अहिरवाड़ा

भारत में शहर

अहिरवाड़ा मध्य भारत या आधुनिक मध्य प्रदेश में पार्वती और बेतवा नदियों के बीच स्थित एक ऐतिहासिक क्षेत्र है।[1] अहिरवाड़ा राज्य भिलसा और झांसी शहरों के बीच स्थित था।[2]

असीरगढ़ किला

इतिहास संपादित करें

आभीर अक्सर सौराष्ट्र के क्षत्रप शिलालेख में उल्लेखित होते रहे हैं। पुराणों और बृहद्संहिता के अनुसार समुद्रगुप्त काल में आभीर दक्षिणी क्षेत्र में शासक थे।[3] जो धीरे-धीरे भारत के विभिन्न भागों में फैल गए। बाद की तारीख में इन्होंने मध्य प्रदेश में अहिरवाड़ा पर कब्जा कर लिया। संवत 918 के जोधपुर शिलालेख से स्पष्ट है कि राजस्थान में भी उनका कब्जा था। शिलालेख के अनुसार आभीर अपने हिंसक आचरण की वजह से, अपने पड़ोसियों के लिए एक आतंक थे।[4]

औरंगज़ेब के शासनकाल में, अहिरवाड़ा खींची वंश के राजा धीरज सिंह के शासन के अधीन आ गया, जो ज्यादातर समय के लिए अहीर विद्रोह को दबाने और व्यवस्था बहाल करने में व्यस्त रहे।[5]

पूरनमल संपादित करें

पूरनमल 1714-1716 (ई॰) के दौरान मालवा क्षेत्र के एक अहीर शासक थे।[6]


1714 में, जयपुर के राजा जयसिंह, मालवा में विकार दबाने में सफल हो गए।[7] अफगान दंगाइयों ने अहीर नेता पूरनमल की मदद से सिरोंज पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।[8] अहीर देश (अहिरवाड़ा) अपने नेता पुरनमल के नेतृत्व में अंग्रेज़ सरकार से विद्रोह के लिए खड़ा हो गया, उन्होंने सिरोंज से कालाबाग के लिए सड़कों को बंद कर दिया और रानोड और इंदौर के अपने गढ़ों से सरकार को परेशान करना जारी रखा।[9] राजा जय सिंह अप्रैल 1715 में फिर सिरोंज पहुँचे और अफगान सेना को पराजित किया। परंतु जय सिंह द्वारा स्थापित यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं टिक पायी और नवंबर 1715 में पूरनमल अहीर ने मालपुर में नए सिरे से लूट-पाट शुरू कर दी। रोहिला, गिरासिया , भील, अहीर व अन्य हिंदू राजशाही मालवा में चारों ओर से विद्रोह हेतु खड़े हो गए व स्थिति को नियंत्रित करने की सरकार की हर कोशिश को नाकाम कर दिया।[10]

शासक संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

संदर्भ सूत्र संपादित करें

  1. त्रिपाठी, राम शंकर (1942). History of ancient India (अंग्रेज़ी में) (प्रथम,पुनर्प्रकाशित संस्करण). देहली: मोतीलाल बनरसीदास. पृ॰ 244. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-208-0018-4.
  2. Epigraphia Indica (अंग्रेज़ी में). 39, भाग 7. 1985. पृ॰ 256. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0013-9572.
  3. Tripathi, Rama Shankar (1942). History of ancient India (अंग्रेज़ी में) (1st. ed., repr. संस्करण). Delhi: Motinal Banarsidass. पृ॰ 244. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120800182. मूल से 16 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 April 2016.
  4. Tej Ram Sharma (1989). A Political History of the Imperial Guptas: From Gupta to Skandagupta. Concept Publishing Company. पृ॰ 87. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 September 2014.
  5. Sinh, Raghubir (1993). Malwa in Transition Or a Century of Anarchy: The First Phase, 1698-1765 (अंग्रेज़ी में). Asian Educational Services. पृ॰ 75. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120607507. मूल से 7 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 May 2016.
  6. Doris Marion Kling (1993). The emergence of Jaipur state: Rajput response to Mughal rule, 1562-1743. University of Pennsylvania, Original from the University of Michigan. पृ॰ 662. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.
  7. Doris Marion Kling (1993). The emergence of Jaipur state: Rajput response to Mughal rule, 1562-1743. University of Pennsylvania, Original from the University of Michigan. पृ॰ 662. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.
  8. Doris Marion Kling (1993). The emergence of Jaipur state: Rajput response to Mughal rule, 1562-1743. University of Pennsylvania, Original from the University of Michigan. पृ॰ 275. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.
  9. Jadunath Sarkar, Editor Raghubir Sinh (1994). A History of Jaipur: C. 1503-1938. Orient Blackswan. पृ॰ 164. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788125003335. मूल से 12 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.
  10. Jadunath Sarkar, Editor Raghubir Sinh (1994). A History of Jaipur: C. 1503-1938. Orient Blackswan. पपृ॰ 167, 168. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788125003335. मूल से 12 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.