अमरु (या अमरूक) संस्कृत के महान कवियों में से एक हैं। इनकी रचना अमरूशतक प्रसिद्ध है। इनका कोई अन्य काव्य उपलब्ध नहीं है और केवल इस एक ही सौ पद्यों के काव्य से ये सहृदयों के बीच प्रसिद्ध हुए हैं। सुभाषितावलि के विश्वप्रख्यातनाडिंधमकुलतिलको विश्वकर्मा द्वितीयः पद्य से पता चलता है कि ये सुवर्णकार थे। तथापि इनके माता-पिता कौन थे यह उल्लेख नहीं मिलता।

अमरु
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अमरु का समय संपादित करें

अमरूक की कविता जितनी विख्यात है, उनका व्यक्तितत्व उतना ही अप्रसिद्ध है। उनके देश और काल का अभी तक ठीक निर्णय नहीं हो पाया है। रविचंद्र ने "अमरूशतकम्" की अपनी टीका के उपोद्घात में आद्य शंकराचार्य को अमरूक से अभिन्न व्यक्ति माना है, परंतु यह किंवदंती नितांत निराधार है। आद्य शंकराचार्य के द्वारा किसी "अमरूक" नामक राजा के मृत शरीर में प्रवेश तथा कामतंत्र विषयक किसी ग्रंथ की रचना का उल्लेख शंकरदिग्विजय में अवश्य किया गया है, परंतु विषय की भिन्नता के कारण "अमरूशतक" को शंकराचार्य की रचना मानना नितान्त भ्रान्त है।

आनंदवर्धन (९वीं सदी का मध्यकाल) ने अमरूक के मुक्तकों की चमत्कृति तथा प्रसिद्धि का उल्लेख किया है (ध्वन्यालोक का तृतीय उद्योत)। इससे इनका समय ९वीं सदी के पहले ही सिद्ध होता है। आनन्दवर्धन ने ध्वन्यालोक के तृतीय उद्योत में

मुक्तकेषु हि प्रबन्धेष्विव रसबन्धाभिनिवेशिनः कवयो दृश्यन्ते, तथा ह्यमरुकस्य कवेर्मुक्तकाः शृंगाररसस्यन्दिनः प्रबन्धायमानाः प्रसिद्धा एव।

ऐसा कहते हुए अमरुशतक के अनेक श्लोंकों का उदाहरण देते हैं। अतः उससे पहले ही अमरुशतक रचना प्रसिद्ध हो गयी थी ऐसा तर्क किया जा सकता है।

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

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