अवमूल्यन से आंतरिक दाम प्राय गिरते है l अवमूल्यन आर्थिक शब्दावली का एक हिस्सा है; जब किसी देश द्वारा मुद्रा की विनिमय दर अन्य देशों की मुद्राओं से कम कर दिया जाये ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके तो उसे अवमूल्यन कहते हैं।

प्रशासनिक निर्णय द्वारा विनिमय दर में की गई कटौती को अवमूल्यन कहते हैं। भारत में 1947 से अभी तक 3 बार अवमूल्यन हुआ है। भारतीय रुपए का अवमुल्यन क्रमश: 1949, 1966 तथा 1991 व 1992 हुआ है। अवमुल्यन होने से आयात में कमी तथा निर्यात में वृद्धि होती है

अवमूल्यन से केवल निर्यात में तभी वृद्धि हो सकती है जब देश किसी देश की मांग की लोच एक से अधिक हो एवं उस देश में प्रोडक्शन कैपेसिटी भी मौजूद हो जिसस2 मांग बढ़ने पर उसकी सप्लाई पूर्ण रूप से की जा सके अन्यथा अवमूल्यन के द्वारा निर्यात में वृद्धि नहीं होगी यह कथन माननीय अर्थशास्त्री सिडनी एलेग्जेंडर ने प्रस्तुत किया एवं मांग की लोच के बारे में अर्थशास्त्री एपिलर नर ने बताया।