी 1944 में फ्रंटियर मेल से पेशावर गये थे और वहाँ से अफगानिस्तान के काबुल को चले गये थे। भारत के विभाजन के बाद, फ्रंटियर मेल मुंबई और अमृतसर के बीच चलने लगी जो इस रेलमार्ग पर भारत का अंतिम शहर है। 1996 में इसका नाम बदलकर सिखों के पवित्रतम स्थल स्वर्ण मंदिर के नाम पर स्वर्ण मंदिर मेल (12903UP/12904DN) कर दिया गया।

इतिहास संपादित करें

फ्रंटियर मेल भूतपूर्व रेल सेवा बॉम्बे, बरोडा एण्ड सेंट्रल इंडिया रेलवे, की सोच का परिणाम थी और उसने इसे अपनी कट्टर प्रतिद्वंदी कंपनी ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे को उसकी रेलगाड़ी पंजाब मेल का जबाव देने के लिए शुरु किया था। फ्रंटियर मेल अपनी पहली यात्रा पर 1 सितम्बर 1928 को रवाना हुयी थी। जब इसे पहली बार शुरु किया गया था, तो यह रेलगाड़ी मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन, से पेशावर के बीच चलती थी। जब बल्लार्ड पियर स्टेशन को बंद किया गया तो इसका आरंभिक स्टेशन कोलाबा, मुंबई कर दिया गया। आज पेशावर पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन, यूरोप से पी एंड ओ स्टीमर द्वारा आयी डाक का लदान स्टेशन भी था। यह जानना अपने आप में काफी दिलचस्प है कि जब रेलगाड़ी बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन से रवाना होती थी तो यह पहले बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट रेलवे और फिर ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे की पटरियों से कुछ सफर तय करने के बाद ही अंततः बॉम्बे, बरोडा एण्ड सेंट्रल इंडिया रेलवे की पटरियों पर आती थी।

जहाँ पंजाब मेल मुंबई से पेशावर जाने में कई दिन लगाती थी वहीं फ्रंटियर मेल सिर्फ 72 घंटे में पेशावर पहुँचती थी। फ्रंटियर मेल को यात्रियों और डाक को मुंबई से दिल्ली ले जाने के लिए शुरु किया गया था और उसके बाद नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे के सहयोग पेशावर तक जाती थी, रास्ते में यह पंजाब, लाहौर और रावलपिंडी (जो कि कश्मीर जाने वालों के लिए आखिरी रेलवे स्टेशन था)। मुंबई और दिल्ली के बीच रेलगाड़ी लगभग 1393 किमी की दूरी तय करती थी जबकि मुंबई से पेशावर के बीच की दूरी 2335 किमी थी। यह रेलगाड़ी एक लंबे समय तक भारत की सबसे तेज चलने वाली रेलगाड़ी बनी रही। 1930 में, लंदन के द टाइम्स ने इसे "ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस गाड़ियों में से सबसे प्रसिद्ध रेलगाड़ी बताया।"

सितंबर और दिसंबर के बीच शरद ऋतु के महीनों के दौरान, रेलगाड़ी बल्लार्ड पियर मोल स्टेशन से रवाना होती थी ताकि स्टीमर द्वारा भारत आने वाले अंग्रेज आसानी से इस रेलगाड़ी की यात्रा कर सकें।

रोचक तथ्य संपादित करें

  • बीबी एण्ड सीआई और जीआईपी रेलवे के बीच प्रतिद्वंदिता जगप्रसिद्ध है। 1855 में जब जीआईपी रेलवे पश्चिमी घाट के पार एक लाइन के निर्माण का अनुमोदन इंग्लैंड से प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रही थी, ठीक उसी समय बीबी एण्ड सीआई ने अपना यह प्रस्ताव रखा कि, बड़ौदा से होकर जाने वाला वैकल्पिक मार्ग अधिक व्यवहारिक होगा, क्योंकि इस मार्ग के द्वारा कठिन घाटों पर रेल लाइन बिछाने से बचा जा सकेगा और इस नयी लाइन को अंतत: ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी की लाइन से जोड़ा जा सकेगा। यह वो विचार था जिसे जीआईपी रेलवे एक बार घाट पार करने की अनुमति प्राप्त होने जाने के बाद अमल में लाने की सोच रही थी। यह प्रतिद्वंदिता यहां से शुरु होकर दोनों रेलसेवाओं की मुंबई से पेशावर के बीच उनकी अपनी-अपनी रेलगाड़ियों के शुरु होने तक चलती रही।
  • फ्रंटियर मेल एक समय की बेहद पाबंद रेलगाड़ी थी। आमतौर पर यह माना जाता था कि आपकी रोलेक्स घड़ी आपको गलत समय बता सकती है, लेकिन फ्रंटियर मेल हमेशा समय पर पहुँचती है। वास्तव में, आप 10 में 9 बार अपनी घड़ी फ्रंटियर मेल के हिसाब से मिला सकते थे।

पहली बार संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें