संख्या पद्धतियाँ

संख्याओं को व्यक्त करने के लिए लेखन प्रणाली
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संख्याओं को लिखने एवं उनके नामकरण के सुव्यवस्थित नियमों को संख्या पद्धति (Number system) कहते हैं। इसके लिये निर्धारित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या निश्चित एवं सीमित होती है। इन प्रतीकों को विविध प्रकार से व्यस्थित करके भिन्न-भिन्न संख्याएँ निरूपित की जाती हैं।

दशमलव पद्धति, द्वयाधारी संख्या पद्धति, अष्टाधारी संख्या पद्धति तथा षोडषाधारी संख्या पद्धति आदि कुछ प्रमुख प्रचलित संख्या पद्धतियाँ हैं।

स्थानीय मान पर आधारित संख्या पद्धति

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स्थानीय मान पर आधारित संख्या पद्धति में 2 या अधिक प्रतीक उपयोग में लाये जाते हैं। जितने प्रतीक होते हैं वही उस संख्या पद्धति का आधार (base) कहलाता है। इन प्रतीकों का मान शून्य से लेकर b-1 तक होता है जहाँ b आधार है।

नीचे दो संख्याओं का उदाहरण दिया गया है, जो क्रमशः दशमलव पद्धति तथा बाइनरी पद्धति में है-

 
 

संख्या पद्धतियाँ (Numeral system) हरेक भाषा में कुछ न कुछ अंक अवश्य होते हैं। इकाई की संकल्पना से "एक" की और अनेकता की संकल्पना से "दो" की रचना हुए बिना नहीं रहती। अव्यवस्थित संख्यालेखन कदाचित् ही किसी भाषा में होगा। ऑस्ट्रेलिया की भाषाओं, यूइन - कुरी आदि, तथा वहाँ की मध्य दक्षिणी भाषाओं में ऐसी अव्यवस्था है। अंडमन द्वीपों और मलक्का के वासियों ने एक और दो के किले अंक तो बनाए हैं, लेकिन जोड़ते वे एक-एक करके ही हैं। ऐसी ही बात दक्षिण अमरीका की शिकीटो के बारे में है। व्यवस्थित पद्धतियों के संक्षिप्त विवरण ये हैं :

युग्मक पद्धति में एक और दो के लिए अंक हैं और 3 को 2+1 (अर्थात् एक युग्म और एक), 4 को 2+2 इत्यादि के रूप में प्रकट करते हैं। यह पद्धति ऑस्ट्रलिया और न्यूगिनी की जातियों, अफ्रीका की बुशमैन, दक्षिण अमरीका की फ्यूजियन, यमन, ग्वादिकी, शिपया आदि जातियों में है। इस पद्धति की उत्पत्ति शरीर के उन अंगों को देखकर हुई जो जोड़ों में हैं।

चतुष्टक पद्धति में चार से अधिक संख्याएँ, संयोजन द्वारा, इस प्रकार प्रकट की जाती हैं : 5 = 4 + 1; 7 = 4 + 3; 8 = 4 + 4 या 2 x 4। विशेष रूप से कैलिफोर्निया में सलिना जाति द्वारा यह पद्धति प्रयुक्त होती है। वहाँ आकाश के चार भागों का धर्म, परंपरा और देवकथाओं में विशेष महत्व है।

षटक पद्धति मूल रूप से उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका ही हुका, बुलंदा, एप्को जातियों में प्रचलित है। आगे चलकर यह द्वादश पद्धति में विकसित हुई। इसकी विशेषता यह है कि 12 के नि:शेष खंड कितने ही हो जाते हैं। इसी कारण यह ज्योतिष, लंबाई मापन और मुद्राप्रणाली में प्रचलित हुई।

पंचक पद्धति अविकल रूप से दक्षिण अमरीका के सरावेका की अरोवक भाषा में मिलती है। अन्यत्र इसका संयोजन दशमक या विंशति पद्धति के साथ हो गया है। विंशति पद्धति में आधार 20 है। इसे पंचक, दशमक और युग्मक पद्धतियों से संयुक्त पाया जाता है। इन पद्धतियों का आरंभ हाथ और पैर की अंगुलियों से हुआ। इस प्रकार "पाँच" का अर्थ हाथ, दस का अर्थ दोनों हाथ, 15 का अर्थ दोनों हाथ और एक पैर तथा 20 का अर्थ दोनों पैर और हाथ, अर्थात् पूर्ण मनुष्य, हो जाता है।

पंचक विंशति पद्धति प्राय: ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूगिनी के कुछ भागों में, एशिया-यूरोप की सीमा पर और तिब्बती-वर्मी भाषाओं के हिमालयी वर्ग में है। दशमक विंशति पद्धति, मुंडा भाषाओं, हिमालय के तिब्बती-चीनी वर्गों और काकेशिया की भाषाओं में प्रचलित है।

दशमक पद्धति के पंचक-दशमक रूप में द्वितीय पंचक की संख्याएँ पाँच में जोड़कर बनती हैं, यथा 6 = 5 + 1, या युग्मों द्वारा, यथा 6 = 3 x 2, या व्याकलन द्वारा भी, यथा 9 = 10 - 1। यह पद्धति कृषिप्रधान सभ्यताओं में प्रचलित हुई। अफ्रीका की वंटू, नीलोटी, व्यूल, न्योन्की और मन्कू भाषाओं में इसका विशेष प्रचलन है।

शुद्ध दशमक पद्धति में पंचक का प्रयोग नहीं होता। इसकी उत्पत्ति यायावर (खानाबदोश) वर्गों में हुई, जिन्हें गाय, घोड़े, ऊँट, भेड़ के झुंडों को गिनने होते थे। तब से फैलते फैलते अब यह पद्धति विश्वव्यापी हो गई हैं। केवल मेक्सिकी और मध्य अमरीका में, अब भी ज्योतिष में प्रयुक्त होने के कारण, विंशति पद्धति सुरक्षित है।

संख्या पद्धति का क्रमिक विकास (evolution)

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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