अग्रसेन जयंती
महाराजा अग्रसेन एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, युग पुरुष, तपस्वी, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे।
अग्रसेन जयंती | |
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आधिकारिक नाम |
अग्रसेन जयंती अग्रसेन महाराज जयंती महाराजा अग्रसेन जयंती |
अन्य नाम | अग्रसेन महाराज की जयंती |
मनाने वाले | हिन्दू, जैन, अग्रहरि[1], अग्रवाल |
प्रकार | जयंती |
महत्व | महाराजाधिराज श्री अग्रसेन महाराज का जन्मदिन |
तिथि | नवरात्री का प्रथम दिवस |
संबंधित | अग्रसेन |
इनका जन्म द्वापर युग के अंत व कलयुग के प्रारंभ में हुआ था। वें भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विन शुक्ल प्रतिपदा हुआ, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिवस को अग्रसेन महाराज जयंती के रूप में मनाया जाता हैं।[2][3]
अग्रसेन जयंती पर अग्रसेन के वंशज समुदाय द्वारा अग्रसेन महाराज की भव्य झांकी व शोभायात्रा नकाली जाती हैं और अग्रसेन महाराज का पूजन पाठ, आरती किया जाता हैं।[4][5]
== सन्दर्भ ==- महर्षि श्री रामगोपाल 'बेदिल'
- ↑ "अग्रहरि समाज ने मनाई अग्रसेन जयंती". दैनिक भास्कर. Sep 26, 2014. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 सितंबर 2014.
- ↑ "कर्मयोगी लोकनायक थे महाराजा अग्रसेन". वेब दुनिया हिंदी. मई 31 2014. मूल से 7 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अगस्त 2014.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "हर्षोल्लास के बीच याद किए गए अग्रसेन महाराज". दैनिक जागरण. 25 Sep 2014.
- ↑ "अग्रसेन जयंती पर भव्य चल समारोह निकला". वेब दुनिया. 29 सितंबर 2011. मूल से 10 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अगस्त 2014.
- ↑ "महाराज अग्रसेन जयंती का शुभारंभ". भास्कर. Oct 01, 2013. मूल से 8 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अगस्त 2014.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
॥ श्री अग्रभागवत महात्म ॥ ॠृषि गण प्रदर्शित
श्री अग्र भागवत ( श्री अग्रोपाख्यानं ) की कथा, मरण को उद्यत दिग्भ्रांत, अशांत परीक्षितपुत्र महाराजा जनमेजय को, लोकधर्म साधना का मार्ग प्रशस्त करने की अभिप्रेरणा हेतु - भगवान वेद व्यास के प्रधान शिष्य महर्षि जैमिनी जी द्वारा,सुनाई गई। परिणाम स्वरूप - अशांत जनमेजय ने परम शांति अर्जित कर, मानव धर्म धारण कर - लोककीर्ति तथा परम मोक्ष दोनों ही प्राप्त किये।
माँ महालक्ष्मी की कृपा से समन्वित, भगवतस्वरूप इस परमपूज्य ग्रन्थ की ॠृषियों ने महत्ता दर्शाते हुए स्वयं वंदना की है।
ऋषय ऊचु: महालक्ष्मीवर इव ग्रन्थो मान्येतिहासक:। तं कश्चित् पुण्ययोगेन प्राप्नोति पुरुषोत्तम: ॥
ॠृषि गण कहते हैं- महालक्ष्मी के वरदान से समन्वित होने के कारण स्वरूप, श्री अग्रसेन का यह उपाख्यान ( पुरुषार्थ गाथा ) सभी आख्यानों में सम्मानीय, श्रेयप्रदाता, और मंगलकारी है। जिसे कोई पुरुषश्रेष्ठ पुण्यों के योग से प्राप्त करता है।
अग्राख्यानं भवेद्यत्र तत्र श्री: सवसु: स्थिरा। कृत्वाभिषेकमेतस्य तत: पापै: प्रमुच्यते ॥
ॠृषि गणकहते हैं - श्री अग्रसेन का यह आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) जहां रहता है, वहां महालक्ष्मी सुस्थिर होकर विराजमान रहती। अर्थात् स्थाई निवास करती हैं। इसका विधिवत अभिषेक करने वाले, सभी पापों से विमुक्त हो जाते हैं।
ग्रंथदर्शन योगोऽयं सर्वलक्ष्मीफलप्रद:। दु:खानि चास्य नश्यन्ति सौख्यं सर्वत्र विन्दति ॥
ॠृषि गणों ने कहा- श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) का सौभाग्य से दर्शन प्राप्त होना, महालक्ष्मीके , अर्थ-धर्म-काम मोक्ष सभी फलों का प्रदायक है। इसके दर्शन कर लेने वालों के, सभी दुखों का विनाश हो जाता है, और सर्वत्र सुखादि की प्रतीति होती है।
दर्शनेनालमस्यात्र ह्यभिषेकेण किं पुन:। विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदये ॥
ॠृषि गणों ने कहा - जिसके दर्शन मात्र से, सभी पापों का इसप्रकार अन्त हो जाता है, जैसे सूर्य के उदित होने से बर्फ पिघल जाती है। फिर जलाभिषेक के महत्त्व की तो बात ही क्या ? अर्थात् अनन्त महात्म है।
प्रशस्यांगोपांगयुक्त: कल्पवृक्षस्वरूपिणे। महासिध्दियुत श्रीमद्ग्रोपाख्यान ते नम: ॥
ॠृषिगण कहते हैं - श्री अग्रसेन के आदर्श जीवन चरित्र के,सभी उत्तमोत्तम अंगों तथा उपांगों से युक्त, कल्पवृक्ष के समान , आठों सिद्धियों से संयुक्त,श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) को, नमन करते हुए ,हम बारम्बार प्रणाम करते हैं।
यह शुभकारी आख्यान जगत में सबके लिये कल्याणकारी हो। ©- रामगोपाल 'बेदिल'