अपने अपने अजनबी सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय द्वारा लिखा गया हिन्दी उपन्यास है। यह अज्ञेय का तीसरा उपन्यास है। इसपर अस्तित्ववाद का प्रभाव देखने को मिलता है। इस उपन्यास की प्रमुख पात्र योके द्वारा अपनी इच्छा मृत्यु पा लेने की चाहत अस्तित्ववाद का ही उदाहरण है। ‘मृत्यु से साक्षात्कार’ को विषय बनाकर मानव के जीवन और उसकी नियति का इतने कम शब्दों में मार्मिक और भव्य विवेचन इस उपन्यास की गरिमा का मूल है। [1]

विशेषताएँ संपादित करें

अपने अपने अजनबी उपन्यास में कुल तीन अध्याय हैं। इन अध्यायों का नामकरण पात्रों के नाम के आधार पर किया गया है। जैसे- 'योके और सेल्मा' , 'सेल्मा' , 'योके' आदि। सेल्मा कहती है कि "वरण की स्वतंत्रता कहीं नहीं है, हम कुछ भी स्वेच्छा से नहीं चुनते हैं।"[2] उसके इस कथन को योके अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी झुठलाने का प्रयास करती है। वह अपनी मृत्यु को अपनी इच्छा से चुनती है।

पात्र संपादित करें

  • सेल्मा[3]
  • योके
  • ऐकेलोफ
  • जगन्नाथन्
  • पॉल सोरेन

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

  1. "पुस्तक.ऑर्ग". मूल से 29 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जनवरी 2019.
  2. अज्ञेय (२०१९). अपने अपने अजनबी. नयी दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. पृ॰ 64.
  3. अज्ञेय (२०१९). अपने अपने अजनबी. नयी दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. पृ॰ ४३. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-263-3053-9.