हृदय धमनी बाईपास सर्जरी

हृदय धमनी बाईपास शल्य-क्रिया (अंग्रेज़ी:कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी, सी.ए.बी.जी.), बाईपास सर्जरी, हृदय बाईपास, आदि नामों से प्रसिद्ध ये शल्य क्रिया हृदय को रक्त पहुंचाने वाली 3 धमनियों की शल्य क्रिया को कहते हैं।हृदय की धमनी (कोरोनरी आर्टरी) में कुछ रुकावट होने को हृदय धमनी रोग (कोरोनरी आर्टरी डिजीज; सीएडी) कहते हैं। यह रुकावट वसा के जमाव होने से होती है, जिससे धमनी कठोर हो जाती है व रक्त के निर्बाध बहाव में रुकावट आती है। हृदय के वाल्व खराब होने, रक्तचाप बढ़ने, हृदय की मांसपेशी बढ़ने और हृदय कमजोर होने से हृदयाघात हो जाता है। यदि समय पर इलाज हो तो बचा जा सकता है। धमनी के पूर्ण बंद होने की स्थिति में हृदयाघात की आशंका बढ़ जाती हैं। हृदय की तीन मुख्य धमनियों में से किसी भी एक या सभी में अवरोध पैदा हो सकता है। ऐसे में शल्य क्रिया द्वारा शरीर के किसी भाग से नस निकालकर उसे हृदय की धमनी के रुके हुए स्थान के समानांतर जोड़ दिया जाता है। यह नई जोड़ी हुई नस धमनी में रक्त प्रवाह पुन: चालू कर देती है। इस शल्य-क्रिया तकनीक को बाईपास सर्जरी कहते हैं।[1]

कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी का आपरेशन
तीन हृदय धमनी बाईपास ग्राफ़्ट

प्रायः छाती के अंदर से मेमेरी आर्टरी या हाथ से रेडिअल आर्टरी या पैर से सफेनस वेन निकालकर हृदय की धमनी से जोड़ी जाती है। इस क्रिया में पुरानी रुकी हुई धमनी को हटाते नहीं है, बल्कि उसी धमनी में ब्लाक या रुकावट के आगे नई नस जोड़ दी जाती है, इसी से रक्त प्रवाह पुन: सुचारु होता है। धमनी रुकावट के मामले में बायपास सर्जरी सर्वश्रेष्ठ विकल्प होत है। इसका दूसरा और अपेक्षाकृत सस्ता विकल्प है एंजियोप्लास्टी[1]

आवश्यकता

हृदय की किसी एक धमनी में अवरोध होने पर प्रायः एंजियोप्लास्टी से समाधान हो सकता है। लेकिन जब एक या अधिक कोरोनरी धमनियों में बहुत अधिक जमाव होने पर या उनकी उपशाखाएं बहुत अधिक सिकुड़ जाए जाए तो बाईपास सर्जरी यानी कोरोनरी आर्टरी बाइपास ग्राफ्टिंग (सीएबीजी) ही एकमात्र विकल्प होता है। निम्न स्थितियों में बाइपास सर्जरी आवश्यक होती[2][3] है-

  • एंजियोग्राफी से यह ज्ञात हो कि रोगी को कभी भी हृदयाघात हो सकता है। रोगी के सीने में दर्द उठने के कम से कम छह घंटे पहले ही बाईपास सर्जरी कर दी गई हो, हृदय को आघात से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
  • हृदयाघात से उबरने के बाद भी सीने में दर्द के बने रहने अथवा रोगी की हालत गंभीर रहने पर।
  • एंजाइना के लक्षण नहीं होने पर भी जब ईसीजी स्ट्रेस टेस्ट और कोरोनरी एंजियोग्राफी से ज्ञात हो कि रोगी की कई धमनियों में रुकावट है।
  • एंजियोप्लास्टी के असफल रहने पर।

प्रक्रिया

आपरेशन

बाईपास सर्जरी के आपरेशन के लिए पहले सीने के बीच की हड्डी (स्टरनम) को काटकर हृदय को गम्य बनाने हेतु खोल दिया जाता है। उसके बाद उसे हार्ट-लंग मशीन से जोड़ दिया जाता है जिससे हृदय और फेफड़ों का काम यह मशीन करने लगती है। हृदय को एक ऐसे घोल से धो देते हैं, जिससे उसका तापमान कम हो जाता है और उसका धड़कना भी बंद हो जाता है। उसके बाद ग्राफ्टिंग कार्य किया जाता है। इसके लिए पहले से ही हाथ या पैर की नस या पेट की धमनी का ग्राफ्ट तैयार करके रखा जाता है।[2] इसे आवश्यकतानुसार बाईपास ग्राफ्ट कर दिया जाता है। इसके बाद हृदय और फेफड़ों को रक्त संचार व्यवस्था से वापस जोड़ देते हैं, जिससे वे पहले की तरह काम करने लगें। हार्ट लंग मशीन को हटा लेते हैं, व हृदय की सतह पर दो पेसमेकर के तार लगा देते हैं। पेसमेकर के तारों को अस्थाई पेसमेकर से जोड़ देते हैं। हृदय की धड़कन के अनियमित होने पर यह पेसमेकर उसे नियंत्रित कर लेता है। छाती की हड्डियों को तारों से मजबूती से सिलकर त्वचा में टांके लगा दिए जाते हैं। यह आपरेशन तीन-चार घंटे की अवधि का हो सकता है और इस बीच रोगी को चार से छह यूनिट तक रक्त चढ़ाना पड़ सकता है।

प्रक्रिया उपरांत

आपरेशन के बाद अगले 24 से 48 घंटे तक रोगी को चिकित्सक व नर्स आदि की देखरेख में गहन देखरेख इकाई (आई.सी.यू) में रखा जाता है। कार्डियक मॉनीटर की तारें इलेक्ट्रॉड के द्वारा रोगी की छाती से लगी होती है और ईसीजी तथा हृदय की गति लगातार अंकित होते रहते हैं। एक धमनी में एक केन्यूला लगी रहती है जिसे रोगी का रक्तचाप जांचा जाता रहता है और दूसरा केन्यूला गर्दरा की नस में लगा होता है और यह नस के भीतर का दाब बताता है।[2] रोगी की छाती में भी दो नली लगी होती हैं जिनसे छाती के भीतर एकत्र हो रहा द्रव्य बाहर आता रहता है। ये सारी नलियां आपरेशन के एक दिन बाद निकाल दी जाती हैं। इनके अलावा आपरेशन के 16 से 24 घंटे बाद तक रोगी की सांस नली में एक एंडोट्रेकियल टयूब लगी रहती है। यह नली कृत्रिम श्वास-यंत्र से जुड़ी होती है और रोगी को श्वसन में मदद करता है। जब रोगी अच्छी तरह सांस लेने लगता है तो इसे हटा दिया जाता है। जब तक यह नली श्वास नली में होती है रोगी न तो कुछ खा पी सकता है और न ही बात कर पाता है।

रोगी के मुंह और नाक पर एक ऑक्सीजन मास्क भी लगा रहता है, ताकि रोगी को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती रहे। प्रायः आपरेशन के 1-2 सप्ताह में रोगी को अस्पताल से निवृत्ति मिल जाती है। तब तक उसकी छाती और पैर के जख्म भी सूख जाते हैं। पैर से नस निकालने के कारण कुछ दिनों तक पैर में सूजन रह सकती है। लेकिन पैर ऊपर उठाकर आराम करने और चलते समय पैर पर क्रैप बैंडेज बांधने से सूजन कम हो जाती है।[2]

आधुनिक तकनीक

बीटिंग हार्ट सर्जरी

शुरूआत में बायपास क्रिया हृदय की धड़कन रोक कर किया जाता था। इससे दूसरे अंगों जैसे, गुर्दे, यकृत, फेफड़ा आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। बीटिंग हार्ट सर्जरी नामक आधुनिक नई विधि से हृदय के केवल उस स्थान पर रक्त के बहाव को रोका जाता है जहां शल्य-क्रिया होनी है। पूर्व विधि में हृदय के आप्रेशन में सात-आठ युनिट रक्त की चाहिए होती थी, जबकि बीटिंग हार्ट सर्जरी में एक से दो युनिट रक्त काफी रहता है। रोगी को मात्र एक सप्ताह ही अस्पताल में रहना होता है। बायपास सर्जरी की नई तकनीक में बीटिंग हार्ट सर्जरी पूर्णतया सफल है। इससे रोगियों को परेशानी कम होती है।[1] बाईपास सर्जरी छः माह के बच्चे तक की करी जा सकती है। जनवरी 2009 में मुंबई, भारत में शॅरॉन डिसूज़ा नाम की छः माह की बच्ची की सफल बाईपास सर्जरी विश्व में पहली बार संपन्न हुई। उसे जन्मजात रेयर कंजेनाइटल हृदय विकार था, जिसके कारण उसे एनामलस लेफ्ट कोरोनरी आर्टरी फ्रॉम पल्मोनरी धमनी रोग था। यह रोग 5 लाख बच्चों में से एक को होता है।[4]

मिनिमल इन्वेसिव तकनीक

आधुनिक स्टेबलाइजर उपकरण की मदद से अब मात्र तीन इंच जितने छोटे कट लगाकर भी धमनी बाईपास सर्जरी की जाती है। अब इसके लिये लंबे चीर-फाड़ की आवश्यकता नहीं रह गई है। इस तकनीक की विशेषता यह है कि इसे हृदय के ऊपरी भाग पर लगाकर इससे हृदय को आवश्यकतानुसार घुमाया जा सकता है। इस कारण हृदय के पिछले और किनारे के भागों को भी मिनिमल इनवेसिव तकनीक से देखना सरल हो गया है। इस तकनीक में हार्ट-लंग मशीन की भी आवश्यकता नहीं होती है। ओपन हार्ट सर्जरी की अपेक्षा छाती में एक छोटा सा कट लगता है, जो देखने में भी बुरा नहीं लगता। कट छोटा होने से रक्त-स्राव भी बहुत कम होता है और तीन से चार दिन में रोगी वापस घर जा सकते हैं। इसके बाद दोबारा ऑपरेशन की आवश्यकता लगभग नहीं के बराबर होती है व इसका व्यय भी पुरानी ओपन-हार्ट तकनी की तुलना में 50-60 हजार रुपये कम आता है। जिन रोगियों का हृदय हृदयाघात से काफी क्षतिग्रस्त हुआ है, उनके अलावा सभी के लिये, खासकर वृद्धों व मधुमेह रोगियों के लिये ये तकनीक कारगर होती है।[5] विशेषज्ञों के अनुसार योग से हृदय संबंधी रोगों में प्रथम स्तर पर लाभ होता है लेकिन एंजियोप्लास्टी एवं बाईपास सर्जरी के बाद योग करना हानिकारक हो सकता है।[6]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ