अश्व संचालन दो शब्दों से मिलकर बना है। अश्व व संचालन। इस मुद्रा में जिस प्रकार घोड़े को दौड़ाया जाता है उस मुद्रा में शरीर को रखकर योग का अभ्यास किया जाता है। अश्व अथवा घोड़ा बहोत ही फुर्ती वाला होता है और यह क्रिया हम फुर्तिवान भी बनाता है ।

अश्व संचालन योग के लाभ

संपादित करें

अश्व संचालन योग से जंघाओं में स्थित तनाव दूर होता है। यह मुद्रा मेरूदंड को सीधा बनाने रखने के लिए कारगर होता है। यह छाती और हिप्स के लिए अच्छा व्यायाम होता है। इससे श्वसन क्रिया अच्छी रहती है। इस आसन के अभ्यास से जंघाओं और शरीर में लचीलापन आता है जिससे पीछे की ओर झुककर किया जिन योग मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है उन्हें अभ्यास करते समय विशेष परेशानी नहीं होती है। इसी प्रकार बैठकर जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है उनके लिए भी यह योग बहुत ही लाभकारी होता है।

अश्व संचालन अवस्था

संपादित करें

इस आसन के अभ्यास के समय कमर झुके नहीं इसके लिए मेरूदंड सीधा और लम्बवत रखना चाहिए। अभ्यास के समय श्वसन के साथ धड़ और मेरूदंड ऊपर की ओर हो इसका ख्याल रखना चाहिए और प्रश्वास के साथ कमर नीचे की ओर हो इसका ध्यान रखना चाहिए। इस मुद्रा का अभ्यास करते समय चाहें तो घुटनों के नीचे कम्बल या तौलिया रख सकते हैं इससे आपके घुटने रिलैक्स रहेंगे।

सावधानियां

संपादित करें

जब घुटनों में अथवा हिप्स में किसी प्रकार की परेशानी हो उस समय इस मद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

चरणवद्ध योग क्रिया

संपादित करें
  • चरण 1 टेबल मुद्रा के समान हथेलियों और घुटनों पर शरीर को स्थापित करें।
  • चरण 2 बाएं पैर को आगे बढ़ाएं और दोनों हाथों के बीच पैर को लाएं।
  • चरण 3 हथेलियो से ज़मीन को दबाएं। धड़ को ऊपर उठाएं।
  • चरण 4 मेरूदंड को सीधा आगे की ओर खींच कर रखें।
  • चरण 5 सिर और गर्दन को आगे की ओर मेरूदंड की सीध में रखें। छाती को आगे की ओर झुकाकर नहीं रखें।
  • चरण 6 इस मुद्रा में 30 सेकेण्ड से 1 मिनट तक बने रहें।
  • चरण 7 दोनों तरफ 5-6 बार इसे दुहराएं।

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें