अनटू दिस लास्ट, अंग्रेज लेखक रस्किन की एक पुस्तक है। जिसका अर्थ है - इस अंतवाले को भी। यह एक अर्थनीति सम्बन्धी लेख शृंखला के रूप में दिसम्बर १८६० को एक मासिक पत्रिका (Cornhill Magazine) में प्रकाशित हुआ था। रस्किन ने इन लेखों को सन १८६२ में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया।

यह पुस्तक १८वीं एवं १९वीं शताब्दी के पूँजीवादी विचारकों ली तीव्र आलोचना करती है। सारतः रस्किन को सामाजिक अर्थनीति का जनक कहा जा सकता है।

यह पुस्तक गाँधीजी को सन १९०४ में हेनरी पोलाक से प्राप्त हुई। गांधीजी पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा था। उन्होने गुजराती में सर्वोदय नाम से सन १९०८ में इसका अनुवाद किया। गांधीजी के अधिकांश सामाजिक और आर्थिक विचार "अन्टु दिस लास्ट" से प्रभावित थे।

पुस्तक का सारांश संपादित करें

इस पुस्तक में मुख्य: तीन बातें बताई गई हैं-

(1) व्यक्ति का श्रेय समष्टि के श्रेय में निहित है।

(2) वकील का काम हो या नाई का, दोनों का मूल्य समान ही है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यवसाय द्वारा आजीविका चलाने का समान अधिकार है।

(3) मजदूर, किसान और कारीगर का जीवन ही सच्चा और सर्वोत्कृष्ट जीवन है।

पुस्तक का आधार संपादित करें

इस पुस्तक के नाम का आधार बाईबिल की एक कहानी है। अंगूर के एक बाग के मालिक ने अपने बाग में काम करने के लिए कुछ मजदूर रखे। मजदूरी तय हुई एक पेनी रोज। दोपहर को ओर तीसरे पहर शाम को जो बेकार मजदूर मालिक के पास आए, उन्हें भी उसने काम पर लगा दिया। काम समाप्त होने पर सबको एक पेनी मजदूरी दी, जितनी सुबहवाले को, उतनी ही शामवाले को। इसपर कुछ मजदूरों ने शिकायत की, तो मालिक ने कहा, ""मैंने तुम्हारे प्रति कोई अन्याय तो किया नहीं। क्या तुमने एक पेनी रोज पर काम मंजूर नहीं किया था। तब अपनी मजदूरी ले लो और घर जाओ। मैं अंतवाले को भी उतनी ही मजदूरी दूँगा, जितनी पहलेवाले को।""

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें