अडिंग वर्तनाम में गोवर्धन के समीप एक ऐतिहासिक ग्राम(वर्तमान में कस्बा) है| अडिंग का प्राचीन नाम अरिष्ठा था[1]| जाट शासनकाल में मथुरा पांच भागों में बंटा हुआ था – अडींग, सोंसा, सौंख, फरह और गोवर्धन[2]

अडींग किला फौदा सिंह

26 जून 1724 ईस्वी में डीग के राजा बदन सिंह ने सौंख के हठीसिंह और अडिंग के फौदसिंह के साथ मित्रता बढाई दोनों में आपसी सहयोग के लिए समझोते हुए बदन सिंह ने दोनों पालो में एकता स्थापित करने के उद्देश्य से सिन-खुट नामक एक संगठन की स्थापना की थी|इसी के बाद कुंवर सूरजमल ने इनकी सहायता से सोगर के राजा खेमकरण पर स्थाई रूप से विजय प्राप्त करके भरतपुर के किले की नीव रखी थी| फौदासिंह ने अपने जीवन काल में मुगलों का असंख्य बार सामना किया जिनमे तैती का युद्ध, राधाकुंड का युद्ध ,बहज का युद्ध मुख्य है | बहज के युद्ध में मुगलों को जाटों के हाथो परास्त होकर भागना पड़ा था|[3]

फौंदासिंह मृत्यु के बाद जैतसिंह और बालक चन्द यहाँ के जागीरी शासक हुए यह क्षेत्र इस समय भरतपुर रियासत का एक अंग था| कवि चतुरानन्द ने गढ़ पथैना रासो में सआदत खान और पथैना की सेना  के मध्य माघ सुदी 11 सन 1777 ईस्वी लडे गये इस युद्ध में अडिंग के जाट सरदारों की वीरता का वर्णन किया है | कवि चतुरानन्द ने पथेना के युद्ध में सौंख , अडिंग के इन तोमर वंशी खुटेलो को मुगलों के लिए काल (मृत्यु) लिखा है| जिन्होंने अपनी तलवार की धार से सैकड़ो मुगलों का रक्त बहा दिया था| इस युद्ध में सआदत खान के पठान मुगलों के खिलाफ खुटेल वीरो ने दोनों हाथो से तलवार चलाकर जोहर दिखाए थे|[4]

इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार नाजिम उद्दोला, मराठाओ और अडींग ,भरतपुर के जाट राजाओं के मध्य 6 अप्रैल 1770 ई. को अडिंग के किले पर एक युद्ध हुआ था| इतिहासकार इस युद्ध को जाट मराठा युद्ध बोलते है|इस युद्ध के बाद अडिंग का पतन हो गया और इसी समय अडिंग से तोमर(कुंतल) जाटों का एक समूह मारवाड़ पंहुचा जिन्हें वर्तमान में अडिंग से आने के कारन ही अडिंग नाम से जाना जाता है|

जाटों के पतन के कुछ समय बाद यह क्षेत्र मराठो और अंग्रेजो के अधीन आ गया था। अंग्रेजो ने अडिंग में कर वसूलने के लिए अपने अधिकारी नियुक्त किये थे इनमे खत्री बेनीराम,बाबा विश्वनाथ, गोविन्ददास प्रमुख नाम है |अडिंग से अंग्रेजी काल में 1,04,034 rs राजस्व प्राप्त होता था।अंग्रेजो ने जाटों के भय से 1818 ईस्वी में सर्वप्रथम कश्मीरी पंडित बाबा विश्वनाथ को राजस्व वसूली का कार्य दिया था| कश्मीरी पंडित बाबा विश्वनाथ की मृत्यु के पश्चात लाल गोबिंददास को कर वसूल करने का अधिकार अंग्रेजो ने प्रदान किये अडिंग में प्राचीन किला और पिपलेश्वर महादेव ,बलदेव बिहारी जी के मंदिर का निर्माण फौदासिंह ने करवाया था।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Growse, F. S. (1993-12). Mathura - A District Memoir (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120602281. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. Growse, F. S. (1993-12). Mathura - A District Memoir (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120602281. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. SHARMA, UPENDRANATH (1977). Jaton Ka Itihas (अंग्रेज़ी में). publisher not identified.
  4. SHARMA, UPENDRANATH (1977). Jaton Ka Itihas (अंग्रेज़ी में). publisher not identified.