आपद्धर्म (=आपद्+धर्म) का अर्थ है संकट काल में अपनाया जाने वाला धर्म, विशेष परिस्थितियों में अपनाया जाने वाला धर्म। महाभारत के शान्ति पर्व इसी नाम से एक उपपर्व है।

आपद्धर्म के सम्बन्ध में एक रोचक कथा छांदोग्य उपनिषद में है। यह कथा 'उषस्ति की कथा'नाम से जानी जाती है।

उषस्ति नाम के एक व्यक्ति के गाँव में अकाल पड़ा। दो दिन तक उसको खाने को कुछ नहीं मिला। वह दूसरे गाँव की ओर चला, वहाँ भी वैसी ही परिस्थिति थी। निराश होकर वह और आगे बढ़ा। उसने देखा कि एक पेड़ के नीचे बैठकर एक व्यक्ति कुछ खा रहा है। वस्तुत: वह चाट रहा था। उषस्ति उसके पास गया और पूछा कि ‘क्या खा रहे हो?’ उसने उत्तर दिया, ‘उड़द खा रहा हूँ।’ उषस्ति ने कहा, ‘मुझे उसमें से थोड़ा दो ना। मैं दो दिन से भूखा हूँ।’ वह व्यक्ति बोला, ‘अवश्य देता किन्तु ये सब जूठे हो गये है।’ उस पर उषस्ति बोला, ‘जूठे ही सही, मुझे थोडे दे दो।’ उस व्यक्ति ने एक पत्ते पर थोडे उड़द उषस्ति को दिये। पास में पानी से युक्त मिट्टी का छोटा सा बर्तन था। उसे मूँह लगाकर वह पानी पिया और थोड़ा पानी उषस्ति के लिये रख दिया। किन्तु उडद खाना पूर्ण होने के बाद उषस्ति ने पत्ता फेंक दिया और हाथ झटककर जाने लगा। तो उस व्यक्ति ने कहा, ‘महाशय, पानी पी के जाओ ना’। तब उषस्ति बोला, ‘मैं जूठा पानी नहीं पीता।’ तब वह व्यक्ति बोला, ‘जूठे उड़द खाते हो, तो जूठा पानी क्यौं नहीं चलता।’ तब उषस्ति ने कहा ‘मैं जूठे उड़द नहीं खाता तो मर जाता। अब मुझ में कुछ जान आयी है। कहीं आसपास झरना होगा तो देखता हूँ।’ जूठे उड़द खाना यह आपद्धर्म है। आपद्धर्म को नियमित धर्म नहीं बनाना चाहिये।