आपूर्ति (अर्थशास्त्र)

किसी वस्तु की वह मात्रा जो विक्रेता बाज़ार में उपलब्ध कराने को तैयार हैं
(आपूर्ति वक्र से अनुप्रेषित)

अर्थशास्त्र में आपूर्ति (supply) किसी संसाधन की वह मात्रा होती है जो उस संसाधन के उत्पादक किसी कीमत के बदले उस संसाधन के उपभोक्ताओं को देने के लिए तैयार होते हैं। अलग-अलग उत्पादक भिन्न कीमतों पर उस संसाधन को बनाने के लिए तैयार होते हैं। इसलिए अक्सर किसी क्षेत्र के बाज़ार में किसी संसाधन की आपूर्ति को उसके आपूर्ति वक्र (supply curve) के रूप में दर्शाया जाता है।[1][2][3]

चित्र 1 - एक आपूर्ति वक्र

आपूर्ति वक्र का उदाहरण

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फर्ज़ करें कि किसी देश में कृषि के लिए इतनी भूमि उपलब्ध है कि उसमें करोड़ों टन अनाज उगाया जा सकता है। लेकिन यह भूमि अलग-अलग प्रकार की है: कहीं उपजाऊ है और उसे नदी द्वारा मुफ्त सिंचाई का पानी मिलता है, जबकि अन्य स्थानों पर धरती बहुत शुष्क और बंजर है और उसमें खाद की बड़ी मात्रा चाहिए तथा मेहनत व खर्च से भूमिगत जल कुँओं से निकालना पड़ता है। बहुत से स्थानों में इन दोनों अवस्थाओं के बीच की परिस्थिति है, यानि भूमि मध्यम-दर्जे की उपजाऊँ है और सीमित मात्रा में जल सस्ता है लेकिन अधिक मात्रा में महंगा। कुल मिलाकर देखा जाता है कि:

  • बाज़ार में 15 ₹ प्रति किलोग्राम कीमत मिले, तो अधिक ऊपजाऊ क्षेत्रों के किसान ही अनाज उगाते हैं और 10 करोड़ किलोग्राम तक अनाज उगा लेते हैं। कम ऊपजाऊ क्षेत्रों वाले किसान अनाज नहीं उगाते, क्योंकि इस कीमत पर उनका अनाज उगाने का खर्चा पूरा नहीं होता।
  • यदि बाज़ार में कीमत बढ़े तो और किसान अनाज उगाने लगते हैं। अगर कीमत 30 ₹/किलो मिल जाए, तो 30 करोड़ किलोग्राम तक अनाज उगाया जाएगा।

यह चित्र 1 में दर्शाया गया है। लम्ब अक्ष (P) पर ₹/किलो में कीमत है, और क्षितिज अक्ष (Q) पर करोड़ो किलोग्राम में अनाज उत्पादन की मात्रा है। बाज़ार में किसी कीमत पर कितना अनाज उत्पादित होगा वह इस आपूर्ति वक्र से आसानी देखा जा सकता है। ऐसे ही आपूर्ति वक्र बाज़ार में किसी भी संसाधन के लिए बनाए जा सकते हैं, जिनमें विद्युत उत्पादन, बाज़ार में बाल काटने वाले नाईयों की संख्या, वाहनों का उत्पादन, गणित सिखाने वाले शिक्षकों की संख्या, नए घरों का निर्माण, निवास के लिए किराए के कमरों की उप्लब्ध संख्या,सभी माल और सेवाएँ शामिल हैं।

आपूर्ति में मूल्य संकेत

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वियतनाम के इस खेत में भिन्न चीज़ों को उगाया जा रहा है। किसी चीज़ की कितनी मात्रा उगाई जाए, यह उन चीज़ों के मूल्य संकेत से पता चलता है।

बाज़ार में अनाज का मूल्य (कीमत) उत्पादकों के लिए एक संकेत जैसा काम करता है। जब मूल्य बढ़ता है तो कुछ उत्पादकों को संकेत मिलता है कि अब उन्हें भी अनाज उगाना चाहिए। अर्थव्यवस्था में कीमत की इस संकेत की भूमिका को मूल्य संकेत (price signal) कहा जाता है। इस मूल्य संकेत का अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए अत्यंत महत्त्व है। मान लीजिए कि बाज़ार में किसी समय पर अनाज की कीमत है और उसके अनुसार कुछ भूमि पर अनाज उगाया जाता है। किसी कारणवश अपेक्षा से अधिक वर्षा हो जाती है और जनसंख्या को अपनी खपत के लिए जितना अनाज चाहिए, उसे से अधिक अनाज उगाया जाता है। गोदाम भर जाते हैं और इस कारण से अगले साल कम अनाज उगाया जाना चाहिए ताकि बाज़ार में अनाज की इतनी थोक न हो कि अनाज पड़ा-पड़ा सड़ने लगे। अगर अर्थव्यवस्था मुक्त बाज़ार के सिद्धांतों पर चल रही है, तो अधिक अनाज होने से दाम गिरते हैं। दाम गिरने से कई किसान अनाज नहीं उगाते - इसकी बजाय सम्भव है कि वे सब्ज़ियाँ या कोई अन्य चीज़ उगाएँ। गोदामों में अतिरिक्त अनाज का उपभोग हो जाता है। यानि बाज़ार में उतना ही अनाज आता है, जितने की आवश्यकता है। इस स्थिति को आर्थिक दक्षता (economic efficiency) कहते हैं। मुल्य संकेत में हस्तक्षेप करने से आर्थिक अदक्षता उत्पन्न होती है: विभिन्न उत्पादन गलत मात्राओं में बनने लगते हैं।[4]

इन्हें भी देखें

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  1. Ayers & Collins, Microeconomics (Pearson 2003) at 66.
  2. Rosen, Harvey (2005). Public Finance, p. 545. McGraw-Hill/Irwin, New York. ISBN 0-07-287648-4.
  3. Goodwin, N, Nelson, J; Ackerman, F & Weissskopf, T: Microeconomics in Context 2d ed. Page 83 Sharpe 2009
  4. Boudreaux, Donald J. "Information and Prices". The Concise Encyclopedia of Economics. Library of Economics and Liberty (econlib.org). अभिगमन तिथि 18 June 2017.