अग्नि सूक्त ऋग्वेद के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त है। इसके ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र है। यह विश्वामित्र के पुत्र हैं। इसके देवता "अग्नि" हैं । इसका छन्द "गायत्री-छन्द" है । इस सूक्त का स्वर "षड्जकृ" है। गायत्री-छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन पाद (चरण) होते हैं। इस प्रकार यह छन्द चौबीस अक्षरों (स्वरों) का छन्द होता है।

अग्नि-सूक्त में कुल नौ मन्त्र हैं। संख्या की दृष्टि से सम्पूर्ण वैदिक संस्कृत में इन्द्र (250) के बाद अग्नि (200) का ही स्थान है , किन्तु महत्ता की दृष्टि से अग्नि का सर्वप्रमुख स्थान है। स्वतन्त्र रूप से अग्नि का 200 सूक्तों में स्तवन किया गया है । सामूहिक रूप से सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में अग्नि का 2483 सूक्तों में स्तवन किया गया है।

अग्नि पृथ्वी स्थानीय देवता है। इनका पृथ्वीलोक में प्रमुख स्थान है।

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