अच्युतपक्षाचार्य संपादित करें

यह अद्वेतमत के संन्यासी और माध्वाचार्य के दीक्षा गुरु थे, माध्वाचार्य ने ग्यारह वर्ष की अवस्था में सनककुलोद्वभव अच्युतपक्षाचार्य नामान्तर में शुद्धानन्द से दीक्षा ली थी, सन्यास लेकर इन्होंने गुरु के पास ही वेदान्त पढना आरम्भ कर दिया था, किन्तु गुरु की व्याख्या से इनको संतोश नहीं होने के कारण वे इनसे प्रतिवाद करने लगते थे, कहते है कि माध्वाचार्य के प्रभाव से इनके गुरु अच्युतपक्षाचार्य भी बाद में द्वेतवादी वैष्णव हो गये थे।