अध्यारोपापवाद (अध्यारोप + अपवाद = पहले अध्यारोप, फिर अपवाद (हटाना)) अद्वैत वेदांत में आत्मतत्व के उपदेश की वैज्ञानिक विधिब्रह्म के यथार्थ रूप का उपदेश देना अद्वैत मत के आचार्य का प्रधान लक्ष्य है। ब्रह्म है स्वयं निष्प्रपंच और इसका ज्ञान बिना प्रपंच की सहायता के किसी प्रकार भी नहीं कराया जा सकता। इसलिए आत्मा के ऊपर देहधर्मों का आरोप प्रथमत: करना चाहिए अर्थात्‌ आत्मा ही मन, बुद्धि, इंद्रिय आदि समस्त पदार्थ है। यह 'प्राथमिक विधि अध्यारोप' के नाम से प्रसिद्ध है। अब युक्ति तथा तर्क के सहारे यह दिखलाना पड़ता है कि आत्मा न तो बुद्धि है, न संकल्प-विकल्परूप मन है, न बाहरी विषयों को ग्रहण करनेवाली इंद्रिय है और न भोग का आयतन यह शरीर है। इस प्रकार आरोपित धर्मों को एक-एक कर आत्मा से हटाते जाने पर अंतिम कोटि में उसका शुद्ध सच्चिदानन्द रूप बच जाता है वही उसका सच्चा रूप होता है। इसका नाम है अपवाद विधि (अपवाद=दूर हटाना)। ये दोनों एक ही पद्धति के दो अंश हैं।

किसी अज्ञात तत्त्व के मूल्य और रूप जानने के लिए इस पद्धति का उपयोग आज का बीजगणित भी निश्चित रूप से करता है। उदाहरणार्थ यदि क2 + 2क = 24 इस समीकरण में अज्ञात क का मूल्य जानना होगा, तो प्रथमत: दोनों ओर संख्या 1 जोड़ देते हैं (अध्यारोप) जिससे दोनों पक्ष पूर्ण वर्ग का रूप धारण कर लेते हैं और अंत में आरोपित संख्या को दोनों ओर से निकाल देना पड़ता है, तब अज्ञात क का मूल्य 4 निकल आता है।

समीकरण की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होगी

2 + 2क = 24
इसलिये क2 + 2क + 1 = 24 + 1 (अध्यारोप)
अर्थात्‌ (क+1)2= (5)2
अत: (क+1) = 5
अतएव (क+1) -1 = (5) -1 (अपवाद)
इसलिये क= 4

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