अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्‍ला भइया

कुंवर अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्‍ला भइया,भारत के उत्तर प्रदेश की पंद्रहवी विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोण्‍डा जिले के करनैलगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की ओर से चुनाव में भाग लिया। [1] वर्ष 1989 के चुनाव में करनैलगंज विधानसभा क्षेत्र से कुंवर अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। करनैलगंज का क्षेत्र मूलरूप से गन्ने की मिठास व सरयू घाघरा नदी के पावन संगम सूकरखेत, पसका वाराह क्षेत्र के रूप में विख्यात है। इस पावन धरती पर महाकवि तुलसी की जन्मभूमि राजापुर, गुरु नर हरिदास का आश्रम, श्रृंगी ऋषि आश्रम सिंगरिया, मां वाराही मंदिर समेत विभिन्न पौराणिक व ऐतिहासिक स्थल हैं। करनैलगंज क्षेत्र के दायरे में कई छोटे-छोटे कस्बे, हॉट बाजार हैं। यहां पान, चाय, होटल से लेकर नाई की दुकान तक, गली गलियारे से खेत खलिहान तक, युवा, वृद्ध, महिला, पुरुष, नौजवान की जुबान पर राजनीतिक चर्चा जोरों पर है।

कुंवर अजय प्रताप सिंह बघेल उर्फ लल्‍ला भइया

कार्यकाल
1989 से 2022

राष्ट्रीयता भारतीय

बताया जा रहा है कि कुंवर अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया बरगदी कोट करनैलगंज के कुंवर कन्हैया कहे जाते हैं। इनको राजनीति विरासत में मिली है। इनके पिता श्री मदन मोहन सिंह 1967 में निर्दलीय चुनाव लड़े और अच्छे मतों से जीते। कुंवर अजय प्रताप सिंह लल्ला भैया ने भी पिता के तर्ज पर अपना राजनीतिक सफर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शुरू किया और चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। उस समय युवा वर्ग सबसे ज्यादा उत्साहित रहा है, जब लल्ला भैया सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। लाला भैया वर्ष 1991 में पाला बदल कर भाजपा में शामिल हुए। 1993 में कुंवर अजय प्रताप सिंह चुनाव जीत गए। 1996 में अजय प्रताप सिंह चुनाव लड़े और जीते। वर्ष 2002 में भाजपा ने अंतिम समय पर टिकट दिया क्योंकि वह बीमार भी थे इसलिए जनता के बीच जा भी नहीं पाए और कुंवर अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया कुछ वोट से हार गए

वर्ष 2007 लल्ला भैया एक बार फिर पाला बदल कर हाथी पर सवार होकर ब्रिज कुंवर को बसपा से जिताने में कामयाब रहे। लेकिन वर्ष 2012 के चुनाव में अजय प्रताप सिंह को फिर हार का सामना करना पड़ा और योगेश प्रताप सिंह सपा से चुनाव जीत कर उप्र सरकार में मंत्री बने, लेकिन बीच में ही बर्खास्त कर दिए गए। अब जब 2017 के चुनाव की बारी है और नाराज योगेश प्रताप को सपा छोड़ भाजपा में जाने का कयास लगाया जा रहा था। इससे पूर्व प्रतिद्वंदी अजय प्रताप सिंह ने बसपा से पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम कर अपनी दावेदारी पेश कर दी है। हालांकि पहले से ही टिकट की आस लगाए पुराने कार्यकर्ता अब हतप्रभ हैं कि पार्टी दलबदलू को टिकट देगी या फिर पुराने कार्यकर्ता को टिकट देगी।

बताते चलें वर्ष 1967 में मदन मोहन सिंह, वर्ष 69 में संसोपा से मंगल, वर्ष 74 में कांग्रेस से रघुराज प्रताप, वर्ष 77 में त्रिवेणी सिंह, उमेश्वर प्रताप सिंह वर्ष 80,85 में कांग्रेस से जीते जबकि अजय प्रताप सिंह लल्ला भैया वर्ष 89,91,93 और 96 में विधायक बने। वहीं उमेश्वर प्रताप सिंह के पुत्र योगेश प्रताप सिंह 2002 में बसपा से जीते लेकिन सपा की मदद करने से टिकट काट कर अजय प्रताप की बहन कुंवर ब्रिज सिंह को टिकट मिल गया जिससे योगेश को चुनाव हारना पड़ा, लेकिन वर्ष 2012 में पुनः योगेश चुनाव जीत गए। लेकिन इस बार पुनः अजय प्रताप सिंह के घर वापसी से यहां के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को लेकर चर्चाएं तेज हो गयी हैं कि पार्टी दलबदलुओं पर विश्वास करती है या फिर पुराने कार्यकर्ताओं पर।

2017 में दलबदलू अजय प्रताप सिंह को टिकट मिला और भारी वोटों से योगेश प्रताप सिंह को शिकस्त दी। हालांकि जीत का सेहरा मोदी लहर के सर पे गया। 2021 के चुनाव में पुनः अजय प्रताप सिंह टिकिट की उम्मीद लगाए बैठे थे मगर इस बार भाजपा से टिकट मिला परसपुर ब्लॉक प्रमुख अजय कुमार सिंह को। जिससे अजय प्रताप सिंह के फिर से विधायक बनने की उम्मीद धूमिल होती दिख रही है। अभी उनकी तरफ से कोई इशारा नहीं मिला है कि वो किसी अन्य पार्टी या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। वैसे हाल ही में उनके घर पर योगेश प्रताप सिंह के दौरे से कयास लग रहे है कि वे अपना समर्थन योगेश प्रताप सिंह को देकर चुनाव का रुख बदल दे। और करनैलगंज पर लल्ला और योगेश का दबदबा बना रहे और कोई बाहरी आकर चुनाव न जीत पाए। देखते हैं आगे क्या होता है...

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.