एक विशेष प्रकार की मिट्टी को, जो बिना पिघले अथवा कोमल हुए अत्यधिक ताप सहन कर सकती है, अग्निसह मिट्टी कहते हैं।

भिन्न-भिन्न स्थानों में पाई जाने वाली अग्निसह मिट्टी की रचना एक दूसरी से थोड़ी बहुत भिन्न होती है, पर मुख्यतः इनकी रासायनिक रचना इस प्रकार की होती है:

सिलिका 59 से 96 प्रतिशत

ऐल्युमिना 2 से 36 प्रतिशत

लौह आक्साइड 2 से 5 प्रतिशत

इनके अतिरिक्त सूक्ष्म मात्रा में चूना, मैगनीशिया, पोटाश तथा सोडा भी पाया जाता है। ऐल्युमिनियम आक्साइड (ऐल्युमिना) और बालू (सिलिका) अनुपात में जितनी अधिक मात्रा में रहेंगे उतनी ही मिश्रण में अग्नि सहने की शक्ति अधिक होगी।

यदि लोहे के आक्साइड अथवा चूना, मैगनीशिया, पोटाश या अन्य क्षारीय पदार्थ की मात्रा अधिक होगी तो ये गरमी पाने पर मिट्टी के पिघलने में सहायता करेंगे, अतः जब ये वस्तुएँ मिट्टी में अधिक मात्रा में रहती हैं तो मिट्टी अग्निसह नहीं होती। परंतु जब ये वस्तुएँ एक सीमा से कम मात्रा में रहती है तो वे मिट्टी के कणों को आपस में बाँध नहीं पातीं। इसलिए मिट्टी कमजोर हो जाती है।

इसी प्रकार मिट्टी के कणों की मापें भी उसके अग्नि सहने के गुण पर प्रभाव डालती है। एक सीमा तक मोटे कणों वाली मिट्टी अधिक अग्निसह होती है।

अच्छी अग्निसह मिट्टी महीन तथा चिकनी होती है और उसका रंग सफेद होता है। यह कोयले की खानों के पास पाई जाती है।

अग्निसह मिट्टी अँगीठी, भट्ठी तथा चिमनी इत्यादि के भीतर, जहाँ आग की गरमी अत्यधिक होने से साधारण मिट्टी की ईंटें अथवा पलस्तर के चटक जाने की आशंका रहती है, अग्निसह ईंट अथवा लेप के रूप में काम में लाई जाती है।