लकड़ी आदि को प्रज्वलित कर चक्राकार घुमाने पर अग्नि के चक्र का भ्रम होता है। यदि लकड़ी की गति को रोक दिया जाए तो चक्राकार अग्नि का अपने आप नाश हो जाता है। बौद्ध दर्शन और वेदांत में इस उपमा का उपयोग मायाविनाश के प्रतिपादन के लिए किया गया है। माया के कारण का नाश होने पर माया से उत्पन्न कार्य का भी नाश हो जाता है। यही अलातचक्र के दृष्टांत से सिद्ध किया जाता है।