अचलेश्वर

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भारत के पंजाब प्रांत के बटाला स्टेशन से ६ किलोमीटर पर यह स्थान है, यहां पर स्वामी कार्तिकेय का उत्तर भारत का अति प्राचीन मन्दिर है, स्वामी कार्तिकेय की पूजा कालसर्प दोष के लिये की जाती है। इस मन्दिर के पास एक बहुत बड़ा सरोवर है, यहां पर मुख्य मन्दिर में स्वामी कार्तिकेय और भगवान शिव और माता पार्वती देवी की प्राचीन मूर्तिया है, सरोवर के मध्य में भी भगवान शिव का मन्दिर है, कार्तिकेय ही राहु के देवता और गणेशजी केतु के देवता माने जाते हैं, कहा जाता है कि दोनो ने अपने अपने को उत्तम मानने के लिये भगवान शिवजी से न्याय करने के लिये कहा, उन्होने पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिये दोनो से कहा, कार्तिकेय और गणेशजी दोनो ने आज्ञा को शिरोधार्य करने के बाद अपनी अपनी यात्रा शुरु की, कार्तिकेय तो पृथ्वी परिक्रमा के लिये चल दिये जबकि गणेशजी ने भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा करके पृथ्वी परिक्रमा का लाभ उठाया, कार्तिकेय को रास्ते में ही पता लग गया, वे जहां थे वही पर रुक गये, कहा जाता है वे यहीं पर रुके थे, तभी से इस स्थान को अचलेश्वर के नाम से जाना जाता है, यहां पर नागों के देवताओं वसुओं और गणों ने यज्ञ किया था, गुरु नानकदेव भी यहां पर कुछ समय के लिये रहे थे और साधना की थी, कार्तिक शुक्ला नवमी और दसमी को यहां पर मेला लगता है, इन दोनो तिथियों में यहां पर स्नान करने से काल्सर्प दोष का प्रभाव समाप्त होजाता है।