अर्थापत्ति
मीमांसा दर्शन में अर्थापत्ति एक प्रमाण माना गया है। यदि कोई व्यक्ति जीवित है किंतु घर में नहीं है तो अर्थापत्ति के द्वारा ही यह ज्ञात होता है कि वह बाहर है।[1] प्रभाकर के अनुसार अर्थापत्ति से तभी ज्ञान संभव है जब घर में अनुपस्थित व्यक्ति के संबंध में संदेह हो। कुमारिल के मत में उस व्यक्ति के जीवन के बारे में निश्चय तथा घर में अनुपस्थिति दोनों का मिलाकर ही उस व्यक्ति के बाहर होने का ज्ञान होता है। न्यायशास्त्र के अनुसार अर्थापत्ति अनुमान के अंतर्गत है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Arthapatti". ब्रिटैनिका विश्वकोश. Archived from the original on 26 अक्तूबर 2014. Retrieved २५ अक्टूबर २०१४.
{{cite web}}
: Check date values in:|archive-date=
(help)
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Arthapatti (हिन्दूपीडिया)
- arthāpatti in Kumārila’s Ślokavārttika, vv. 1–9