अनुच्छेद 13 (भारत का संविधान)
अनुच्छेद 13 भारत के संविधान का एक अनुच्छेद है। यह संविधान के भाग 3 में शामिल है। [1] यह घोषणा करता है कि “मूल अधिकारों से असंगत या उन्हें कम करने वाली विधियाँ शून्य होंगी” । अर्थात ये विधियाँ न्यायिक समीक्षा के योग्य है ।
अनुच्छेद 13 (भारत का संविधान) | |
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मूल पुस्तक | भारत का संविधान |
लेखक | भारतीय संविधान सभा |
देश | भारत |
भाग | भाग 3 |
प्रकाशन तिथि | 1949 |
पूर्ववर्ती | अनुच्छेद 12 (भारत का संविधान) |
उत्तरवर्ती | अनुच्छेद 14 (भारत का संविधान) |
यह भारत के उच्चतम और उच्च न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह मूल अधिकारों का उल्लंघन करने वाली किसी भी कानून को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर सकें। यह न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रहरी बनाता है । यह शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 के तहत और उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 226 के तहत प्राप्त है। अनुच्छेद 13 का खंड (2) इस प्रकार है-" राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी[2]
पृष्ठभूमि
संपादित करेंइस अनुच्छेद को मौलिक अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाला कानून भी कहा जाता है। अनुच्छेद 13 में निम्न उपबंध किये गए हैं:-
- इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस सीमा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
- राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगी ।
- इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ”विधि” के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ;
(ख) ”प्रवृत्त विधि” के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है ।
अनुच्छेद -13 (4) : इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी । [3]
संशोधन
संपादित करें24 में संशोधन अधिनियम 1971 द्वारा अनुच्छेद 13 और 368 का संशोधन करके यह स्पष्ट किया गया कि अनुच्छेद 368 में अधिकथित प्रक्रिया के अधीन मूल अधिकारों का संशोधन किया जा सकता है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ (संपा॰) प्रसाद, राजेन्द्र (1957). भारत का संविधान. पृ॰ 5 – वाया विकिस्रोत. [स्कैन ]
- ↑ डॉ. दुर्गा दास, बसु (2011). भारत का संविधान एक परिचय (2011 संस्करण). नागपुर: lexis nexis. पृ॰ 80. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788180385605.
- ↑ "Article 13: Laws inconsistent with or in derogation of the fundamental rights". Constitution of India.
टिप्पणी
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंविकिस्रोत में इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है: |