अल-हुर इब्न याजीद अल तामीमी

अल-हुर इब्न याजीद एक कमांडर था याजीद की सेना का व्हे तब तक उसी सेना मैं था। जब हज़रत इमाम हुसैन आते है बात करने और उस फौज को समझाते हैं, कि तुम किया नहीं जानते कि तुम क्या करने जा रहे हो। किया तुम मेरे नाना हज़रत मुहम्मद स. ह. अ. स। का कलमा नहीं पड़ते गर पड़ते हो तो तुम उनके बताए हुए रास्ते पर क्यूं नहीं चलते मैं तुमसे जंग नहीं करना चाहता। है कोई जो इसमें मेरा साथ दे गर तुम नहीं मानोगे तो कल कयामत के दिन तुम किया मुंह दिखाओगे किया बोलोगे अपने नबी से कि हमने ही तुम्हारे प्यारे नवासे को कत्ल किया था जो हक़ पर थे और हमने बातिल का साथ दिया। अभी भी वक्त है आओ मेरे साथ आओ जिसको हौज-ए कौसर पीना है मेरे साथ आओ, जिसको जन्नत मैं जाना है मेरे साथ आओ। तभी हुर याजीद की फोज में से निकलता है और हज़रत इमाम हुसैन के हाथ पर बेअत करता है और, इजाज़त लेते है जंग में जाने की तभी हज़रत इमाम हुसैन इजाज़त दे देते है। और बहे लड़ते हुए शहीद हो जाते है।