अपरिणत प्रसव
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जब गर्भ २८ से ४० सप्ताह के बीच बाहर आ जाता है तब उसे अपरिणत प्रसव (प्रिमैच्योर लेबर) कहते हैं। २८ सप्ताह और उससे अधिक समय तक गर्भाशय में स्थित भ्रूण में जीवित रहने की क्षमता मानी जाती है। अमरीकन ऐकैडेमी ऑव पीडऐट्रिक्स ने सन् १९३५ में यह नियम बनाया था कि साढ़े पाँच पाउंड या उससे कम भार का नवजात शिशु अपरिणत शिशु माना जाए, चाहे गर्भकाल कितने ही समय का क्यों न हो। दि लीग आव नेशंस की इंटरनैशनल मेडिकल कमेटी ने भी यह नियम स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार के प्रसव लगभग दस प्रतिशत होते हैं।
अपरिणत प्रसव के कारण
संपादित करें(१) वे रोग जो गर्भावस्था में माता के स्वास्थ्य के लिए आपत्तिजनक हैं, जैसे जीर्ण वृक्क कोप (क्रॉनिक नेफ्राइटिस), गुर्दे की बीमारी, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर), मधुमेह (डायाबिटी.ज) और उपदंश (सिफिलिस)
(२) गर्भावस्था क कुछ विशेष रोग, जैसे गर्भावस्थीय विषाक्तता (टॉक्सोमिया ऑव प्रेगनैन्सी), प्रसवपूर्व रुधिर-स्राव
(३) संक्रामक रोग, जैसे गोणिकार्ति (पाइलाइटीज), इन्फलुएंजा, न्यूमोनिया, उंडुकार्ति (ऐपेंडिसाइटिस), पिताशयार्ति (कोलिसिस्टाइटिस), माता की विकृत मनोस्थिति, शरीर में रक्त की अत्यधिक कमी, इत्यादि
(४) गर्भाशय में कई भ्रूणों का होना और जलात्यय (हाईड्रेम्नयास)
(५) लगभग ५० प्रतिशत अपरिणत प्रसवों में कोई विशेष कारण विदित नहीं होता।
प्रबंध
संपादित करेंपूर्वोक्त कारणों के अनुसार प्रसववेदना प्रारंभ होते ही उपयुक्त चिकित्सा होनी चाहिए और निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
(१) गर्भकाल में समय समय पर डाक्टरी परीक्षा करानी चाहिए और कोई रोग होने पर उसका उचित उपचार होना चाहिए
(२) रक्तश्राव होने पर उपयुक्त उपचार से अपरणित प्रसव रोका जा सकता है।
(३) प्रसव ऐसे चिकित्सालयों में होना चाहिए जहाँ अपरिणत शिशु के पालन का उचित प्रबंध हो
(४) प्रसवकाल में उचित चिकित्सा न मिलने से बहुत से बालक जन्म के समय, या जन्मते ही मर जाते हैं। इसलिए प्रसवकाल में कुछ उचित नियमों का पालन आवश्यक है, जैसे गर्भाशय की झिल्ली को अधिक काल तक फूटने से बचाना, झिल्ली फूटने पर नाल को गर्भाशय के बाहर निकलने से रोकना : ऐसी औषधियों का प्रयोग न करना जो बालक के लिए हानिप्रद हों, जैसे अफीम या बारबिटयुरेट्स।
(५) प्रसव काल में माता को विटामिन 'के' १० मिलीग्राम चार चार धंटे पर देते रहना और बालक को जन्मते ही विटामिन 'के' १० मिलीग्राम सूई द्वारा पेशी में लगाना
(६) प्रसव के समय बालक का सिर बाहर निकालने के लिए किसी प्रकार के अस्त्र का उपयोग न करना
(७) बच्चे के सिर की रक्षा के हेतु संधानिका छेदन (एपीजियोटामी) करना। कुछ रोगों में, जहाँ माता की रक्षा के लिए गर्भ का अंत करना आवश्यक समझा जाता है, अपरिणत प्रसव करवाना आवश्यक होता है।
- अपरिणत-प्रसव-वेदना उन्पन्न करने की विधियाँ
(१) औषधियों का प्रयोग
(२) गर्भाशय की झिल्ली को फोड़ना या गर्भाशय की ग्रीवा को लेमिनेरिया टेन्टस द्वारा फैलाना
(३) संध्या समय दो आउंस अंडी का तेल (कैस्टर ऑयल) पिलाकर तीन घंटे बाद एनीमा लगाना
(४) यदि प्रातःकाल तक पीड़ा आरंभ न हो तो पिट्टियूटरी के दो दो यूनिट की सूई पेशी में आधे आधे घंटे पर छह बार लगाना।
कुनैन (किवनीन) आदि का प्रयोग अब नहीं किया जाता।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- प्रसव : एक जीवित शिशु को योनि से बाहर दुनिया में लाने का प्रयास
- Premature Babies Resource Centre from AboutKidsHealth.ca Information about the causes of prematurity, the challenges of premature birth, the development of the baby, and the long-term implication of prematurity.
- Prematurity — resource site for parents of premature infants and children
- Primer on Preemies — from the Nemours Foundation