अघोर नाथ गुप्ता
अघोर नाथ गुप्ता (बांग्ला: অঘোরনাথ গুপ্ত) बौद्ध धर्म के अध्यापक और ब्रह्म समाज के एक सदस्य थे।[1] उन्हें उनकी अकस्मात् मृत्यु के पश्चात साधु की उपाधि में दी गई।[2] शिवनाथ शास्त्री ने उनके लिए लिखा, "उसकी हार्दिक विनम्रता गहरी आध्यात्मिकता और बयाना भक्ति समाज के सदस्यों के लिए एक नया रहस्योद्घाटन थी।"[3]
अघोर नाथ गुप्ता | |
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जन्म |
1841 शान्तिपुर |
मौत |
9 दिसम्बर 1881 लखनऊ |
पेशा | ब्रह्म समाज के गुरु और बौद्ध धर्म के शिक्षक |
बौद्ध धर्म से संबंध
संपादित करें1869 में केशव चंद्र सेन ने अपने चार शिष्यों को विश्व के चार मुख्य धर्मों के अध्ययन हेतु नियुक्त किया। गौर गोविंद राय को हिंदू, प्रताप चंद्र मजूमदार को ईसाई, गिरीश चंद्र सेन को इस्लाम और उन्हें बौद्ध धर्म का अध्ययन करना था। त्रैलोक्यनाथ संयाल को संगीत के अध्ययन हेतु नियुक्त कर लिया गया।[4]
बौद्ध धर्म की जड़ तक जाने के लिए उन्होंने संस्कृत, पाली और यूरोपीय भाषाएँ सीखीं। उनका सबसे बड़ा योगदान है शाक्यमुनिचरित ओ निर्वाणतथ्य इसमें उन्होंने बौद्ध धर्म पर लिखे भाष्यों को उद्धृत किया। यह बौद्ध धर्म पर लिखी गई बंगाली की पहली पुस्तक थी। उन्होंने श्लोकसंग्रह के संपादन में केशव चंद्र सेन की सहायता की। उन्होंने धर्मतत्त्व व सुलभ समाचार में अत्यधिक लिखा।[1]
कार्य
संपादित करें- शाक्यमुनिचरित ओ निर्वाणतथ्य
- ध्रुव ओ प्रहलाद
- देवर्षि नारदेर नवजीबोन लाभ
- धर्मसोपान
- उपदेशावली[1]
स्रोत
संपादित करें- ↑ अ आ इ Sengupta, Subodh Chandra and Bose, Anjali, Sansad Bangali Charitabhidhan (Biographical dictionary) बंगाली में, p3, Sahitya Samsad, ISBN 81-85626-65-0
- ↑ Sastri, Sivanath, History of the Brahmo Samaj, 1911-12/1993, p248, Sadharan Brahmo Samaj.
- ↑ Sastri, Sivanath, p414.
- ↑ Sastri, Sivanath, p208