अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध
अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध (1775 – 1783), जिसे संयुक्त राज्य में अमेरिकी स्वतन्त्रता युद्ध या क्रन्तिकारी युद्ध भी कहा जाता है, ग्रेट ब्रिटेन और उसके तेरह उत्तर अमेरिकी उपनिवेशों के बीच एक सैन्य संघर्ष था, जिससे वे उपनिवेश स्वतन्त्र संयुक्त राज्य अमेरिका बने। शुरूआती लड़ाई उत्तर अमेरिकी महाद्वीप पर हुई। सप्तवर्षीय युद्ध में पराजय के बाद, बदले के लिए आतुर फ़्रान्स ने 1778 में इस नए राष्ट्र से एक सन्धि की, जो अंततः विजय के लिए निर्णायक साबित हुई।
अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध | |||||||||
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ऊपरी बाएं ओर से दक्षिणावर्त: यॉर्कटाउन की घेराबन्दी के बाद लॉर्ड कॉर्नवॉलिस का आत्मसमर्पण, ट्रेण्टन का युद्ध, बंकर हिल के युद्ध पर जनरल वॉरन की मृत्यु, लाँग आइलैण्ड का युद्ध, Guilford कोर्ट हाउस का युद्ध | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
तेरह उपनिवेश (1776 से पूर्व) संयुक्त राज्य (1776 के बाद) स्पेन (1779 से) |
ग्रेट ब्रिटेन
मुलनिवासी अमेरिकी[5] | ||||||||
सेनानायक | |||||||||
जॉर्ज वॉशिंगटन नथानिएल ग्रीन होरातिओ गेट्स इसेक हॉपकिंस |
जॉर्ज तृतीय | ||||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||||
संयुक्त राज्य: 40,000 (औसत)[6] मित्र-राष्ट्र: मूलनिवासी मित्र: अज्ञात |
ग्रेट ब्रिटेन: सेना: वफादार ताकत: जर्मन सहायक: मूलनिवासी मित्र: 13,000[13] | ||||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||||
संयुक्त राज्य: 6,824 युद्ध में मारे गए 25,000–70,000 सभी कारणों से मृत[6][14] 50,000 तक समस्त हताहत[15] फ़्रान्स: 10,000 युद्ध से मृत (75% समुद्र में) स्पेन: 5,000 मारे गएँ नीदरलैण्ड्स: 500 मारे गएँ[16] |
ग्रेट ब्रिटेन: 4,000 युद्ध में मारे गए (केवल उत्तर अमेरिका) 27,000 सभी कारणों से मृत (उत्तर अमेरिका)[6][17] 1,243 navy killed in battle, 42,000 deserted, 18,500 died from disease (1776–1780)[18] सभी कारणों से कम से कम 51,000 मारे गएँ जर्मन: 1,800 युद्ध में मारे गएँ |
अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के इतिहास में एक नया मोड़ ला दिया। उसने अफ्रीका, एशिया एवं लैटिन अमेरिका के राज्यों की भावी स्वतंत्रता के लिए एक पद्धति तैयार कर दी। इस प्रकार अमेरिका के युद्ध का परिणाम केवल इतना ही नहीं हुआ कि 13 उपनिवेश मातृदेश ब्रिटेन से अलग हो गए बल्कि वे उपनिवेश एक तरह से नए राजनीतिक विचारों तथा संस्थाओं की प्रयोगशाला बन गए। पहली बार 16वीं 17वीं शताब्दी के यूरोपीय उपनिवेशवाद और वाणिज्यवाद को चुनौती देकर विजय प्राप्त की। अमेेरिकी उपनिवेशों का इंग्लैंड के आधिपत्य से मुक्ति के लिए संघर्ष, इतिहास के अन्य संघर्षों से भिन्न था। यह संघर्ष न तो गरीबी से उत्पन्न असंतोष का परिणाम था और न यहां कि जनता सामंतवादी व्यवस्था से पीडि़त थी। अमेरिकी उपनिवेशों ने अपनी स्वच्छंदता और व्यवहार में स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए इंग्लैंड सरकार की कठोर औपनिवेशिक नीति के विरूद्ध संघर्ष किया था। अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।
क्रांति से पूर्व अमेरिका की स्थिति
संपादित करेंइंग्लैंड एवं स्पेन के मध्य 1588 ई. में भीषण नौसैनिक युद्ध हुआ जिसमें स्पेन की पराजय हुई और इसी के साथ ब्रिटिश नौसैनिक श्रेष्ठता की स्थापना हुई और इंग्लैण्ड ने अमेरिका में अपनी औपनिवेशिक बस्तियां बसाई। 1775 ई. तक अमेरिका में 13 ब्रिटिश उपनिवेश बसाए जा चुके थे। इन अमेरिकी उपनिवेशों को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- (१) उत्तरी भाग में-मेसाचुसेट्स, न्यू हैम्पशायर, रोड्स द्वीप- ये पहाड़ी और बर्फीले क्षेत्र थे। अतः कृषि के लायक न थे। इंग्लैंड को यहां से मछली और लकड़ी प्राप्त होती थी।
- (२) मध्य भाग में-न्यूयार्क, न्यूजर्सी, मैरीलैंड आदि थे। इन क्षेत्रों में शराब और चीनी जैसे उद्योग थे।
- (३) दक्षिणी भाग में-उत्तरी कैरोलिना, दक्षिणी कैरोलिना, जॉर्जिया, वर्जीनिया आदि थे। यहां की जलवायु गर्म थी। अतः ये प्रदेश खेती के लिए उपयुक्त थे। यहां मुख्यतः अनाज, गन्ना, तम्बाकू, कपास और बागानी फसलों का उत्पादन होता था।
इन उपनिवेशों में 90% अंग्रेज और 10% डच, जर्मन, फ्रांसीसी, पुर्तगाली आदि थे। इस तरह अमेरिकी उपनिवेश पश्चिमी दुनिया तथा नई दुनिया दोनों का हिस्सा था। वस्तुतः पश्चिमी दुनिया का हिस्सा इसलिए कि यहां आकर बसने वाले लोग यूरोप के विभिन्न प्रदेशों जैसे ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, आयरलैंड आदि से आए थे और साथ ही नई दुनिया का भी हिस्सा थे क्योंकि यहां धार्मिक, सामाजिक वातावरण और परिवेश वहां से भिन्न था। एक प्रकार से यहां मिश्रित संस्कृति का जन्म हुआ क्योंकि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आए लोगों के अपने रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास, शासन-संगठन, रहन-सहन आदि के भिन्न-भिन्न साधन थे। इन भिन्नताओं के बावजूद उनमें एकता थी और यह एकता एक समान समस्याओं के कारण तथा उसके समाधान के प्रयास के फलस्वरूप पैदा हुई थी। इतना ही नहीं बल्कि पश्चिम से लोगों का तेजी से आगमन भी हुआ और इस कि वजह से लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की भावना का भी प्रसार हुआ।
यूरोपियों के अमेरिका में बसने का कारण
संपादित करें- इंग्लैंड में धर्मसुधार आंदोलन के चलते प्रोटेस्टेंट धर्म का प्रचार हुआ और एग्लिंकन चर्च की स्थापना हुई। किन्तु इसके विरोध में भी अनेक धार्मिक संघ बने तथा जेम्स प्रथम और चार्ल्स प्रथम की धार्मिक असहिष्णुता की नीति से तंग आकर हजारों की संख्या में लोग इंग्लैड छोड़कर अमेरिका जा बसे।
- आर्थिक कारकों के अंतर्गत, स्पेन की तरह इंग्लैंड भी उपनिवेश बनाकर धन कमाना चाहता था। इंग्लैंड औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा था और इसके लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी जिसकी आपूर्ति उपनिवेशों से सुगम होती और इस तैयार माल की खपत के लिए एक बड़े बाजार की जरूरत थी। ये अमेरिकी बस्तियां इन बाजारों के रूप में भी काम आती। ब्रिटेन में स्वामित्व की स्थिति में परिवर्तन आया। फलतः बहुत किसान भूमिहीन हो गए और वे अमेरिका जाकर आसानी से मिलने वाली भूमि को साधारण मूल्य पर खरीदना चाहते थे। भूमिहीन कृषकों के साथ-साथ भिखारियों एवं अपराधियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी। अतः उन्हें अमेरिका भेजना उचित समझा गया। उसी प्रकार आर्थिक कठिनाइयों से त्रस्त लोगों को ब्रिटिश कंपनियां अपने खर्च पर अमेरिका ले जाती और उनसे मजदूरी करवाती।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण
संपादित करेंअमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन तथा उसके उपनिवेशों के बीच आर्थिक हितों का संघर्ष था किन्तु कई तरीकों से यह उस सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के विरूद्ध भी विद्रोह था जिसकी उपयोगिता अमेरिका में कभी भी समाप्त हो गई थी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अमेरिकी क्रांति एक ही साथ आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक अनेक शक्तियों का परिणाम थी।
अमेरिकी समाज की स्वच्छंद और स्वातंत्र्य चेतना
संपादित करेंअमेरिका में आकर बसने वाले अप्रवासी इंग्लैंड के नागरिकों के अपेक्षा कहीं अधिक स्वातंत्र्य प्रेमी थे। इसका कारण यह था कि यहां का समाज यूरोप की तुलना में कहीं अधिक समतावादी था। अमेरिकी समाज की खास विशेषता थी-सामंतवाद एवं अटूट वर्ग सीमाओं की अनुपस्थिति।
अमेरिकी समाज में उच्चवर्ग के पास राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति ब्रिटिश समाज की तुलना में अत्यंत कम थी। वस्तुतः अमेरिका में अधिकांश किसानों के पास जमीन थी जबकि ब्रिटेन में सीमांत काश्तकारों एवं भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की संख्या ज्यादा थी। नए महाद्वीप पर पैर रखने के साथ ही अप्रवासी ब्रिटिश कानून एवं संविधान के अनुसार कार्य करने लगे थे। उनकी अपनी राजनीति संस्थाएं थी। इस प्रकार अमेरिकी उपनिवेशों में आरंभ से ही स्वशासन की व्यवस्था विद्यमान थी जो समय के साथ विकसित होती गई।
दोषपूर्ण शासन व्यवस्था
संपादित करेंऔपनिवेशिक शासन को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार गवर्नर की नियुक्ति करती थी और सहायता देने के लिए एक कार्यकारिणी समिति होती थी जिसके सदस्यों का मनोनयन ब्रिटिश ताज द्वारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त शासन कार्य में सहायता देने के लिए एक विधायक सदन/एसेम्बली होती थी जिसमें जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते थे। इस विधायक सदन को कर लगाने, अधिकारियों का वेतन तय करने, कानून निर्माण करने का अधिकार था। किन्तु कानूनों को स्वीकार करना अथवा रद्द करने का पूर्ण अधिकार गवर्नर को था। इस व्यवस्था से उपनिवेशों की जनता में असंतोष उपजा।
आरंभ में ब्रिटिश सरकार का सीमित हस्तक्षेप
संपादित करेंइंग्लैंड ने आरंभ में ही उपनिवेशों की स्वच्छंदता व स्वशासन पर अंकुश लगाने का प्रयत्न नहीं किया क्योंकि इंग्लैंड में 17वीं सदी के आरंभ से लेकर “रक्तहीन क्रांति” (1688) तक के लगभग 85 वर्षों के बीच राजतंत्र एवं संसद के बीच निरंतर संघर्ष चल रहा था। फिर जब सरकार ने विभिन्न करों को लगाकर उन्हें सख्ती से वसूलने का प्रयास किया तो उपनिवेशों में असंतोष पनपा और यही असंतोष क्रांति में बदल गया।
उत्तरी अमेरिका में क्यूबेक से लेकर मिसीसिपी घाटी तक फ्रांसीसी उपनिवेश फैले हुए थे। इस क्षेत्र में ब्रिटेन और फ्रांस के हित टकराते थे। फलतः 1756-63 के बीच दोनों के मध्य सप्तवर्षीय युद्ध हुआ और इसमें इंग्लैंड विजयी रहा तथा कनाडा स्थित फ्रांसीसी उपनिवेशों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप अमेरिका में उत्तर से फ्रांसीसी खतरा खत्म हो गया। अतः उपनिवेशवासियों की इंग्लैंड पर निर्भरता समाप्त हो गई। अब उन्हें ब्रिटेन के विरूद्ध विद्रोह करने का अवसर मिल गया।
दूसरा प्रभाव यह रहा कि इंग्लैंड ने उत्तरी अमेरिका में मिसीसिपी नदी से लेकर अलगानी पर्वतमाला तक के व्यापक क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया। फलतः अमेरिकी बस्ती के निवासी अपनी सीमाएं अब पश्चिम की ओर बढ़ाना चाहते थे और इस क्षेत्र में रहने वाले मूल निवासीं रेड इंडियनस को खदेड़ देना चाहते थे। फलतः वहां संघर्ष हुआ। अतः इंग्लैंड की सरकार ने 1763 में एक शाही घोषणा द्वारा फ्लोरिडा, मिसीसिपी आदि पश्चिमी के क्षेत्र रेड इंडियन के लिए सुरक्षित कर दिया। इससे उपनिवेशवासियों का पश्चिमी की ओर प्रसार रूक गया और वे इंग्लैंड की सरकार को अपना शत्रु समझने लगे। इसके अतिरिक्त सप्तवर्षीय युद्ध के दौरान इंग्लैंड को बहुत अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ी जिसके कारण इंग्लैंड को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। अंग्रेज राजनीतिज्ञों का मानना था कि इंग्लैंड ने उपनिवेशों की रक्षा हेतु धन खर्च किया है इसलिए उपनिवेशों को इंग्लैंड को और अधिक कर देने चाहिए। यही वजह है कि पहले से लागू जहाजरानी कानून, व्यापारिक कानून, सुगर एक्ट आदि कड़ाई से लागू किए गए। परन्तु उपनिवेशवासी उस स्थिति के भुगतान के लिए तैयार न थे। इस प्रकार सप्तवर्षीय युद्ध ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रपात में महती भूमिका निभाई।
उपनिवेशों का आर्थिक शोषण
संपादित करेंइंग्लैंड द्वारा उपनिवेशों का आर्थिक शोषण, उपनिवेशों और मातृदेश के बीच असंतोष का मुख्य कारण था। प्रचलित वाणिज्यवादी सिद्धान्त के अनुसार इंग्लैंड उपनिवेशों के व्यापार पर नियंत्रण रखना चाहता था और उनके बाजारों पर एकाधिकार रखना चाहता था। “उपनिवेश इंग्लैंड को लाभ पहुुंचाने के लिए हैं” इस सिद्धान्त पर उपनिवेशों की व्यवस्था आधारित थी। इंग्लैंड ने अपने लाभ को दृष्टिगत रखते हुए कानून बनाए-
(क) नौसंचालन कानून (Navigation act) : 1651 ई. के प्रावधान के अनुसार उपनिवेशों में व्यापार केवल इंग्लैंड, आयरलैंड या उपनिवेशों के जहाजों के माध्यम से ही हो सकता था। इसके तहत् यह व्यवस्था की गई कि इंग्लैंड के लिए आवश्यक सभी प्रकार के कच्चे माल बिना इंग्लैंड के बंदरगाहों पर लाए, उपनिवेशों से दूसरे स्थानों पर निर्यात् नहीं किए जाए। इससे इंग्लैंड के पोत निर्णात उद्योग को तो लाभ हुआ ही इंग्लैंड के व्यापारियों को भी मिला 1663 के कानून के तहत् कहा गया कि यूरोप से अमेरिकी उपनिवेशों में निर्यात किया जाने वाला माल पहले इंग्लैंड के बंदरगाहों पर लाया जाएगा। इस कानून से इंग्लैंड के व्यापारियों तथा व्यापारी बेड़ो के मालिकों को अमेरिकी उपभोक्ता की कीमत पर लाभ होता था। ये कानून उपनिवेशवासियों के लिए अन्यायपूर्ण थे।
(ख) व्यापारिक अधिनियम (ट्रेड ऐक्ट) : इंग्लैंड ने कानून बनाया कि अमेरिका में उत्पादित वस्तुओं जैसे चावल, लोहा, लकड़ी, तंबाकू आदि का निर्यात केवल इंग्लैंड को ही किया जा सकता था। इन नियमों से उपनिवेशों में काफी रोष फैला। क्योंकि फ्रांस एवं डच व्यापारी उन्हें इन वस्तुओं के लिए अंगे्रजों से अधिक मूल्य देने को तैयार थे।
(ग) औद्योगिक अधिनियम : इंग्लैंड ने कानून बनाया कि जिस औद्योगिक माल को इंग्लैंड में तैयार किया जाता था वही माल उसके अमेरिकी उपनिवेश तैयार नहीं कर सके। इस प्रकार 1689 के कानून द्वारा उपनिवेशों से ऊनी माल तथा 1732 ई. के कानून द्वारा टोपों (Hats) का निर्यात् बंद कर दिया गया।
उपर्युक्त कानून यद्यपि उपनिवेशों के लिए हानिकारक थे फिर भी उपनिवेशों ने इनका विरोध नहीं किया क्योंकि इनको सख्ती से लागू नहीं किया जाता था। आगे जॉर्ज तृतीय के काल में जब इन्हें सख्ती से लागू किया गया तो उपनिवेशों ने इनका विरोध किया।
बौद्धिक चेतना का विकास
संपादित करेंअमेरिका में जीवन के स्थायित्व के साथ ही शिक्षा और पत्रकारिता का विकास हुआ जिसने बौद्धिक चेतना के विकास में अपना योगदान दिया। अमेरिका के अनेक बौद्धिक चिंतकों जैसे-बेंजामिन फ्रैंकलिन, थॉमस जेफरसन, जेम्स विल्सन, जॉन एडम्स, टॉमस पेन, जेम्स ओटिस, सैमुअल एडम्स आदि ने मातृदेश के प्रति उपनिवेशों के प्रतिरोध का औचित्य बताया। इनके विचार जॉन लॉक, मॉण्टेस्क्यू जैसे चिंतकों से प्रभावित थे। लेकिन ये विचार ऐसे सशक्त रूप से अभिव्यक्त किए गए थे कि उसे अमेरिकी लोगों की स्वशासन की मांग को बल मिल गया।
संवैधानिक मुद्दे
संपादित करेंब्रिटेन ने अमेरिकी उपनिवेश में कई प्रकार के कर-कानून लागू कर स्थानीय करों को बढ़ाने का प्रयत्न किया। इससे भी उपनिवेश में घोर असंतोष की भावना बढ़ी। यहां एक संवैधानिक मुद्दा भी उठ खड़ा हुआ। ब्रिटिश का मानना था कि ब्रिटिश संसद सर्वोच्च शक्ति है और वह अपने अमेरिकी उपनिवेश के मामले में किसी प्रकार का कानून पारित कर सकती है। जबकि अमेरिकी उपनिवेशों का मानना था कि उन पर कर लगाने का अधिकार केवल उपनिवेशों की एसेम्बलियों में निहित है न कि ब्रिटिश पार्लियामेंट में क्योंकि उसमें प्रतिनिधित्व नहीं है।
उपनिवेशों के प्रति कठोर नीति
संपादित करें- ग्रेनविले की नीति- ब्रिटिश शासक जार्ज तृतीय 1760 ई. इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा और उसने इंग्लैंड की संसद की अपनी कठपुतली बनाए रखने का सफल प्रयास किया तथा औपनिवेशक कानूनों को कड़ाई से लागू करने की बात की। इसके समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री गे्रनविले ने इन कानूनों को कड़ाई से लागू करने का प्रयास किया। वस्तुतः सप्तवर्षीय युद्ध में ब्रिटिश को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। अतः गे्रनविले ने करों को बढ़ाने के लिए नवीन योजना प्रस्तुत की जिसके तहत् उसने जहाजरानी कानूनों की सख्ती से लागू करने तथा उपनिवेशों पर प्रत्यक्ष कर लगाने की बात की। इसी संदर्भ में उसने सुगर एक्ट (1764)स्टाम्प एक्ट (1765) पारित किया।
- सुगर ऐक्ट : इसके तहत् इंग्लैंड के अतिरिक्त अन्य देशों से आने वाली विदेशी रम का आयात बंद कर दिया गया तथा शीरे पर आयात कर बढ़ा दिया गया। दूसरी तरफ शराब, रेशम, कॉफी आदि अन्य वस्तुओं पर भी कर लगा दिया गया। कस्टम अधिकारियों को तलाशी लेने का अधिकार दिया गया। इससे उपनिवेश वासियों के आर्थिक हितों को चोट पहुंच रही थी। क्योंकि अब न तो वे सस्ते दामों पर शक्कर मोल ले सकते थे और न रम बनाने के लिए शीरा ही ला सकते थे।
- इसी प्रकार स्टैम्प ऐक्ट के अनुसार समाचार-पत्रों, कानूनी तथा व्यापरिक दस्तावेजों, विज्ञापनों आदि पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया। इसका उल्लंघन करने पर कड़ी सजा की व्यवस्था की गई। उपनिवेशों में इस एक्ट के विरोध में व्यापक आंदोलन हुआ। विरोध का कारण आर्थिक बोझ न होकर सैद्धांतिक बोझ था। इस विरोध में जेम्स ओटिस, सैमुअल एडम्स, पैट्रिक हेनरी जैसे बौद्धिक वक्ताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वस्तुतः अमेरिकी यह मानते थे कि इंग्लैंड की सरकार को बाह्य कर लगाने का अधिकार तो है किन्तु आंतरिक कर केवल स्थानीय मंडल ही लगा सकते हैं। अब नारा दिया गया कि “प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं” अर्थात् इंग्लैंड की संसद जिसमें अमेरिकी नहीं बैठते उसे कर लगाने का अधिकार ही नहीं है। कर लगाने का अधिकार तो केवल अमेरिकी विधान सभाओं को है, जहाँ अमेरिकी प्रतिनिधि बैठते है। स्टैम्प ऐक्ट के विरोध में अक्टूबर 1765 में नौ उपनिवेशों ने मिलकर स्टैम्प ऐक्ट कांग्रेस का अधिवेशन किया और “स्वाधीनता के पुत्र तथा पुत्रियां” नामक संस्था का गठन कर स्टाम्प एक्ट का अंत तक दृढ़ विरोध करने का निश्चय किया। स्टाम्प एक्ट के इस प्रकरण ने एक शक्तिशाली उत्पे्ररक की भूमिका अदा की। इसने अमेरििकयों के दिलों में राजनीतिक चेतना को जगाया और उनके असंतोष को प्रकट करने का मार्ग भी दिखाया। अततः 1766 ई. में इस अधिनियम को समाप्त कर दिया। साथ ही यह घोषणा की गई कि इंग्लैंड की संसद को अमेरिका पर कर लगाने का पूरा-पूरा अधिकार है। इस घोषणा पर भी अमेरिका में तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
- टाउनसैंड की नई कार्य योजना : 1767 ई. इंग्लैंड में विलियम पिट की सरकार बनी और टाउनसैंड वित्तमंत्री बना। उसका मानना था कि अमेरिकी उपनिवेशवासी आंतरिक करों का तो विरोध करते हैं परन्तु उन्हें बाह्य कर स्वीकार्य हैं। अतः उसने 1767 ई. में पाँच वस्तुओं चाय, सीसा, कागज, सिक्का, रंग और धातु पर सीमा शुल्क लगाया जिसका आयात अमेरिका इंग्लैंड से करता था। अमेरिकियों ने इन बाह्य करों का भी विरोध किया क्योंकि अब उन्होंने इस तर्क को प्रतिपादित किया कि वे अंगे्रजी संसद के द्वारा लगाए गए किसी भी कर को नहीं देंगे। इसी के साथ अमेरिका में इन अधिनियमों के खिलाफ व्यापक ब्रिटिश विरोध हुआ।
तात्कालिक कारण
संपादित करेंलॉड नार्थ की चाय नीति-1773 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी को वित्तीय संकट से उबारने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ ने यह कानून बनाया कि कम्पनी सीधे ही अमेरिका में चाय बेच सकती है। अब पहले की भांति कम्पनी के जहाजों को इंग्लैंड के बंदरगाहों पर आने और चुंगी देने की आवश्यकता नहीं थी। इस कदम का लक्ष्य था कम्पनी को घाटे से बचाना तथा अमेरिकी लोगों को चाय उपलब्ध कराना। परन्तु अमेरिकी उपनिवेश के लोग कम्पनी के इस एकाधिकार से अप्रसन्न थे क्योंकि उपनिवेश बस्तियों की सहमति के बिना ही ऐसा नियम बनाया गया था। अतः उपनिवेश में इस चाय नीति का जमकर विरोध हुआ और कहा गया कि “सस्ती चाय” के माध्यम से इंग्लैंड बाहरी कर लगाने के अपने अधिकार को बनाए रखना चाहता था। अतः पूरे देश में चाय योजना के विरूद्ध आंदोलन शुरू हो गया। 16 दिसम्बर 73 को सैमुअल एडम्स के नेतृत्व में बोस्टन बंदरगाह पर ईस्ट इंडिया कम्पनी के जहाज में भरी हुई चाय की पेटियों को समुद्र में फेंक दिया गया। अमेरिकी इतिहास में इस घटना को बोस्टन टी पार्टी कहा जाता है। इस घटना में ब्रिटिश संसद के सामने एक कड़ी चुनौती उत्पन्न की। अतः ब्रिटिश सरकार ने अमेरिकी उपनिवेशवासियों को सजा देने के लिए कठोर एवं दमनकारी कानून बनाए। बोस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया गया। मेसाचुसेट्स की सरकार को पुनर्गठित किया गया और गवर्नर की शक्ति को बढ़ा दिया गया तथा सैनिकों को नगर में रहने का नियम बनाया गया और हत्या संबंधी मुकदमें अमेरिकी न्यायालयों से इंग्लैंड तथा अन्य उपनिवेशों में स्थानांतरित कर दिए गए।
स्वतंत्रता-संग्राम का आरंभ
संपादित करें- ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए इन दमनात्मक कानूनों का अमेरिकी उपनिवेशों में जमकर विरोध किया और 1774 ई. फिलाडेल्फिया (1774) में पहली महाद्वीपीय कांगे्रस की बैठक हुई जिसमें ब्रिटिश संसद से इस बात की मांग की गई कि उपनिवेशों में स्वशासन बहाल किया जाय और औपनिवेशिक मामलों में प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण का प्रयास न किया जाय। किन्तु ब्रिटिश सरकार से वार्ता का यह प्रयास विफल हो गया और ब्रिटिश सरकार तथा उपनिवेशवासियों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। 19 अपै्रल 1775 को लेक्सिंगटन में पहला संघर्ष हुआ। इसके साथ ही अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ हुआ।
- इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज तृतीय ने एक के बाद एक भूल करते हुए अमेरिकी उपनिवेशों को विद्रोही घोषित कर दिया और विद्रोह को दबाने के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू करवा दी। इस कदम से समझौता असंभव हो गया और स्वतंत्रता अनिवार्य हो गई। इसी समय टॉमस पेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "commonsense" प्रकाशित की जिसमें इंग्लैंड की कड़े शब्दों में निन्दा की गई और कहा गया कि, यही अलविदा करने का समय है (it’s time to part)
- अमेरिकी नेताओं ने इस बात को महसूस किया कि संघर्ष में विदेशी सहायता लेना आवश्यक है और यह तब संभव नहीं जब तक अमेरिका इंग्लैंड से अपना संबंध विच्छेद नहीं कर लेता। अतः उपनिवेशों का एक सम्मेलन फिलाडेल्फिया में बुलाया गया और 4 जुलाई 1776 को इस सम्मेलन में स्वतंत्रता की घोषण कर दी और यह स्वतंत्रता संघर्ष 1783 ई. में पेरिस की संधि के साथ खत्म हुआ। 13 अमेरिकी उपनिवेश स्वतंत्र घोषित हुए।
- अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान फ्रांस और स्पेन ने अमेरिकी उपनिवेशों का साथ दिया। वस्तुतः फ्रांस का उद्देश्य अमेरिका की सहायता करना नहीं था। उसका उद्देश्य तो ब्रिटिश साम्राज्य के विघटन में सहायता देकर सप्तवर्षीय युद्ध का बदला लेना था। स्पेन ने इसलिए इंग्लैंड के खिलाफ युद्ध की घोषणा की क्योंकि वह भी जिब्राल्टर इंग्लैंड से वापस लेना चाहता था। 1780 में हॉलैंड भी इंग्लैंड के विरूद्ध युद्ध में शामिल हो गया क्योंकि हॉलैंड सूदूर-पूर्व एशिया ओर द.पू. एशिया में अपनी शक्ति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से इंग्लैंड को अंध महासागर में फंसाए रखना चाहता था। रूस, डेनमार्क और स्वीडन ने भी हथियारबंद तटस्थता की घोषणा कर दी जो प्रकारांतर से इंग्लैंड के विरूद्ध ही थी। इस प्रकार 1781 ई. में अंगे्रजीं सेनाध्यक्ष कार्नवालिस को यार्कटाउन के युद्ध में आत्मसमर्पण करना पड़ा और अमेरिकी सेनापति जार्ज वाशिगंटन महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरा। अंत में 3 सितंबर 1783 को पेरिस की संधि के द्वारा अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का अंत हुआ।
इंग्लैंड की असफलता के कारण
संपादित करेंब्रिटेन जिसे एक अजेय राष्ट्र माना जाता था। अमेरिकी उपनिवेशों के हाथों उसकी हार आश्चर्यजनक थी। यह सत्य है कि अमेरिकनों का अंगे्रजो के समक्ष कोई अस्तित्व नहीं था। फिर भी अमेरिका की विजय हुई। इसके पीछे अनेक कारणों के साथ "प्रकृति, फ्रांस और जॉर्ज वाशिगंटन" की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
- 1. विशाल युद्ध स्थल : अमेरिकी तट इतना अधिक विस्तृत था कि ब्रिटिश नौसेना प्रभावहीन हो गई और इंग्लैंड के यूरोपीय शत्रुओं उपनिवेशवासियों का पक्ष लिया और युद्ध क्षेत्र और भी विस्तृत हो गया।
- 2. युद्ध स्थल का इंग्लैंड से अत्यधिक दूर होना।
- 3. उपनिवेशों की शक्ति का इंग्लैंड द्वारा गलत अनुमान।
- 4. जार्ज तृतीय का अलोकप्रिय शासन।
- 5. जार्ज वाशिगंटन का कुशल नेतृत्व।
- 6. विदेशी सहायता।
अमेेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के प्रभाव
संपादित करेंआधुनिक मानव की प्रगति में अमेरिका की क्रांति को एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा सकता है। इस क्रांति के फलस्वरूप नई दुनिया में न केवल एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ वरन मानव जाति की दृष्टि से एक नए युग का सूत्रपात हुआ। प्रो. ग्रीन का कथन है कि “अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध का महत्त्व इंग्लैंड के लिए चाहे कुछ भी क्यों न हो परन्तु विश्व इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण घटना है।” इस क्रांति का प्रभाव अमेरिका, इंग्लैंड सहित अन्य देशों पर भी पड़ा।
अमेरिका पर प्रभाव
संपादित करें- (१) स्वतंत्र प्रजातांत्रिक राष्ट्र की स्थापना : क्रांति के पश्चात् विश्व के इतिहास में एक नए संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन उपनिवेशों ने अपने देश में प्रजातांत्रिक शासन का संगठन किया। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है जब संसार के सभी देशों में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था स्थापित थी उस दौर में अमेरिका में प्रजातंत्र की स्थापना की गई। नए संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व के समक्ष चार नए राजनीतिक आदर्श गणतंत्र, जनतंत्र संघवाद और संविधानवाद को प्रस्तुत किया। यद्यपि ये सिद्धान्त विश्व में पहले भी प्रचलित थे लेकिन अमेरिका ने इसे व्यवहार में लाकर एक सशक्त उदाहरण पेश किया। गणतंत्र की स्थापना अमेरिकी क्रांति की सबसे बड़ी देने थी। अमेरिका में प्रतिनिधि सरकार की स्थापना हुई और लिखित संविधान का निर्माण किया गया। संघात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। इस तरह सरकार की एक प्रतिनिध्यात्मक और संघात्मक शासन प्रणाली दुनिया के समक्ष रखी।
- (२) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना : आधुनिक इतिहास में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने सर्वप्रथम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना की। नए संविधान के अनुसार चर्च को राज्य से अलग किया गया।
- (३) सामाजिक प्रभाव : क्रांति के परिणामस्वरूप अमेरिकी जनता को एक परिवर्तित सामाजिक व्यवस्था प्राप्त हुई जिसमें मानवीय समानता पर विशेष बल दिया गया। स्त्रियों को संपत्ति पर पुत्र के समान उत्तराधिकार प्राप्त हुआ और उनकी शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना की गई। इस तरह उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। क्रांति से मध्यम वर्ग की शक्ति बढ़ी।
- (४) आर्थिक प्रभाव : क्रांति ने आर्थिक क्षेत्र में मूलतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के विकास के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त कर इसके विकास को प्रोत्साहित किया। खनिज और वन साधनों पर से राजशाही स्वामित्व समाप्त हो गया। जिससे साहसिक वर्ग ने इनका स्वतंत्रतापूर्वक देश के आर्थिक विकास के लिए प्रयोग किया। कृषि के क्षेत्र में भी सुधार हुआ। वस्तुतः युद्धकाल में आए विदेशियों से यूरोप के कृषि सुधारों के संदर्भ में अमेरिका को जानकारी प्राप्त हुई और अभी तक जो कृषि मातृदेश के हित का साधन बनी थी अब वह स्वतंत्र राष्ट्र के विकास का मूलाधार हो गई। क्रांति से अमेरिकी उद्योग धंधे भी दो तरीकों से लाभान्वित हुए-एक अंग्रेजों द्वारा लगाए गए व्यापारवादी प्रतिबन्धों से अमेरिकी उद्योग मुक्त हो गए ओर दूसरा युद्धकाल में इंग्लैंड से वस्तओं का आयात बंद हो जाने के कारण अमेरिकी उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन मिला। स्वतंत्रता के पश्चात् अमेरिकी बंदरगाहों को विश्व व्यापार के लिए खोल दिया गया जिससे व्यापार में वृद्धि हुई।
इंग्लैंड पर प्रभाव
संपादित करें1. जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अंत : इंग्लैंड में जार्ज तृतीय एवं प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ दोनों की निन्दा होने लगी। इंग्लैण्ड की अराजकता के लिए इन दोनों को उत्तरदायी माना गया। चूंकि जार्ज तृतीय संसद को अपनी कठपुतली मानता था, अतः संसद की शक्ति में वृद्धि की मांग उठी। क्रांति ने राजा के दैवी अधिकार पर आधारित राजतंत्र पर भीषण प्रहार किया और हाउस ऑफ कॉमन्स में राजा के अधिकारों को सीमित करने का प्रस्ताव पारित किया तथा लार्ड नॉर्थ को प्रधानमन्त्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। इससे जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अंत हो गया। आगे नए प्रधानमंत्री पिट जूनियर ने कैबिनेट की शक्ति को पुनः स्थापित किया। इस तरह इंग्लैंड में वैधानिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
2. इंग्लैंड द्वारा नए उपनिवेशों की स्थापना : 13 अमेरिकी उपनिवेशों के स्वतंत्र हो जाने से इंग्लैंड के औपनिवेशिक साम्राज्य को ठेस पहुंची। अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने एवं व्यापारिक हितों को सुरक्षित करने हेतु नए क्षेत्रों में उपनिवेशीकरण का प्रयास किया और इसी संदर्भ में आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में ब्रिटिश उपनिवेश की स्थापना हुई।
3. इंग्लैंड की औपनिवेशिक नीति में परिवर्तन : अमेरिकी उपनिवेश के हाथ से निकल जाने से ब्रिटिश सरकार ने यह अनुभव कर लिया यदि शेष बचे हुए उपनिवेशों को अपने अधीन रखना है तो उसे औपनिवेशिक शोषण की नीति को छोड़ना और और उपनिवेशों की जनता के अधिकारों एवं मांगों का सम्मान करना होगा। इस परिवर्तित नीति के आधार पर ही 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने “ब्रिटिश कामन्वेल्थ ऑफ नेशन्स” अर्थात् ब्रिटिश राष्ट्र मंडल की स्थापना की।
4. इंग्लैंड द्वारा वाणिज्यवादी सिद्धान्त का परित्याग : उपनिवेशों के छिन जाने के बाद बहुत से लोगों का यह मानना था कि इससे इंग्लैंड के व्यापार वाणिज्य को जबर्दस्त धक्का लगेगा। परन्तु कुछ वर्षों बाद इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले से भी अधिक व्यापार होने लगा तो अधिकांश देशों का “वाणिज्य सिद्धान्त” से विश्वास उठ गया। स्वयं इंग्लैंड ने भी इस नीति का परित्याग कर दिया और मुक्त व्यापार की नीति को अपनाया।
फ्रांस पर प्रभाव
संपादित करें- अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम ने फ्रांस के खोए सम्मान को पुनः स्थापित किया। वस्तुतः इस युद्ध में फ्रांस ने अमेरिका का पक्ष लिया और इस तरह सप्तवर्षीय युद्ध में ब्रिटिश के हाथों मिली पराजय का बदला लिया। परन्तु युद्ध के आर्थिक व्यय ने फ्रांस की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया। फलतः फ्रांस में जनता असंतुष्ट हुई और क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- अमेरिकी क्रांति ने फ्रांस में एक नई चेतना उत्पन्न की। फ्रांसीसी सैनिक उपनिवेशों से अपने मस्तिष्क में क्रांति के बीज लेकर लौटे थे। इस संदर्भ में “लफायत” का नाम उल्लेखनीय है जिसने अमेरिकी क्रांति की भावना फ्रांसीसी जनमानस तक पहुंचाई। इतिहासकार हेज के अनुसार,
- स्वतंत्रता की यह मशाल जो अमेरिका में जली और जिसके फलस्वरूप गणतंत्र की स्थापना हुई, का फ्रांस में तीव्र प्रभाव पड़ा और इसने फ्रांस को क्रांति के मार्ग की ओर पे्ररित किया। अब वे भी अमेरिकीयों के समान स्वतंत्र होना चाहते थे।
वस्तुतः फ्रांसीसी क्रांति के मुख्य सिद्धान्त स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का मूल अमेरिकी संघर्ष में देखा जा सकता है।
आयरलैंड एवं भारत पर प्रभाव
संपादित करेंअमेरिकी क्रांति का प्रभाव आयरलैंड एवं कुछ अंशों में भारत पर भी पड़ा। उस समय आयरलैंड के लोग भी इंग्लैंड के लोग भी इंग्लैंड के विरूद्ध अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। अमेरिकी क्रांति ने उन्हें स्वतंत्र रूप से प्रेरणा प्रदान की। अमेरिकी नारा प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नही आयरलैंड में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ फलस्वरूप 1782 ई. में ब्रिटिश सरकार ने आयरलैंड की संसद को विधि निर्माण का अधिकार दे दिया। भारत पर अमेरिकी क्रांति का प्रभाव प्रतिकूल रूप से पड़ा। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के काल में फ्रांस के युद्ध में प्रवेश होने से भारत में भी आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। जिससे लाभ उठाकर अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों की शक्ति क्षति पहुंचाकर अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग को सुलभ बना लिया। एक दूसरे तरीके से भी अमेरिकी क्रांति का प्रभाव भारत पर देखा जा सकता है। वस्तुतः अमेरिकी क्रांति के अनेक कारणों में एक कारण यही भी था कि ब्रिटिश ने अमेरिकी उपनिवेशों के शासन में प्रभावी हस्तक्षेप नहीं किया था। फलतः अमेरिकी उपनिवेशवासियों में स्वातंत्र्य चेतना एवं स्वशासन की पद्धति का विकास हो गया। जब ब्रिटिश ने वहां हस्तक्षेप किया तो असंतोष उपजा। अतः ब्रिटेन ने इस स्थिति से सीख लेकर भारतीय उपनिवेश के आंतरिक मामलों में आरंभिक चरण से सक्रिय हस्तक्षेप जारी रखा और वहां के निवासियों की स्वतंत्रता को सीमित रखा। सहायक संधि एवं विलय की नीति के माध्यम से भारत के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश हस्तक्षेप किया गया एवं फूट डालों तथा शासन करो की नीति अपनाकर भारतीय वर्गों को अलग-अलग रखा गया। इस तरह अमेरिकी स्थितियों से सीख लेते हुए भारत में उन स्थितियां को उत्पन्न किया गया जिससे लोग बंटे रहे और औपनिवेशक साम्राज्य पर ब्रिटिश साम्राज्य की पकड़ बनी रहे। इस तरह हम कह सकते हैं कि अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध ने ब्रिटेन को एक साम्राज्य से तो वंचित कर दिया लेकिन एक-दूसरे साम्राज्य की नींव को मजबूत कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम की प्रकृति
संपादित करेंक्रांति एवं स्वतंत्रता संग्राम के रूप में
संपादित करेंअमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को दो चरणों में बांटकर देखा जा सकता है- प्रथम चरण 1762-72 का काल, क्रांतिकारी आंदोलन का काल रहा और इस काल में औपनिवेशिक शोषण के विरूद्ध आवाज उठाई गई तथा ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर ही आंतरिक सुधारों पर बल दिया गया। किन्तु जब यह प्रयास विफल हो गया तब 1772 के पश्चात् दूसरा चरण आरंभ होता है जो स्वतंत्रता-संग्राम का चरण रहा। इस चरण में अमेरिकी नेताओं ने केवल कर लगाने के अधिकार को ही चुनौती नहीं दी बल्कि यह घोषित किया कि ब्रिटिश साम्राज्य खुद ही एक मुख्य समस्या है और उससे मुक्ति ही एकमात्र रास्ता है। इस प्रकार अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की प्रक्रिया क्रांति से शुरू हुई और जिसकी परिणति स्वाधीनता संग्राम के रूप में हुई। इसे क्रांति इसलिए कहा जाता है कि सम्पूर्ण आधुनिक विश्व इतिहास के संदर्भ में राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक पहलुओं पर आमूल चूक परिवर्तन लाया गया।
मध्यवर्गीय स्वरूप
संपादित करेंअमेरिकी मध्यवर्ग अत्यंत उदार, प्रगतिशील एवं जागरूक था। इस वर्ग ने उपनिवेशी शासकों के विशेषाधिकारों के खिलाफ आवाज उठाई और क्रांति को नेतृत्व प्रदान किया। सैमुअल एडम्स, बेंजमिन फ्रैंकलिन, जेम्स ओटिस जैसे नेता मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। वैचारिक आधार पर लड़ी गई इस क्रांति में मध्यवर्गीय मुद्दे प्रमुखता लिए हुए थे। जैसे-प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं, मताधिकार की मांग, स्वाधीनता की मांग आदि। स्वतंत्रता के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में मध्यवर्ग ही प्रमुख था।
वर्गीय-संघर्ष
संपादित करेंअमेरिकी-क्रांति में वर्गीय संघर्ष का पुट भी विद्यमान था जिसमें एक ओर इंग्लैंड का कुलीन शासक वर्ग था जिसके समर्थन में अमेरिकी धनी एवं कुलीन वर्ग थे जो प्रजातंत्र के आगमन एवं उसकी प्रतिक्रियाओं से भयभीत था। दूसरी तरफ अमेरिकी के कारीगर, शिल्पी, श्रमिक, मध्य वर्ग के लोग थे जो अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के पक्षधर थे।
प्रगतिशील स्वरूप
संपादित करेंक्रांति प्रगतिशील स्वरूप को लिए हुए थी, जिसकी अभिव्यक्ति उसकी शासन प्रणाली और संविधान में देखी जा सकती है। जिसमें गणतंत्रवाद, संविधानवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना पर बल दिया गया था।
उपनिवेशवाद विरोधी स्वरूप
संपादित करेंक्रांति ने औपनिवेशिक सिद्धान्तों पर चोट की और स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण को प्रोत्साहन दिया।
लैंगिक समानता के रूप में
संपादित करेंअमेरिकी क्रांति में स्त्रियों ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। गुप्तचर के रूप में कार्य किया, शस्त्र निर्माण से सहयोग दिया। क्रांति में महिलाओं की भागीदारी देख कार्नवालिस ने कहा भी- यदि हम लोग उत्तरी अमेरिका के सभी पुरूषों को खत्म भी कर दे तो भी औरतों को जीतने के लिए हमें काफी लड़ना पड़ेगा।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ A cease-fire in America was proclaimed by Congress Archived 2016-11-17 at the वेबैक मशीन on April 11, 1783 pursuant to a cease-fire agreement between Great Britain and France on January 20, 1783. The final peace treaty was not signed until September 3, 1783, ratified on January 14, 1784 in the U.S., and final ratification exchanged in Europe on May 12, 1784. Hostilities in India continued until July 1783.
- ↑ Oneida, Tuscarora, Catawba, Lenape, Chickasaw, Choctaw, Mahican, Mi'kmaq (until 1779), Abenaki, Cheraw, Seminole, Pee Dee, Lumbee, Watauga Association
- ↑ (1780–83)
- ↑ (1780–84)
- ↑ Onondaga, Mohawk, Cayuga, Seneca, Mi'kmaq (1779 से), Cherokee, Odawa, Muscogee, Susquehannock, Shawnee
- ↑ अ आ इ ई Duncan, Louis C. MEDICAL MEN IN THE AMERICAN REVOLUTION Archived 2019-06-21 at the वेबैक मशीन (1931).
- ↑ अ आ Jack P. Greene and J. R. Pole. A Companion to the American Revolution (Wiley-Blackwell, 2003), p. 328.
- ↑ अ आ Jonathan Dull, A Diplomatic History of the American Revolution (Yale University Press, 1985), p. 110.
- ↑ "Red Coats Facts – British Soldiers in the American Revolution". totallyhistory.com. मूल से 2 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 नवंबर 2016.
- ↑ Mackesy (1964), pp. 6, 176 (British seamen).
- ↑ Jasanoff, Maya, Liberty's Exiles: American Loyalists in the Revolutionary World (2011).
- ↑ A. J. Berry, A Time of Terror (2006) p. 252
- ↑ Greene and Pole (1999), p. 393; Boatner (1974), p. 545.
- ↑ Howard H. Peckham, ed., The Toll of Independence: Engagements and Battle Casualties of the American Revolution (Chicago: University of Chicago Press, 1974).
- ↑ American dead and wounded: Shy, pp. 249–50. The lower figure for number of wounded comes from Chambers, p. 849.
- ↑ "Spanish casualties in The American Revolutionary war". Necrometrics. मूल से 8 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 नवंबर 2016.
- ↑ "Eighteenth Century Death Tolls". necrometrics.com. मूल से 8 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि January 7, 2016.
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