अंजुमन सैयदजादगान लाखावालान

अजमेर स्थित दरगाह ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह में जो लोग सेवा करते हैं उन सेवकों (चौकीदारों) के दो संघ है, तथा एक केंद्र सरकार की कमेटी है, सेवकों के दो संघ में जो संघ बढ़ा है और जिसमें ज्यादा मेम्बर है उसे अंजुमन सैयदजादगान लाखावालान के नाम से जाना जाता है, ख़्वाजा साहब जब अजमेर आए तो कई लोग उनसे प्रभावित होकर इस्लाम में दाखिल हो गए, प्राचीन काल में राजा महाराजाओं की कई कई सन्तान होती थी कुछ विधिक तो कुछ अविधिक, उस वक्त अजमेर का राजा था राय पिथौरा एक बहुत सुंदर महिला जिसका नाम मीना था उसके राजा राय पिथौरा को कई सन्तान हुई जिसमें से दो पुत्र लाखा और टेका थे जिनको लाखा भील व टेका भील के नाम से जाना जाता है, क्यों की इनकी माता भील समुदाय से थी यही वजह है कि इनको माता के नाम से जाना जाता है और पिता का उपनाम अविधिक होने के कारण इनको प्राप्त न हो सका, लाखा भील व टेका भील ने ख़्वाजा साहब से प्रभावित होकर इस्लाम कबूल कर लिया था, आज अजमेर में अंजुमन सैयादजादगान नाम से जो सेवकों की संस्था है वह सब इन्हीं लाखा भील की संतान है, यही वजह है कि इनकी अंजुमन को अंजुमन सैयदजादगान लाखावालान के नाम से भी जाना जाता है, दरगाह में आने वाले चढ़ावे तथा खूब प्रसिद्धि और शोहरत वा सम्मान प्राप्त करने को नियत से यह स्वयं को सैयद बताने लगे और अपना नसब पैगंबर ए इस्लाम से जोड़ने लगे हैं, जबकि हदीस मुबारक में आया है कि नसब बदलकर बताया इस्लाम में बहुत ही बड़ा अपराध है ।[1][2][3][4][5][6]

संदर्भ संपादित करें

  1. "भीलों के चुंगल में अजमेर वाले ख्वाजा". न्याय समाचार पत्र अजमेर. 1994.
  2. Currie, P. M. (2006). The shrine and cult of Muʻīn al-Dīn Chishtī of Ajmer (New ed संस्करण). Delhi: Oxford University Press. OCLC 124041442. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-568329-3.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ (link)
  3. In the Court of Treasury officer and Magistrate First Class Ajmer Criminal Case no. 70 of 1928
  4. Case No. 314 of 1928. Exhibit P.12, Shareef Hussain Versus Dargah Committee Ajmer
  5. खादिमों की कहानी इतिहास की जुबानी वर्ष 1995
  6. जौहर, जलालुद्दीन (2006). इस्लाम का भारतीय करण. भीलवाड़ा: गजाला प्रकाशन.