अनागामी
निर्वाण के पथ पर अर्हत् पद के पहले की भूमि अनागामी की होती है। जब योगी समाधि में सत्ता के अनित्य-अनात्म-दु:ख-स्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है तब उसके भवबंधन एक एक कर टूटने लगते हैं। जब सत्काय दृष्टि, विचिकित्सा, शीलव्रतपराभास, कामछंद और व्यापाद्-ये पाँच बंधन नष्ट हो जाते हैं तब वह अनागामी हो जाता है। मरने के बाद वह ऊपर की भूमि में उत्पन्न होता है। वहीं उत्तरोत्तर उन्नत होते हुए अविद्या का नाश कर अर्हत् पद का लाभ करता है। वह इस लोक में फिर जन्म नहीं ग्रहण करता। इसीलिए वह अनागामी कहा जाता है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Rhys Davids, T.W. & William Stede (eds.) (1921-5). The Pali Text Society’s Pali–English Dictionary. Chipstead: Pali Text Society. A general on-line search engine for the PED is available at https://web.archive.org/web/20100226181115/http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/pali/.