अलख (संस्कृत :अलक्ष्य ) का अर्थ है, जो दिखाई न पड़े, अदृश्य, अप्रत्यक्ष। उदाहरण- 'अलख न लखिया जाई' (कबीर)। अगोचर, इंद्रियातीत, परमात्मा का एक विशेषण। 'अलख अरूप अवरन सो करता ' - जायसी

  • (१) शून्य, परमात्मा, अविनश्वर नाम जिसका स्मरण गूदरपंथी और नाथ जोगी साधु, घर-घर भिक्षा मांगते समय, 'अलख अलख' पुकार का दिलाया करते हैं।
  • (२) नाथपंथी जोगियों का वह गीत जो भिक्षा मांगते समय, प्राय: चिकारों पर गाया जाता है और जिसमें अधिकतर गोपीचंद, भरथरी, गोरख, पूरन भगत या मैनावती की कथाएँ अथवा निगुण मत की भावनाएँ पाई जाती है; निरगुनियां गीत। इसी से 'अलख जगाना' एक मुहावरा ही बन गया।

'अलखदरीबा' वह स्थान जहाँ पर संत दादूदयाल अपने अनुयायियों के साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा किया करते थे।

'अलख निरंजन' परमात्मा का एक नाम जो उसके शून्यवत अदृश्य रहने के कारण पड़ा।

'अलखवाला' जोगियों का एक उपसंप्रदाय।

अलख शब्द से संबंधित कुछ और संप्रदाय भी हैं, यथा 'अलखधारी' भारत के पश्चिमोतर प्रदेशों का एक संप्रदाय, जिसके अनुयायी अलख अगोचर तत्त्व का ध्यान करते हैं। 'अलखनामी' संप्रदाय।