आनंद मोहन

भारतीय राजनीतिज्ञ

आनंद मोहन शिवहर से पूर्व लोकसभा सांसद है, उनकी पत्नी लवली आनंद भी पूर्व सांसद है। आनंद मोहन एक महान स्वतंत्रता सेनानी रामबहादुर सिंह के परिवार से है। इनके परिवार के कई लोगो ने आजादी के लड़ाई में भाग लिया। उन्होंने आपातकाल के दौरान जे.पी. आन्दोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल में उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हे दो वर्ष तक जेल में रहना पड़ा। मैथिली को अष्टम अनुसूचि में शामिल करने के पीछे उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई। भगत सिंह और नेल्सन मंडेला आनंद मोहन के आदर्श हैं। कोसी की मिट्टी पर पैदा लिए आनंद मोहन क्रांति के अग्रदूत और संघर्ष के पर्याय हैं। सत्ता के मुखर विरोध के कारण उन्होंने अपनी जवानी का अधिकांश हिस्सा जेल में बिताया है।

आनंद मोहन
आनंद मोहन

आनंद मोहन और लवली आनंद

निर्वाचन क्षेत्र शिवहर, बिहार

जन्म १९५४
सहरसा
जीवन संगी लवली आनंद
संतान चेतन आनंद 1991,सुरभि आनंद 1994, अंशुमान आनंद 1997
आवास गंगजला मुहल्ला, गोकुल चौक, सहरसा

राजनीतिक जीवन संपादित करें

आनंद मोहन सिंह अपने प्रारम्भिक जीवन काल में चंद्रशेखर सिंह से बहुत अधिक प्रभावित रहे। स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर उनके राजनीतिक गुरु थे। आंनद मोहन सिंह ने 1980 में क्रांतिकारी समाजवादी सेना का गठन किया लेकिन लोकसभा चुनाव हार गये। आनंद मोहन 1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल से विजयी हुए। आनंद मोहन ने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। उनकी पत्नी लवली आनंद ने 1994 में वैशाली लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीती। 1995 में युवा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री देख रहा था। 1995 में उनकी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था। आनंद मोहन 1996,1998 में दो बार शिवहर से सांसद रहे। आंनद मोहन बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे अब यह पार्टी अस्तिव में नहीं है। अपने राजनीतिक कैरियर में भूल आनंद मोहन ने स्वयं की,1998 में लालू यादव से समझौता कर के। आनंद मोहन बिहार के गोपालगंज में डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं।.

कवि के रूप में आनंद मोहन संपादित करें

पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने आनंद मोहन के कविता संग्रह 'कैद में आजाद कलम' का दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में लोकार्पण किया। यह कार्यक्रम फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन की ओर से आयोजित किया गया था। कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन में छपकर तैयार है। कविता संग्रह की कविताएं जेल में लिखी गई हैं। 1974 के आंदोलन के समय वे क्रांतिदूत अखवार के संपादक थे। कोसी इलाके का यह चर्चित अखवार था। बिहार का तीसरा जलियावाला बाग कांड के नाम से उनकी एक स्टोरी काफी चर्चित हुई थी। सहरसा जेल में रहकर आनंद मोहन आज गांधी और बौद्ध दर्शन का व्यापक अध्ययन कर चार खंडों में अपनी जेल डायरी को सहेजने में भी लगे हुए हैं। वे अपनी आत्मकथा ‘”बचपन से पचपन” तक’ भी लिख रहे हैं। उनकी कुछ प्रकाशित रचनाएं हैं:

  • कैद में आजाद कलम
  • काल कोठरी से (प्रकाशनाधीन)
  • कहानी संग्रह ‘तेरी मेरी कहानी’ (प्रकाशनाधीन)

अन्ना को फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन का समर्थन संपादित करें

कोसी क्षेत्र के कद्दावर और बिहार की राजनीति में ख़ासा दखल और दमखम रखने वाले पूर्व सांसद आनंद मोहन के समर्थक ना केवल अन्ना के समर्थन में रोड पर उतरे बल्कि मशाल जुलूस निकालकर अन्ना को मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प भी लिया। अन्ना की जय हो की नारों से सहरसा का परिद्रिषा बदल सा चूका है। फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन के बैनर तले सहरसा के गंगजला स्थित आनंद मोहन के आवास से सैंकड़ों की तायदाद में निकला आनंद मोहन के समर्थकों का काफिला शहर के तमाम मुख्य मार्गों से होता हुआ कुंवर सिंह चौक पहुंचा जहां इनलोगों ने कुंवर सिंह की प्रतिमा के सामने केंडल जलाकर अन्ना को मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प लिया। आनंद मोहन की पहल पर सहरसा जेल में भी अन्ना के समर्थन में जेल के सारे स्टाफ अनशन पर बैठे थे। इसमें जेलर से लेकर कैदी तक और चपरासी से लेकर सिपाही तक शामिल थे।

सन्दर्भ संपादित करें

1.[1]
2.में लिखी किताब[मृत कड़ियाँ]
3.[2]
4. [3] Archived 2016-03-07 at the वेबैक मशीन