अग्रदास
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अग्रदास (१५वीं शताब्दी) एक संत और कवि थे। वें कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे। अग्रदासजी के शिष्य नाभादास जी थे, जिन्होंने 'भक्तमाल' धार्मिक ग्रन्थ की रचना की थी। भक्तिकाल के कवियों में स्वामी अग्रदास के शिष्य नाभादास का विशिष्ट स्थान है।[1][Need quotation to verify]
अग्रदास "रसिक संप्रदाय" के संस्थापक आचार्य थे। उनका जन्म १५वीं शती का उत्तरार्द्ध बताया जाता हैं। अग्रदास, स्वामी रामानंद के शिष्य-परम्परा[2] के चौथी पीठी में हुए- रामानंद, अनंतानंद, श्रीकृष्णदास पयहारी, अग्रदास।[3][4][Need quotation to verify]
अग्रदास जी का एक पद इस प्रकार है -
पहरे राम तुम्हारे सोवत। मैं मतिमंद अंधा नहिं जोवत॥
अपमारग मारग महि जान्यो। इंद्री पोषि पुरुषारथ मान्यो॥
औरनि के बल अनतप्रकार। अगरदास के राम अधार॥
कृतियाँ
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स्वामी अग्रदास की लिखी निम्न पुस्तकें हैं:
- हितोपदेश उपखाणाँ बावनी
- ध्यानमंजरी
- रामध्यानमंजरी
- पदावली
- कुंडलिया[5]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 4”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 107
- ↑ "Shri Anantanandacharyakritam Shriramamantrarajaparampara Stotram". sanskritdocuments.org. Retrieved 2023-12-03.
- ↑ बच्चन सिंह (२००९). हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास. राजकमल प्रकाशन. p. १५४. ISBN 818361180X, 9788183611800.
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value: invalid character (help) - ↑ जगदीश प्रसाद पाण्डेय (२००८). अवधी ग्रथावली (खंड ३). वाणी प्रकाशन. p. २३. ISBN 8181439031, 9788181439031.
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value: invalid character (help) - ↑ गणपति चन्द्र गुप्त. हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास. राजकमल प्रकाशन. p. ४१२. ISBN 8180312046, 9788180312045.
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