अभिधानप्पदीपिका (संस्कृत : अभिधानप्रदीपिका ) पालि का १२वीं शताब्दी में रचित शब्दकोश है। इसके रचयिता मोग्गल्लान थेरो हैं जो लंका के निवासी थे।

इस पालिकोश की रचना संस्कृत के अमरकोश की रीति से हुई है और उसमें पालि के पर्यायवाची शब्दों का संकलन किया गया है। 'अमरकोश' के अनेक श्लोकों का भी इसमें पालिरूपांतरण है। इसमें स्वर्गकांड, भूकांड और श्रामणय कांड ऐसे तीन विभाग हैं। इसकी रचना प्रथम पराक्रमबाहु के शासनकाल (११५३-११८६) में हुई मानी जाती है। इस कोश पर १४वीं शती में रचित एक टीका भी मिलती है।

भाष्य संपादित करें

१४वीं शताब्दी में बर्मा के राजा कित्तिसीहासूर के मन्त्री ने अभिधानप्पदीपिका पर एक भाष्य की रचना की। १८वीं शताब्दी में बर्मी भाषा में अभिधानप्पदीपिका का अनुवाद हुआ। श्रीलंका में एक सन्ना (paraphrase) और एक टीका का निर्माण हुआ। मललशेखर के अनुसार, इसमें से सन्ना पुरानी है और अधिक महत्वपूर्ण भी।

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