अहमद शाह अब्दाली
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अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफ़ग़ानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। अब्दाली को अफ़ग़ान क़बीलों की पारंपरिक पंचायत जिरगा ने शाह बनाया था, जिसकी बैठक पश्तूनों के गढ़ कंधार में हुई थी। अहमद शाह अब्दाली ने 25 वर्ष तक शासन किया। ताजपोशी के वक़्त, साबिर शाह नाम के एक सूफ़ी दरवेश ने अहमद शाह अब्दाली को दुर-ए-दुर्रान का ख़िताब दिया था जिसका मतलब होता है मोतियों का मोती। इसके बाद से अहमद शाह अब्दाली और उसके क़बीले को दुर्रानी के नाम से जाना जाने लगा। अब्दाली, पश्तूनों और अफ़ग़ान लोगों का बेहद अहम क़बीला है। अहमद शाह अब्दाली के विशाल साम्राज्य का दायरा पश्चिम में ईरान से लेकर पूरब में हिंदुस्तान के सरहिंद तक था। उसकी बादशाहत उत्तर में मध्य एशिया के अमू दरिया के किनारे से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर के तट तक फैली हुई थी।[1]
उसने भारत पर सन् 1748 तथा 1767 ई. के बीच 6बार चढ़ाई की। उसने पहला आक्रमण 1748 ई. में पंजाब पर किया, जो असफल रहा। 1749 में उसने पंजाब पर दूसरा आक्रमण किया और वहाँ के गर्वनर 'मुईनुलमुल्क' को परासत किया। 1752 में नियमित रुप से पैसा न मिलने के कारण पंजाब पर उसने तीसरा आक्रमण किया। उसने हिन्दुस्तान पर चौथी बार आक्रमण 'इमादुलमुल्क' को सज़ा देने के लिए किया था। 1753 ई. में मुईनुलमुल्क की मृत्यु हो जाने के बाद इमादुलमुल्क ने 'अदीना बेग ख़ाँ' को पंजाब को सूबेदार नियुक्त किया। (मुईनुलमुल्क को अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब में अपने एजेन्ट तथा गर्वनर के रुप में नियुक्त किया था)। इस घटना के बाद अब्दाली ने हिन्दुस्तान पर हमला करने का निश्चय किया। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। 23 जनवरी, 1757 को वह दिल्ली पहुँचा और शहर क़ब्ज़ा कर लिया। उस समय दिल्ली का शासक आलमगीर (द्वितीय) था। वह बहुत ही कमजोर और डरपोक शासक था। उसने अब्दाली से अपमानजनक संधि की जिसमें एक शर्त दिल्ली को लूटने की अनुमति देना था। अहमद शाह अब्दाली बहुत रहमदिल भी था। उसने बहुत सारे मंदिरों और अनाथालयों को भी दान किया था। [2]1761 में पानीपत की लड़ाई अहमद और मराठो के मध्य हुआ.
मृत्यु
संपादित करेंअहमद शाह दुर्रानी की 16 अक्टूबर 1772 में मृत्यु हुई। [3]अहमद शाह अब्दाली का मकबरा कंधार में है।