अबचलनगर साहिब, नांदेड़
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महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित सिख पंथ के 10वें गुरु गोबिंदसिंह के पवित्र स्थान जिसे सिख पंथ के पाँच तख्त साहिबान में से एक शिरोमणी तख्त सचखंड श्रीहजूर अबचलनगर साहिब कहा जाता है।
अबचलनगर साहिब, नांदेड़ | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | गुरुद्वारा |
सिख सतगुरु एवं भक्त |
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श्री गुरु नानक देव · श्री गुरु अंगद देव |
श्री गुरु अमर दास · श्री गुरु राम दास · |
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सम्बन्धित विषय |
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श्रीगुरु गोबिंदसिंह जी के आलौकिक जीवन के अंतिम क्षणों से संबंधित यह पवित्र स्थान सिख पंथ के पाँच तख्त साहिबान में से एक शिरोमणी तख्त है। जिसकी प्रसिद्धि भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है।
इतिहास
संपादित करेंजब श्रीगुरु गोबिंदसिंह जी के माता-पिता और चारों बेटे देश के लिए शहीद हो गए, तब वे संसार का भला करते हुए गोदावरी नदी के किनारे बसे नगर नांदेड़ पहुँचे। नांदेड़ में गुरुजी ने लीलाएँ रची। यहाँ आपने गुरुद्वारा नगीना घाट से तीर चलाकर अपने सतगरुओं के समय का तप-स्थान प्रकट किया। वह तीर जहां लगा, वहाँ गुरुजी ने ढाई हाथ जमीन खुदवाकर सतयुगी आसन, करमंडल, खड़ाऊ और माला निकाली और वह स्थान प्रकट किया।
इस स्थान के प्रकट होने पर यहाँ गुरुजी रोज नई-नई लीलाएँ करने लगे। सुबह-शाम दीवान सजने लगे। चारों तरफ आनंदमयी रौनक बढ़ गई। कुछ ही समय बाद सूबा सरहद के नवाब वजीर खान के भेजे कातिलों के हमले के बाद आपने सचखंड गमन की तैयारी की तो अति व्याकुल संगत के पूछने पर आपने फरमाया कि हम आप लोगों को धुर की बानी 'शबद' गुरु के हवाले कर चले हैं, जिससे आपको हर समय आध्यात्मिक अगुवाई की बख्शीष होती रहेगी।
विक्रमी संवत 1765 कार्तिक सुदी दूज (4 अक्टूबर 1708) के दिन आपने पाँच पैसे और नारियल श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे रखकर माथा टेककर श्रद्धा सहित परिक्रमा की और इस पावन दिन समूह सिख संगत को साहिब श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी से जोड़कर और युग-युगों तक अटल गुरुता गद्दी अर्पण की। इस तरह श्रीगुरु ग्रंथ साहिब को गुरु गद्दी देकर दीवान में बैठी संगत को फरमाया :
आगिआ भई अकाल की,तबै चलायो पंथ।। सब सिखन को हुकम है,गुरू मानियो ग्रंथ।। गुरु ग्रंथ जी मानियो,प्रगट गुरां की देह।। जो प्रभ को मिलबो चहै,खोज शब्द में लेह।।
इसके बाद गुरु साहिब ने सर्वत्र खालसा सिख संगत को वचन दिया कि युगों युग की इस पावन पवित्र हुई धरती का नाम श्रीअबचलनगर हुआ। इस तरह जगत तमाशा देखने के बाद 'विचित्र नाटक' खेलते हुए संवत 1765 कार्तिक सुदी पंचमी के दिन आप परम पुरख परमात्मा में अभेद हो गए।
कथा
संपादित करेंयह गुरुद्वारा सचखंड साहिब जी से थोड़ी दूरी पर गोदावरी के किनारे गुरुद्वारा नगीना घाट के समीप सुशोभित है। औरंगज़ेब की मौत के उपरांत उसके शहजादों के बीच दिल्ली के तख्त के ऊपर बैठने के लिये आपस में युद्ध छिड़ गया। शहजादा बहादुर शाह ने श्री गुरु गोबिन्द सिंघ जी को इस युद्ध में सिख फौज के साथ उसकी मदद करने के लिये विनती की। उस ने गुरु जी के साथ वायदा किया कि युद्ध जीत जाने पर जब बह दिल्ली के सिंहासन पर बैठेगा, तो औरंगज़ेब के समय में पंजाब में बेकसूर सिखों के ऊपर अत्याचार करने वाले दोषी हाकिमों को गुरु जी के हवाले कर देगा। गुरु जी की युद्ध में की गई मदद से बहादुर शाह की जीत हुई तथा वह हिंदुस्तान के शहंशाह के रूप में दिल्ली के तख्त पर विराजमान हुआ। उन्ही दिनों दक्षिण भारत में बगावत हो गई। उसने बगावत को कुचलने के लिये शाही फौज को लेकर दक्षिण की ओर कूच किया तथा गुरु जी को भी साथ चलने के लिये विनती की। तख्त हासिल कर लेने के बाद उसकी नीयत में खोट आ गई थी तथा वह दोषियों को गुरु जी के सुपुर्द करने से टाल-मटोल करने लग पड़ा था।.
गुरु जी ने इस मुद्दे को हल करने हेतु उसके साथ ही दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। पड़ाव करते-करते बहादुर शाह तथा गुरु जी जब नांदेड़ पहुंचे थे तो उस वक्त गुरु जी की सेना के लिये इसी स्थान पर लंगर तैयार किया जाता था तथा फौजों को खिलाया जाता था जहाँ अब गुरुद्वारा लंगर साहिब सुशोभित है। ख जगत में लंगर की प्रथा श्री गुरु नानक देव जी के समय में ही आरंभ हो गई थी। दूर-दूर से या आस-पास से गुरु जी के उपदेश सुनने के लिये तथा उनके दर्शन के लिये आने वाली संगत के लिये लंगर शुरु किया गया था। इसके अलावा गुरु का लंगर गरीबों तथा जरुरतमंद लोगों के लिये भी खुला था। ब्राह्मणों की पैदा की गई जाति-वर्ण की बांट को सिख धर्म में प्रवेश करने से रोकने हेतु गुरु जी ने हुक्म दिया था कि गुरु घर में आने वाले सभी लोग बिना किसी भेद-भाव के एकसाथ पंगत में बैठकर लंगर छकें। श्री गुरु अंगद देव जी के समय उनकी सुपत्नी माता खीवी जी लंगर का प्रबंध स्वयं देखती थीं।
दैनिक क्रियाएं
संपादित करेंप्रतिदिन प्रात: दो बजे समीप स्थित गोदावरी नदी से जल की गागर भरकर सचखंड में लाई जाती है। सुखमणि साहिब जी के पाठ की समाप्ति के पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया जाता है। अरदास के पश्चात संपूर्ण दिवस गुरुद्वारा पाठ और कीर्तन से गूंजता रहता है। संध्या में रहिरास साहिब का पाठ और आरती के बाद गुरु गोबिंदसिंह, महाराजा रणजीतसिंह और अकाली फूलासिंह के प्रमुख शस्त्रों के दर्शन करवाए जाते हैं।
उत्सव और पर्व
संपादित करेंहाल ही में 30 अक्टूबर 2008 को गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश के 300 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में गुरुता गद्दी दिवस मनाया गया। पाँच दिवसीय इस समारोह में देश और विदेश से लाखों की संख्या में सिख संगत, संत और विद्वान शामिल हुए। यहाँ सभी गुरु परब के साथ ही दशहरा, दीपावली और होला मोहल्ला बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
आवागमन
संपादित करें- वायुमार्ग
नांदेड़ में राष्ट्रीय विमानतल है। जहाँ से सचखंड की दूरी मात्र 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
- सड़कमार्ग
महाराष्ट्र के औरंगाबाद से नांदेड़ करीब 300 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सभी प्रमुख शहरों से सरकारी व निजी वाहनों के जरिए नांदेड़ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- रेलमार्ग
नांदेड़ सभी प्रमुख रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। अमृतसर से नांदेड़ के लिए विशेष रेल सुविधा उपलब्ध है।