अद्वैत आश्रम

यह विवेकानंद के मूल लेखन प्रकाशित करता है

अद्वैत आश्रम रामकृष्ण मठ की एक शाखा आश्रम और प्रकाशन विभाग है, जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले में 'मायावती' नामक स्थान पर स्थित है। यह स्थान समुद्र तट से ६४०० फीट ऊंचाई पर टनकपुर रेलवे स्टेशन से ८८ किमी तथा काठगोदाम रेलवे स्टेशन से १६७ किमी दूर चम्पावत जिले के अंतर्गत लोहाघाट नामक स्थान से उत्तर पश्चिम जंगल में ९ किमी पर है। देवदार, चीड़, बांज व बुरांश की सघन वनराजि के बीच अद्भु्त नैसर्गिक सौन्दर्य के मध्य मणि के समान यह आश्रम आगंतुकों को निर्मल शान्ति प्रदान करता है। यह आश्रम रामकृष्ण मिशन के अंग्रेजी और हिन्दी पुस्तकों का एक प्रमुख प्रकाशक है। प्रकाशन विभाग का कार्यालय कोलकाता में स्थित है।

अद्वैत आश्रम

रामकृष्ण मिशन का प्रतीक चिह्न
स्थापना 1899
उद्देश्य परोपकार, धार्मिक अध्ययन, आध्यात्मिकता
मुख्यालय बेलुड़ मठ
निर्देशांक 29°22′23″N 80°03′41″E / 29.373174°N 80.061316°E / 29.373174; 80.061316निर्देशांक: 29°22′23″N 80°03′41″E / 29.373174°N 80.061316°E / 29.373174; 80.061316
सेवित
क्षेत्र
सम्पूर्ण विश्व
जालस्थल advaitaashrama.org
अद्वैत आश्रम, मायावती

स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से उनके संन्यासी शिष्य स्वामी स्वरूपानंद और अंग्रेज शिष्य कैप्टन जे एच सेवियर और उनकी पत्नी श्रीमती सी ई सेवियर ने मिलकर १९ मार्च १८९९ में इसकी स्थापना की थी। सन् १९०१ में कैप्टन जे एच सेवियर के देहांत का समाचार जानकर स्वामी विवेकानंद श्रीमती सेवियर को सांत्वना देने के निमित्त मायावती आये थे। तब वे इस आश्रम में ३ से १८ जनवरी तक रहे। कैप्टेन की मृत्यु के पंद्रह वर्ष बाद तक श्रीमती सेवियर आश्रम में सेवाकार्य करती रहीं।

स्वामी विवेकानंद की इच्छानुसार मायावती आश्रम में कोई मंदिर या मूर्ति नहीं है, इसलिए यहाँ सनातनी परम्परानुरूप किसी प्रतीक की पूजा नहीं होती । यहां हर एकादशी के दिन सांयकाल में रामनाम संकीर्तन होता है।

१९०३ में यहाँ एक धर्मार्थ रूग्णालय की स्थापना की गई, जिसमें गरीबों की निशुल्क चिकित्सा की जाती है। यहाँ की गौशाला में अच्छी नस्ल की स्वास्थ्य/स्वस्थ गायें हैं, यात्रीगण इनके शुद्ध, ढूध का रसास्वादन प्रात: नाश्ते के समय और रात्रि भोजन के उपरांत ले सकते हैं। आश्रम में १९०१ में स्थापित एक छोटा पुस्तकालय भी है, जिसमें अध्यात्म व् दर्शन सहित अनेक विषयों से सम्बद्ध पुस्तकें संकलित हैं। आश्रम से लगभग दो सौ मीटर दूर एक छोटी अतिथिशाला भी है, जहां बाहर से आने वाले साधकों के ठहरने की व्यवस्था है।

प्रबुद्ध भारत पत्रिका का प्रकाशन यहीं से आरम्भ हुआ।

बाहरी कड़ियाँ

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