अब्दुल मलिक इसामी (१३११ - १४ मई १३५० के बाद) १४वीं सदी के भारतीय इतिहासकार और दरबारी कवि थे। उन्होंने बहमनी सल्तनत के संस्थापक अलाउद्दीन बहमन शाह के संरक्षण में फ़ारसी भाषा में लेखन किया। उन्हें मुख्यतः फुतूह-उस-सलातीन (१४ मई १३५०) के लिए जाना जाता है, जो भारत पर मुस्लिम विजय का एक काव्यात्मक इतिहास है।

प्रारंभिक जीवन

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इसामी का जन्म १३११ ईस्वी में, संभवतः दिल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम इज़्ज़ उल-दीन इसामी था।[1] उनके पूर्वज फ़ख मलिक इसामी इल्तुतमिश (शासनकाल १२११–१२३६) के शासनकाल के दौरान बगदाद से भारत चले गए थे।[2] अपने बारे में बताते हुए वे कहते हैं, "(मेरे काव्यात्मक स्वभाव ने) कहा: 'हिंदुस्तान तुम्हारा स्थान है - तुम्हारे दादा और पूर्वजों का जन्म स्थान।'[3] उन्होंने दिल्ली शहर को "इस्लाम का घर" कहा।[4]

१३३६ में, दिल्ली सल्तनत के शासक मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने अपनी राजधानी दिल्ली से दक्कन क्षेत्र के दौलताबाद स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। इसामी के परिवार सहित दिल्ली के कई निवासियों को दौलताबाद जाने का आदेश दिया गया। इस यात्रा के दौरान उनके ९० वर्षीय दादा की मृत्यु हो गई।[5]

बहमन शाह की सेवा में

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दौलताबाद में इसामी तुग़लक़ के कुकर्मों और अत्याचार से स्तब्ध था। एक समय पर, उन्होंने मक्का में प्रवास करने का फैसला किया, लेकिन देश छोड़ने से पहले उन्होंने भारत में मुस्लिम शासन का इतिहास लिखने का दृढ़ संकल्प किया।[1] वह प्रसिद्ध फ़ारसी कवि फ़िरदौसी का अनुकरण करने की आकांक्षा रखते थे, जिन्होंने फ़ारस के इतिहास को रेखांकित करने वाली एक महाकाव्य कविता शाहनामा लिखी थी। [5]

दौलताबाद के काजी बहाउद्दीन ने उन्हें अलाउद्दीन बहमन शाह से मिलवाया, जिन्होंने तुगलक के खिलाफ विद्रोह किया था।[6] बहमन शाह, जिन्होंने दक्कन क्षेत्र में स्वतंत्र बहमनी सल्तनत की स्थापना की, इसामी के संरक्षक बने।[5] इस प्रकार इसामी बहमनी दरबार में सबसे पहले स्तुतिगानकार बन गए।[7]

बहमन शाह के संरक्षण में उन्होंने १३४९ में फ़ुतूह-उस-सलातीन लिखना शुरू किया। इसामी का दावा है कि उन्होंने ५ महीनों में इसके १२,००० छंदों की रचना की थी।[8] उनके अनुसार, उन्होंने १० दिसम्बर १३४९ को पुस्तक लिखना शुरू किया और १४ मई १३५० को इसे पूरा किया।[2] इस बिंदु के बाद इसामी के जीवन के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।[6]

फ़ुतुह-उस-सलातीन

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फ़ुतूह-उस-सलातीन ("सुल्तानों के उपहार") १३४९-५० तक भारत में मुस्लिम शासन का इतिहास है। इसामी ने इसे शाहनामा-ए हिन्द ("भारत का शाहनामा") भी कहा।[1] इसामी के अनुसार, उनके स्रोतों में उनके दोस्तों और परिचितों के किस्से, किंवदंतियाँ और विवरण शामिल थीं।[5] कई पहले के इतिहासों के विपरीत, पुस्तक की भाषा "बयानबाजी वाली कलाकृतियों और अप्रिय अतिशयोक्ति" से रहित है।[8]

पुस्तक की शुरुआत ग़ज़नवी शासक महमूद (शासनकाल ९९८–१०३०) और ग़ोरी शासक मुहम्मद (शासनकाल ११७३–१२०६) की विजयों के विवरण से होती है। इसके बाद यह १३४९-५० तक दिल्ली सल्तनत का इतिहास बयान करता है।[5] पुस्तक में बहमनी सल्तनत की स्थापना के प्रारंभिक वर्षों का भी वर्णन किया गया है।

ऐतिहासिक विश्वसनीयता

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फ़ुतूह-उस-सलातीन मसनवी (तुकांत कविता) शैली में लिखी गई है, और इतिहास के उद्देश्यों के लिए पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। इसमें तथ्यात्मक गलतियाँ हैं तथा कई महत्वपूर्ण घटनाएँ छूट गयी हैं। इसके अलावा, इसामी का तात्पर्य है कि विभिन्न ऐतिहासिक घटनाएँ ईश्वरीय इच्छा और भाग्य द्वारा पूर्व निर्धारित थीं। [9] उनका मानना था कि आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली सूफी नेताओं की उपस्थिति राज्य के भाग्य को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, वह दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु को मानते हैं। इसी तरह, उनका दावा है कि दक्कन क्षेत्र समृद्ध हुआ क्योंकि बुरहानुद्दीन ग़रीब और उनके उत्तराधिकारी ज़ैनुद्दीन शिराज़ी दौलताबाद में रहते थे।[7]

इसामी मुहम्मद बिन तुगलक के कट्टर आलोचक हैं। दूसरी ओर, वह अपने संरक्षक बहमन शाह को सही खलीफ़ा कहता है।[10] उनका दावा है कि तुगलक ने दिल्ली की पूरी आबादी को दौलताबाद जाने के लिए मजबूर कर दिया था, और केवल १०% प्रवासी ही इस यात्रा में जीवित बच पाए थे। ये दोनों दावे अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होते हैं।[11] इसामी के अनुसार, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भ्रष्ट मुसलमानों को ईश्वर की सजा का परिणाम थी।[12]

इन दोषों के बावजूद, इसामी की पुस्तक १४वीं शताब्दी के भारत के राजनीतिक इतिहास और सामाजिक जीवन के बारे में जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत है।[13]

  1. Iqtidar Alam Khan 2008, पृ॰ 79.
  2. Bhanwarlal Nathuram Luniya 1969, पृ॰ 87.
  3. Khaliq Ahmad Nizami (1983). On History and Historians of Medieval India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788121501521.
  4. Iqtidar Husain Siddiqi (2010). Indo-Persian Historiography Up to the Thirteenth Century. पृ॰ 161. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788190891806.
  5. E. Sreedharan 2004, पृ॰ 346.
  6. Agha Mahdi Husain 1963, पृ॰ vi.
  7. Meenakshi Khanna 2007, पृ॰ 133.
  8. Saiyid Abdul Qadir Husaini 1960, पृ॰ 164.
  9. Tej Ram Sharma 2005, पृ॰ 73.
  10. Carl W. Ernst 2003, पृ॰ 59.
  11. Carl W. Ernst 2003, पृ॰ 112.
  12. Carl W. Ernst 2003, पृ॰ 113.
  13. Kanhaiya Lall Srivastava 1980, पृ॰ 236.

ग्रन्थसूची

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