अंतःकरण
अंत:करण (Conscience / कांशेंस) का तात्पर्य उस मानसिक शक्ति से है जिससे व्यक्ति उचित और अनुचित का निर्णय करता है। सामान्यत लोगों की यह धारणा होती है कि व्यक्ति का अंतकरण किसी कार्य के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय करने में उसी प्रकार सहायता कर सकता है जैसे उसके कर्ण सुनने में, अथवा नेत्र देखने में सहायता करते हैं। व्यक्ति में अंतःकरण का निर्माण उसके नैतिक नियमों के आधार पर होता है। अंतकरण व्यक्ति की आत्मा का वह क्रियात्मक सिद्धांत माना जा सकता है जिसकी सहायता से व्यक्ति द्वंद्वों की उपस्थिति में किसी निर्णय पर पहुँचता है। अभिज्ञान शाकुंतलम् (१,१९) में कालिदास कहते हैं:
- सतां हि संदेहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तकरणप्रवृत्तय।
अन्तश्चेतना
संपादित करेंअंतश्चेतना शब्द अंग्रेजी के 'इनर कांशसनेस' (Inner Consciousness) का पर्यायवाची है। कभी-कभी यह सहज ज्ञान या प्रभा (इंट्यूशन) के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। संत जोन या गांधी जी प्रायः अपनी भीतरी आवाज या आत्मा की आवाज का हवाला देते थे। कई रहस्यवादियों में यह अंतश्चेतना अधिक विकसित होती है। परंतु सर्वसाधारण में भी मन की आँखें तो होती ही हैं। यही मनुष्य का नीति अनीति से परे सदसद्विवेक (सद्-असद् विवेक) कहलाता है। दार्शनिकों का एक संप्रदाय यह मानता है कि जीव स्वभावतः 'शिव' है और इस कारण किसी अशिक्षित या असंस्कृत कहलाने वाले व्यक्ति में भी अच्छे-बुरे को पहचानने की अंतश्चेतना पशु से अधिक विद्यमान रहती है। भौतिकवादी अंतश्चेतना को जन्मतः उपस्थित जैविक गुण नहीं मानते बल्कि सभ्यता के इतिहास से उत्पन्न, चेतना का बाह्य आवरण मानते हैं; जैसे फ्रायड उसे सुपर ईगो कहता है। अरविंद के दर्शन में यह शब्द उभरकर आया है। यदि भौतिक जड़ जगत् और मानवी चैतन्य के भीतर एक सी विकास रेखा खोजनी हो, या मुण्मय में चिन्मय बनने की संभावनाएँ हों तो इस अंतश्चेतना का किसी न किसी रूप में पूर्व अस्तित्व मनुष्य में मानना ही होगा। योग इसी को आत्मिक उन्नति भी कहता है। योगी अरविंद की परिभाषा में यही चैत्य पुरुष या 'साइकिक बीइंग' कहा गया है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- A chapter on Conscience From Parenting For Everyone 1986 ISBN 978-1-60481-704-1, by S. Soloveychik
- Quotations about Conscience at Liberty-tree.ca
- The Defining Moment for Creating the Culture of Conscience
- Stanford Encyclopedia of Philosophy entry on Medieval Theories of Conscience
- Taqwa: The concept of conscience in the Quran