आर्थर शोपेनहावर

जर्मन दार्शनिक

आर्थर शोपेनहावर (जर्मन: Arthur Schopenhauer, German pronunciation: [ˈaʁtuːɐ̯ ˈʃoːpn̩haʊɐ] ( सुनें)) एक जर्मन दार्शनिक थे। वह अपने 1818 के काम एक इच्छा और एक प्रतिनिधित्व के रूप में विश्व (1844 में विस्तारित) के लिए सबसे अच्छी तरह से जाने जाते हैं, जो अभूतपूर्व जगत को एक अंधे नूमेनल वसीयत के उत्पाद के रूप में दर्शाता है। इमानुएल काण्ट के पारलौकिक आदर्शवाद पर निर्माण करते हुए, शोपेनहावर ने एक नास्तिक आध्यात्मिक और नैतिक प्रणाली विकसित की जिसने जर्मन आदर्शवाद के समकालीन विचारों को ख़ारिज कर दिया। वह भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को साझा करने और पुष्टि करने वाले पाश्चात्य दर्शन के पहले विचारकों में से थे, जैसे कि तपस्या, स्वयं को नकारना, और विश्वरूप में दिखने की धारणा। उनके काम को दार्शनिक निराशावाद की एक अनुकरणीय अभिव्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।

आर्थर शोपेनहावर
जर्मन: Arthur Schopenhauer
आर्थर शोपेनहावर
व्यक्तिगत जानकारी
वृत्तिक जानकारी
हस्ताक्षर

शोपेनहावर पर अन्य विचारकों का प्रभाव

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शोपेनहावर का कहना था कि वे उपनिषदों, कांट एवं प्लेटो से प्रभावित थे। शोपेनहावर के लेखों में भारतीय दर्शन का बारम्बार उल्लेख आता है। वे बुद्ध की शिक्षाओं को मानते थे और स्वयं को बौद्ध धर्मी कहते उनका यहाँ तक कहना था कि यदि ये शिक्षाएँ नहीं होतीं तो उनका दर्शन भी नहीं होता। उपनिषदों के बारे में उन्होने कहा - "मेरे जीवन में उपनिषदों से शान्ति मिली है; उनसे ही मुझे मृत्यु के समय भी शान्ति मिलेगी।"

शोपेनहावर का प्रभाव

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शोपेनहावर का इच्छा का विश्लेषण एवं उनकी मानवी इच्छा एवं प्रेरणाओं पर विचार ने फ्रेडरिक नीत्शे, रिचर्ड वाग्नर, लुड्विग विटिंगस्टीन एवं सैमुएल फ्रायड आदि प्रसिद्ध दार्शनिकों को प्रभावित किया। उनके पश्चवर्ती विचारकों पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा, यद्यपि यह प्रभाव दर्शन की अपेक्षा कला के क्षेत्र में ज्यादा है।

शोपेनहावर ने उपनिषद का लातिन अनुवाद पढ़ा था जो फ़्रान्सीसी लेखक आंकेतिल द्यूपरों (फ़्रांसीसी: Anquetil-Duperron‎) द्वारा दारा शिकोह के फ़ारसी में सिर्र-ए-अकबर (फ़ारसी: سرِ اکبر, अनुवाद. महान् रहस्य) से अनूदित था। वह उपनिषदों के दर्शन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने कहा कि उपनिषदों ने मानव का सर्वोच्च ज्ञान उत्पन्न किया है

It is the most satisfying and elevating reading (with the exception of the original text) which is possible in the world; it has been the solace of my life and will be the solace of my death.

ओप्नेख़त् (जर्मन: Oupnekhat, अनुवाद.उपनिषद्) नामक पुस्तक सदैव उनकी मेज़ पर पड़ी रहती थी और सोने के पूर्व वे उसे अवश्य पढ़ते थे। संस्कृत साहित्य को वह अपनी शताब्दी का सर्वोत्कृष्ट उपहार कहते थे। उन्होने भविष्यवाणी की थी कि उपनिषदों का ज्ञान और दर्शन ही पश्चिम का धर्म बन जायेगा।

अपने दर्शन के कारण शोपेनहावर जानवरों के अधिकार के प्रति बहुत संवेदन्शील हो गये थे।

१८३० एवं १८४० के दशकों में स्वयं शोपेनहावर एवं अन्य यूरोपीय विचारक शोपेनहावर के दर्शन एवं बौद्ध दर्शन (चार परम सत्य) में बहुत एकरूपता पाते थे।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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