आइलेट्स ऑफ़ लेंगरहांस अग्न्याशय के वह क्षेत्र हैं जिनमें अंतःस्रावी (अर्थात्, हॉर्मोन-उत्पादक) कोषिकाएँ होती हैं। १८६९ में जर्मन रोगवैज्ञानी शरीरविज्ञान पॉल लेंगर्हांस द्वारा खोजा गए आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हांस अग्न्याशय की मात्र का कुछ १ या २% होते हैं। स्वस्थ वयस्क मनुष्य के अग्न्याशय में कुछ १० लाख आइलेट होते हैं जो कि पूरे अंग में फैले हुए होते हैं; इनकी कुल मात्रा १ से १.५ ग्राम होती है।

यह चित्र मूषक (ऊपर) के आइलेट और मानव (नीचे) के आइलेटों के ढाँचें में फ़र्क दिखाता है और अग्न्याशय का उदरीय (बायाँ) व पृष्ठीय (दाँया) भी दिखाता है। हर प्रकार की कोषिका को अलग रंग दिया गया है। मूषक आइलेट इंसुलिन अंतरभाग दिखाते हैं जबकि मानवीय में यह नहीं है।
चित्र:Islet.png
शूकरीय आइलेट ऑफ़ लेंगर्हांस। बाईं छवि हीमाटोग्ज़ाइलिन दाग से बनी ब्राइट्फ़ील्ड छवि है; नाभियाँ गाढ़े रंग के वृत्त में हैं और कोष्ठकी अग्न्याशयी उतकक आइलेट ऊतक से अधिक गाढ़ा है। दाईं छवि उसी कटाव को इंसुलिन के इम्युनोफ़्लुओरेसेंस से दाग के बनी है, इसमें बीटा कोषिकाएँ दिखती हैं।
आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हांस, हेमालुम-इओसिन दाग।
श्वान के अग्न्याशय का चित्र। २५० गुना।

कोशिका के प्रकार संपादित करें

आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हंस द्वारा उत्पादित हॉर्मोन (कम से कम) पाँच प्रकार की कोषिकाओं द्वारा सीधे रक्त प्रवाह में रसित होते हैं। मूषक आइलेटों में अंतःस्रावी कोषिका उपसमुच्चयों का वितरण इस प्रकार है:[1]

यह पाया गया है कि अग्न्याशयी आइलेटों की साइटो-वास्तुशिल्प अलग अलग प्रजातियों में भिन्न भिन्न है। [2][3][4] खासतौर पर, मूषक आइलेटों में इंसुलिन उत्पादी बीटा कोशिकाओं का बहुल हिस्सा गुच्छे के अंतर्भाग में होता है और इर्द गिर्द न्यून मात्रा में अल्फ़ा, डेल्टा व पीपी कोशिकाएँ होती हैं, जबकी मानवीय आइलेटों में पूरे गुच्छे अल्फ़ा और बीटा कोशिकाएँ काफ़ी आस पास करीबी संबंध में रहती हैं।[2][4]

आइलेटें एक दूसरे को पैराक्राइनऑटोक्राइन संचार के जरिए एक दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं, तथा बीटा कोशिकाएँ अन्य बीटा कोशिकाओं के साथ विद्युतीय तौर पर भी जुड़े होते हैं (किंतु अन्य कोशिका प्रकारों के साथ नहीं)।

पैराक्राइन प्रतिपुष्टि संपादित करें

लेंगर्हंस के आइलेट की पैराक्राइन प्रतिपुष्टि प्रणाली का यह ढाँचा है:[5]

  • इंसुलिन: बीटा कोषिकाओं को सक्रिय करती है व अल्फ़ा कोषिकाओं को निष्क्रिय करती है
  • ग्लूकागोन: अल्फ़ा कोषिकाओं को सक्रिय करती है जो बीटा कोषिकाओं और डेल्टा कोषिकाओं को सक्रिय करते हैं।
  • सोमटोस्टेनिन: अल्फ़ो कोषिकाओं और बीटा कोषिकाओं को निष्क्रिय करती है

विद्युतीय गतिविधि संपादित करें

अग्न्याशयी कोषिकाओं की विद्युतीय गतिविधि का अध्ययन पैच क्लैंप तकनीकों द्वारा किया गया है और पाया गया है कि अखंड आइलेटों की कोषिकाओं का व्यवहार छितरी कोषिकाओं के व्यवहार से काफ़ी अलग है।[6]

प्रकार १ की मधुमेह के उपचार के रूप में संपादित करें

प्रकार १ मधुमेह में लेंगर्हंस के आइलेटों की बीटा कोषिकाएँ एक स्वचालित प्रतिरोध प्रक्रिया के जरिए चुन चुन के नष्ट कर दी जाती हैं, अतः शोधक और निदानकारी सक्रिय रूप से आइलेट प्रतिरोपण के जरिए शरीर-क्रियात्मक बीटा कोषिका क्रियाकलापों को पुनर्स्थापित करने की विधियाँ खोज रहे हैं ताकि प्रकार १ मधुमेह वाले मरीज़ों को राहत मिले। [7][8]

हाल के निदानात्मक प्रयोगों ने दिखाया है कि मृत दानकर्ताओं से प्राप्त आइलेटों के प्रतिरोपण के जरिए अस्थिर प्रकार १ मधुमेह के मरीज़ों को इंसुलिन से स्वतंत्रता और बेहतर चयापचयी नियंत्रण कई बार प्राप्त हुआ है।[8]

प्रकार १ मधुमेह के लिए आइलेट प्रतिरोपण के लिए इस समय सशक्त प्रतिरोधदमन की ज़रूरत होती है ताकि दानप्राप्त आइलेटों का अग्रहण न हो।[9] रेचेल हैरिस, आइलेट कोषिका प्राप्तकर्ता को मुधुमेह शोध संस्थान, मियामी, फ़्लोरिडा में प्रतिरोपित किया गया था। मियामी हेरल्ड के अनुसार फ़रवरी २००४ में रेचल सार्वाधिक समय तक इंसुलिन मुक्त जीवित मधुमेही बनीं। [10]

बीटा कोषिकाओं का एक और स्रोत, जैसे कि किसी मधुमेही की वयस्क स्टेम कोशिकाओं या पूर्वज कोशिकाओं द्वारा प्राप्त आइलेटों से प्रतिरोपण के लिए दानियों के अंगों की तंगी थोड़ी कम हो सकती है। पुनर्जनन चिकित्सा का क्षेत्र काफ़ी तेज़ी से विकसित हो रहा है और निकट भविष्य में काफ़ी आशाएँ दे सकता है। लेकिन, प्रकार १ मधुमेह, अग्न्याशय में बीटा कोषिकाओं के स्वप्रतिरोधी नाश से होता है। अतः एक प्रभावी उपचार के लिए क्रमबद्ध, समीकृत विधि अपनानी होगी जो कि उपयुक्त व सुरक्षित स्वप्रतिरोधी अवरोध और बीटा कोषिका पुनर्जनन दोनों का ही खयाल रखे।[11]

प्रतिरोपण संपादित करें

आइलेट कोशिका प्रतिरोपण से बीटा कोषिकाएँ वापस लाने और मधुमेह का उपचार करने की संभावना है, यह पूर्ण अग्न्याशय प्रतिरोपण या कृत्रिम अग्न्याशय के बजाय एक और विकल्प है।

इलिनॉय विश्वविद्यालय के शिकागो चिकित्सा केंद्र में मुख्यालयित शिकागो परियोजना यह कोशिश कर रही है कि बीटा कोषिकाओं को "इन विवो" ही पुनर्जनित किया जाए। ध्यान देने योग्य है कि बीटा कोषिकाओं में जल्दी ही एपोप्टोसिस हो जाती है और ये साधारण रूप से चलने वाले अग्न्याशय में नष्ट हो जाते हैं। इसका स्रोत पैंडर (एफ़एएम३बी), प्रतीत होता है, यह एक जीन है जो आरएनए के साथ जुड़ के काम करता है।[12] सक्रिय होने पर पैंडर बीटा कोषिकाओं को एस चरण में अवरोधित कर देता है जिससे एपोप्टोसिस हो जाती है। इस बीटा कोषिका की मात्रा में घटाव होने से अधिकांश प्रतिरोपित बीटा कोषिकाएँ भी नष्ट हो जाती हैं।

दीर्घा संपादित करें

हार्मोन/आइलेट वास्तुशिल्प

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. Wang, Michael B.; Bullock, John; Boyle, Joseph R. (2001). Physiology. Hagerstown, MD: Lippincott Williams & Wilkins. पपृ॰ &#91, page&nbsp, needed&#93, . आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-683-30603-0.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  6. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  7. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  8. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  9. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  10. "Diabetics - cell transplant gives new future". Miami Herald. MedicalNewsToday.com (republisher). February 13, 2004. मूल से 28 दिसंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-04-21. नामालूम प्राचल |originaldate= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  11. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  12. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें