अधिदर्शन (Metaphilosophy), जिसे कभी-कभी दर्शन का दर्शन (philosophy of philosophy) भी कहा जाता है, स्वयं दर्शनशास्त्र को दर्शनशास्त्रीय सिद्धांतों के प्रयोग से समझने की क्रिया को कहते हैं। इसमें दर्शनशास्त्र के ध्येय, उसकी सीमाएँ और उसकी अध्ययन-प्रणालियाँ शामिल हैं। जहाँ दर्शनशास्त्र में अस्तित्व के बारे में, वस्तुओं की वास्तविकता पर, ज्ञान-प्राप्ति की सम्भावनाओं पर और सत्य के गुणों व लक्षणों के बारे में अध्ययन होता है, वहाँ अधिदर्शन में इन प्रशनों के उत्तर में किये गये प्रयासों के गुणों, ध्येयों और विधियों का स्वयं अध्ययन करा जाता है। उदाहरण के लिये अधिदर्शन में पूछा जाता है कि दर्शनशास्त्र क्या है, उसमें क्या प्रशन पूछे जाने चाहिये, उन प्रशनों का उत्तर कैसे मिल सकता है और उन उत्तरों से क्या ध्येय पूर्ण होगा।[1][2]

इन्हें भी देखें

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  1. Nicholas Joll (November 18, 2010). "Contemporary Metaphilosophy". Internet Encyclopedia of Philosophy (IEP). मूल से 5 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 अप्रैल 2018.
  2. Armen T Marsoobian (2004). "Metaphilosophy". प्रकाशित John Lachs; Robert Talisse (संपा॰). American Philosophy: An Encyclopedia. पपृ॰ 500–501. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 020349279X. मूल से 18 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 अप्रैल 2018. Its primary question is "What is philosophy?"