आंग्ल-ज़ांज़ीबार युद्ध

आंग्ल-ज़ांज़ीबार युद्ध 27 अगस्त 1896 को ब्रिटिश साम्राज्य और ज़ांज़ीबार सल्तनत के बीच लड़ा गया एक सैन्य संघर्ष था। यह संघर्ष 38 से 45 मिनट के बीच चला, जिसके कारण इसे इतिहास का सबसे छोटा युद्ध बताया जाता है।[3] युद्ध का तत्कालिक कारण 25 अगस्त 1896 को ब्रिटिश समर्थक सुल्तान हमद बिन थुवैनी की मृत्यु और उसके बाद खालिद बिन बरगश का सुल्तान की गद्दी पर बैठना था। ब्रिटिश अधिकारी हामूद बिन मुहम्मद को सुल्तान बनाना चाहते थे, जोकि ब्रिटिश समर्थक था और उनके हितों के अधिक अनुकूल थे। 1886 में हस्ताक्षरित एक संधि के अनुसार, सल्तनत की गद्दी में बैठने के लिए एक शर्त यह थी कि उत्तराधिकारी को ब्रिटिश वाणिज्य दूतावास से अनुमति प्राप्त करना होगा, और खालिद ने इस आवश्यकता को पूरा करना आवश्यक नहीं समझा। अंग्रेजों ने इसे अपनी अवमानना समझी और खालिद को यह कहते हुए अंतिम सन्देश भेजा कि वह अपनी सेनाओं को भंग कर महल छोड़ दे। जवाब में, खालिद ने अपने महल के सैनिको को तैनात कर और खुद को महल के अंदर बन्द कर लिया।

आंग्ल-ज़ांज़ीबार युद्ध
AngloZanzibarWar.jpg
बमबारी के बाद सुल्तान का हरम।
तिथि 09:02–09:40 EAT (06:02–06:40 UTC), 27 अगस्त 1896
(38 मिनट्स)
स्थान ज़ांज़ीबार शहर, ज़ांज़ीबार सल्तनत
परिणाम ब्रिटिश विजित
योद्धा
यूनाइटेड किंगडम ब्रिटिश साम्राज्य ज़ांज़ीबार सल्तनत
सेनानायक
  • यूनाइटेड किंगडम एडमिरल सर हैरी रॉसन
  •   लॉयड मैथ्युस
  • खालिद बिन बरघाश
  • कैप्टन सलाह
शक्ति/क्षमता
  • भूमि: 1,050
  • सागर:
    • 3 क्रूज़र
    • 2 गनबोट
  • भूमी: 2,800
    • 4 तोप
    • 1 शोर बैटरी
  • सागर:
    • एचएचएस ग्लासगॉ, रॉयल याट
    • 2 बोट
मृत्यु एवं हानि
1 ब्रिटिश नाविक घायल[1] 500 मृत या घायल (नागरिक समैत)[2]
  • एचएचएस ग्लासगॉ डूबा
  • 2 बोट डूबा
  • 1 शोर बैटरी ध्वस्त

27 अगस्त को 09:00 बजे पूर्वी अफ्रीका समय (ईएटी) पर अन्तिम चेतावनी की समय सीमा समाप्त हुई, उस समय तक अंग्रेजों ने तीन क्रूज़र, दो गनबोट, 150 मरीन और नाविक, और 900 ज़ांज़ीबारियों को बंदरगाह क्षेत्र में इकट्ठा कर लिया था। रॉयल नेवी की एक टुकड़ी रियर-एडमिरल हैरी रॉसन की कमान में थी और आंग्ल-ज़ांज़ीबारी समर्थक टुकड़ी की कमान ज़ांज़ीबार सेना के ब्रिगेडियर-जनरल लॉयड मैथ्यूज़ (जो ज़ांज़ीबार के पहले मंत्री भी थे) के हाथों में थी। लगभग 2,800 ज़ांज़ीबारियों ने महल के बचाव के लिये जुटे थे; जिसमें अधिकांश प्रजा से भर्ती किए गए नागरिक थे, लेकिन उनमें सुल्तान के महल के रक्षक और उनके कई सौ सेवक और दास भी शामिल थे। रक्षकों के पास तोपखाने के कई इकाई और मशीन गन थे, जो ब्रिटिश जहाजों पर घात लगाये, महल के सामने स्थापित किए गए थे। बमबारी, 09:02 पर चालु हुई, जिससे महल में आग लग गई और बचाव हेतु लगे तोपखाने निष्क्रिय हो गये। एक छोटी नौसैनिक कार्यवाही हुई, जिसमें ब्रिटिशों ने ज़ांज़ीबारी शाही नौका HHS  ग्लासगो और दो छोटे पोत को डुबो दिया। कुछ गोलीबारी ब्रिटिश समर्थक ज़ांज़ीबारी सैनिकों पर भी की गई जब वे महल के पास गए थे। महल में लगे ध्वज को गिरा दिया गया और 09:46 पर गोलीबारी बंद कर दी गई।

सुल्तान की सेना में लगभग 500 लोग हताहत हुए, जबकि केवल एक ब्रिटिश नाविक घायल हुआ। सुल्तान खालिद ने जर्मन पूर्वी अफ्रीका (वर्तमान तंजानिया के मुख्य भाग में) में भागने से पहले, जर्मन वाणिज्य दूतावास में शरण प्राप्त की। अंग्रेजों ने जल्द ही सुल्तान हमूद को सुल्तान की गद्दी पर बैठा कर वहां एक कठपुतली सरकार स्थापित कर दी। युद्ध ने जंजीबार सल्तनत की संप्रभुता के अंत को चिह्नित किया और भारी ब्रिटिश प्रभाव की अवधि शुरू हुई।

ज़ांज़ीबार और अफ्रीकी मुख्य भूमि के द्वीप

लगभग 500 ज़ांज़ीबारी पुरुष और महिलाएं बमबारी के दौरान मारे गए या घायल हो गए, अधिकांश मृतक उस आग का परिणाम थे जो महल में लगी थी।[1][2] यह ज्ञात नहीं है कि इनमें से कितने हताहत सैनिक थे, लेकिन खालिद के सैनिकों के बारे में कहा जाता था कि वे सभी "मृत" पाये गये थे।[4] ब्रिटिश हताहतों की संख्या एक नाविक अधिकारी था, जो बाद में ठीक हो गया था। यद्यपि अधिकांश ज़ांज़ीबारी शहरवासी अंग्रेजों के साथ थे, लेकिन शहर के भारतीय आवासो में लूटपाट की गई, और इस अराजकता में लगभग बीस निवासियों ने अपना जीवन खो दिया।[5] शान्ती व्यवस्था बहाल करने के लिए, 150 ब्रिटिश सिख सैनिकों को सड़कों पर गश्त करने के लिए मोम्बासा से स्थानांतरित किया गया था।[6] सेंट जॉर्ज और फिलोमेल के नाविकों को आग को रोकने के लिए एक फायर ब्रिगेड बनाने के लिए उतारा गया था, जो अब महल से फैल कर पास के कस्टम शेड में पहुंच गया था।[7] कस्टम शेड में आग लगने से कुछ चिंता थी क्योंकि उनमें विस्फोटकों का एक बड़ा भंडार था, हालांकि कोई विस्फोट नहीं हुआ।

 
1896 के ब्रिटिश अखबार में छपा स्टोन टाउन की बमबारी

सुल्तान खालिद, कैप्टन सालेह और लगभग चालीस अनुयायियों समैत महल में लडाई के दौरान जर्मन वाणिज्य दूतावास में शरण ले ली,[4][8] दुतावास में उनके लिये दस सशस्त्र जर्मन सैनिक और नौसैनिकों द्वारा पहरा दे रहे थे, जबकि मैथ्यूज उन्हें गिरफ्तार करने के लिए दुतावास के बाहर सैनिको को तैनात किया, अगर वे बाहर भागने कोशिश करें।[9] प्रत्यर्पण अनुरोधों के बावजूद, जर्मन वाणिज्य दूतावास ने ख़ालिद को अंग्रेज़ों के सामने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया क्योंकि ब्रिटेन के साथ उनके देश की प्रत्यर्पण संधि में विशेष रूप से राजनीतिक कैदी सम्मलित नहीं था।[6] इसके बजाय, जर्मन वाणिज्यदूत ने "ज़ांज़ीबार की जमीन पर पैर न रखने" के शर्त के साथ, खालिद को जर्मन पूर्वी अफ्रीका में पहुंचाने का वादा किया। 2 अक्टूबर को इंपीरियल जर्मन नौसेना का एसएमएस सीडलर बन्दरगाह पर पंहुचा। खालिद वाणिज्य दूतावास से सीधे जर्मन युद्ध पोत पर कदम रखा और गिरफ्तारी से बच गया। उन्हें सीडलर पर नाव से स्थानांतरित किया गया और फिर जर्मन पूर्वी अफ्रीका में दार अस सलाम के पास ले जाया गया।[10] खालिद को 1916 में प्रथम विश्व युद्ध के पूर्वी अफ्रीकी अभियान के दौरान, ब्रिटिश सेना द्वारा पकड़ लिया गया था, और पूर्वी अफ्रीका लौटने से पूर्व सेशेल्स और सेंट हेलेना में निर्वासित किया गया था, जहां 1927 में मोम्बासा में उसकी मृत्यु हो गई।[11] अंग्रेजों ने खालिद के समर्थकों को उनके खिलाफ किए गए गोलीबारी की लागत और लूटपाट के कारण हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए मजबूर किया, जिसकी कीमत 300,000 रुपये थी।

शायद बमबारी के दौरान रॉयल नेवी द्वारा दिखाई गई प्रभावशीलता के कारण, ब्रिटिश प्रभाव के 67 वर्षों के दौरान कोई और विद्रोह नहीं हुआ।[2]

 
1902 में ज़ांज़ीबार शहर बंदरगाह का पैनोरमा दृश्य

एक घंटे के तीन-चौथाई से कम समय तक चलने वाले इस युद्ध को रिकॉर्ड किए गए इतिहास में सबसे छोटा माना जाता है।[12] 38,[1] [13] 40 [14] और 45 [15] मिनट सहित, कई अवधि स्रोत से निकल आई हैं, लेकिन 38 मिनट की अवधि सबसे अधिक बार उद्धृत की जाती है। यह भिन्नता वास्तव में युद्ध की शुरुआत और अंत को लेकर भ्रम के कारण है। कुछ स्रोत युद्ध की शुरुआत को 09:00 पर गोलीबारी के आदेश से लेते हैं और कुछ 09:02 पर वास्तविक गोलीबारी की शुरुआत के साथ। युद्ध का अंत आम तौर पर 09:40 पर माना जाता है, जब आखिरी गोली मारकर, महल के ध्वज को गिरा दिया गया था, लेकिन कुछ स्रोत इसे 09:45 पर बताते हैं। ब्रिटिश जहाजों का लाँग बुक में भी भिन्नताएं देखने को मिलती है, सेंट जॉर्ज में संघर्ष विराम और खालिद का जर्मन दूतावास में प्रवेश 09:35 पर दर्शाया गया है, वहीं थ्रश पर 9:40,रैकून;; पर 9:41, और फिलोमेल और स्पैरो के लॉगबूक पर पर 09: 45 देखने को मिलता है।[16]

  1. Hernon 2003, पृष्ठ 403.
  2. Bennett 1978, पृष्ठ 179.
  3. ग्लेनडे, क्रैग, संपा॰ (2007), गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2008, लंदन: गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, पृ॰ 118, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-904994-19-0
  4. Patience 1994, पृष्ठ 12.
  5. Patience 1994, पृष्ठ 15.
  6. Hernon 2003, पृष्ठ 404.
  7. Patience 1994.
  8. "Will Not Surrender Khalid". The New York Times. 30 August 1896. पृ॰ 5. अभिगमन तिथि 16 October 2008.
  9. Frankl 2006.
  10. Ingrams 1967.
  11. Frankl 2006.
  12. Hernon 2003, पृष्ठ 396.
  13. Haws & Hurst 1985, पृष्ठ 74.
  14. Cohen, Jacopetti & Prosperi 1966, पृष्ठ 137
  15. Gordon 2007, पृष्ठ 146.
  16. Patience 1994.