आचार्य महामण्डलेश्वर विद्यानन्द गिरि
कैलाश दशम पीठाधीश्वर परमादर्श आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीमत्स्वामी विद्यानन्द गिरि जी महाराज का जन्म २९ नवम्बर सन् १९२१ सो जिला nalanda बिहार के गाजीपुर ग्राम में हुआ। आपके पिता जवाहर शर्मा जी और माता ललिता देवी थी। आप बाल्यकाल से ही भगवान् की उपासना में रुचि रखते थे। २० वर्ष की आयु में घर गृहस्थी को त्याग कर साधु जीवन अपनाया। आपके गुरुदेव परमहंस स्वामी विज्ञानानन्द गिरि जी महाराज एवं परमगुरुदेव योगिराज स्वामी नित्यानन्द गिरि जी महाराज से आपने परमार्थ पथ की दीक्षा ली। अपनी सारस्वत साधना में आपने काशी में वेदान्त-सर्वदर्शनाचार्य तक अध्ययन की। तत्पश्चात् आप अध्यापन कार्य में संलग्न हुए। दस वर्षों तक दिल्लीस्थ विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य रहे। वहीं पर निरंजनपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीमत्स्वामी नृसिंह गिरि जी महाराज एवं निरंजनपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी महेशानन्द जी महाराज की छत्रछाया में संन्यास दीक्षा ली।
२१ जुलाई सन् १९६९ को आप कैलाश ब्रह्मविद्यापीठ ऋषिकेश के महामण्डलेश्वर पद पर आसीन हुए। आपके कार्यकलापों से विद्यमान कैलास आश्रम के दो पूर्वाचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी विष्णुदेवानन्द गिरि जी महाराज एवं महामण्डलेश्वर स्वामी चैतन्य गिरि जी महाराज अत्यन्त संन्तुष्ट हुए। आपने ग्रन्थ रचना एवं प्रकाशन में विशेष रुचि ली और अनेकों ग्रन्थों का लोककल्याणार्थ प्रकाशन बड़े धैर्यपूर्वक करवाया। आप भारत के आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र के आचार्यों में अग्रगण्य हैं। समाज की दृष्टि में आप की क्षमता शक्ति लगन तत्परता विद्वत्ता तपश्चर्या सहिष्णुता एवं उदारता सभी गगनचुम्बी और अलौकिक हैं। आध्यात्मिक संस्कृति के सर्वांगीण विकास और जनजीवन को दिव्यालोक प्रदान करने में आपने युगपुरुष की भूमिका निभाई है। आपने शांकरी परम्परा को पुष्ट करने का स्तुत्य सफल प्रयास किया है। शांकरभाष्य नित्य पारायण के आप प्रवर्तक हैं और तदनुरूप ग्रन्थों के पारायण संस्करणों को आप ने प्रकाशित करवाया हैं। आपकी इन सभी प्रवृत्तियों को देखकर सन्तों एवं भक्तों ने आपको शांकरी-परम्परा-संपोषकाचार्य उपाधि से समलंकृत किया है।
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