अनुगूँज
अनुगूँज गीतांजलि श्री का पहला कहानी संग्रह है। इसमें संकलित दस कहानियों में जो संवेदना जो विद्रोह और प्रतिरोध है वह स्वयं को उजागर करते वक्त पात्रों की कमजोर होते स्वाभिमान अनदेखा नहीं करती, इशारों और बिम्बों के सहारे चित्रण करने वाला शिल्प और शिक्षित वर्ग की आधुनिक मानसिकता को दिखाती उनकी बोलचाल की भाषा, गीतांजलि श्री की विशेष लेखकीय पहचान बनाती है। यूँ तो इन कहानियों का केन्द्र लगभग हर बार-एक ‘दरार’ को छोड़कर- बनता है शिक्षित मध्यमवर्गीय नारियों से, पर इसमें वर्णित होते हैं हमारे आधुनिक नागरिक जीवन के विभिन्न पक्ष। जैसे वैवाहिक तथा विवाहेत्तर स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पारिवारिक परिस्थितियाँ, सामाजिक रूढ़ियाँ, हिन्दू-मुस्लिम समस्या, स्त्रियों का पारस्परिक मैत्री इत्यादि। यहाँ सीधा, सपाट कुछ भी नहीं है। हर स्थिति, हर सम्बन्ध, हर संघर्ष में व्याप्त रहते हैं परस्पर विरोधी स्वर। यही विरोधी स्वर रचते हैं हर एक कहानी का एक अलग राग।
अनुगूँज | |
---|---|
मुखपृष्ठ | |
लेखक | गीतांजलिश्री |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कहानी संग्रह (साहित्य) |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | २००६ (नवीनतम संस्करण) |
पृष्ठ | १३६ |