आर शंकर

भारत का राजनीतिज्ञ,वह केरल की मुख्य मंत्री है|

आर. शंकर (1909 - 1972) एक राजनेता, प्रशासक, वक्ता, शिक्षाविद्, लेखक और संपादक थे जो संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए थे। केरल राज्य गठन के बाद उन्हें केरल का पहला उपमुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ और बाद में राज्य के मुख्यमंत्री बने।

आर शंकर

पद बहाल
26 सितम्बर 1962 – 10 सितम्बर 1964
राज्यपाल वी वी गिरि
पूर्वा धिकारी Pattom A. Thanu Pillai
उत्तरा धिकारी President's rule

पद बहाल
22 February 1960 – 26 September 1962
मुख्यमंत्री Pattom A.Thanu Pillai
पूर्वा धिकारी Office Established
उत्तरा धिकारी C. H. Mohammed Koya (1981)

जन्म 30 अप्रैल 1909
Puthoor, kollam, Travancore, British India
मृत्यु 7 नवम्बर 1972(1972-11-07) (उम्र 63 वर्ष)
राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगी लक्ष्मीकुट्टयम्मा
बच्चे 2

आर. शंकर का जन्म 30 अप्रैल 1909 को कोल्लम जिले के पुथूर गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा पुथूर प्राइमरी स्कूल में की और बाद में कोट्टाराक्कारा के एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई जारी रखी। 1924 में, उन्होंने रसायन विज्ञान में डिग्री हासिल करने के लिए महाराजा कॉलेज (वर्तमान यूनिवर्सिटी कॉलेज) में प्रवेश लिया।

एक धनी रिश्तेदार द्वारा उनकी शिक्षा के लिए उन्हें आर्थिक रूप से समर्थन दिया गया था, क्योंकि उनके पिता गरीबी के कारण खर्च नहीं उठा सकते थे। 1933 में सरकारी लॉ कॉलेज, तिरुवनंतपुरम में स्थानांतरित होने से पहले उन्होंने थोड़े समय के लिए एक शिक्षक के रूप में भी काम किया।

श्री नारायण धर्म परिपालन (एसएनडीपी) में भूमिका

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शिवगिरी हाई स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में उनकी नियुक्ति हुई और वे वहीं श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) की गतिविधियों से जुड़े। उन्होंने उन दिनों प्रचलित सामाजिक अन्याय, विशेष रूप से पिछड़े वर्ग समुदायों के प्रति दिखाए गए भेदभावपूर्ण रवैये और पिछड़े वर्गों के लिए समान अवसरों के बारे में बात की।

एक शिक्षक और वकील के रूप में सार्वजनिक जीवन शुरू करने के बाद, वे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति आकर्षित हुए और त्रावणकोर राज्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गए।

बाद में, उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कार्य छोड़कर एसएनडीपी योगम में काम करना शुरू कर दिया। एसएनडीपी योगम के साथ 13 वर्षों से अधिक के अपने लंबे जुड़ाव के दौरान, उन्होंने 10 वर्षों तक इसके महासचिव और श्री नारायण ट्रस्ट के अध्यक्ष और प्रमुख के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व में एसएनडीपी योगम ने शिक्षा के क्षेत्र पर जोर दिया और कई शिक्षण संस्थान शुरू किए। एसएनडीपी योगम ने 1953 में अपना स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया। उस समय शंकर महासचिव थे। एक साल तक चलने वाले उत्सव के हिस्से के रूप में उन्होंने कोल्लम में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसे राज्य के इतिहास में 'एसएनडीपी सर्वण जयंती' के रूप में चिह्नित किया गया है।

राजनैतिक सफर

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एक शिक्षक और वकील के रूप में सार्वजनिक जीवन शुरू करने के बाद, वे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति आकर्षित हुए और त्रावणकोर राज्य में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गए। भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्होंने अपना ध्यान कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने पर केंद्रित किया

शंकर त्रावणकोर राज्य (अब केरल) से संविधान सभा के सदस्य चुने गए और साथ ही मताधिकार और परिसीमन आयोग के सदस्य भी बनाए गए । शंकर कांग्रेस से 1948 में त्रावणकोर राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। वे 1949 से 1956 तक त्रावणकोर-कोचीन राज्य विधानसभा के सदस्य भी बने।

उन्होंने 1958 में विमोचना समरम (मुक्ति संघर्ष) के दौरान केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) के अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया। कांग्रेस ने 1960 में आर. शंकर के नेतृत्व में (कांग्रेस + प्रजा सोशलिस्ट पार्टी + इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) के गठबंधन ने चुनाव लड़ा। 114 विधानसभा सदस्यों वाली केरल विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस ने 63 और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 20 तथा इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग ने 11 सीटें जीतीं, गठबंधन ने पूर्ण बहुमत से भी अधिक सीटें जीत कर सभी को चौंका दिया

गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस ने (PSP) के नेता पट्टम ताणु पिल्लै को मुख्यमंत्री बनाया और शंकर गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। (22 फरवरी 1960 - 26 सितंबर 1962) तक पट्टम ताणु पिल्लै ने केरल के मुख्यमंत्री और आर. शंकर उपमुख्यमंत्री के रूप कार्य किया। गठबंधन साथी इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेता के.एम.सेठी साहिब को केरल विधानसभा का स्पीकर नियुक्त किया गया।

जब पट्टम ताणु पिल्लै को पंजाब राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया तो (26 सितंबर 1962 से 10 सितंबर 1962) तक आर. शंकर ने केरल का तीसरे मुख्यमंत्री के रूप नेतृत्व किया। बाद में विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर उन्हें अपने नेतृत्व में सरकार से इस्तीफा देना पड़ा।

उन्होंने वित्त विभाग संभालते हुए कई आर्थिक सुधार किए। उन्होंने 1960 से 1964 तक विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

मार्च 1965 में कांग्रेस ने फिर से आर. शंकर के नेतृत्व में केरल विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार पार्टी को और उन्हें स्वयं अपनी सीट (अत्तिंगल निर्वाचन क्षेत्र) से हार का सामना करना पड़ा। इस प्रकार उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और कोल्लम में वापस आकर एसएनडीपी योगम के लिए शैक्षिक संस्थानों को शुरू करने और लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया। उस समय उन्होंने मुफ्त इलाज के लिए एसएन ट्रस्ट के तहत श्री नारायण चिकित्सा मिशन शुरू किया। मिशन के तहत पहला अस्पताल कोल्लम में शुरू किया गया था, अस्पताल को उनके नाम 'शंकर अस्पताल' के नाम से भी जाना जाता है जो अब एक बहुविशेषज्ञता वाला अस्पताल है।

7 नवंबर 1972 को शंकर का निधन हो गया। श्रद्धांजलि के रूप में, उनके पार्थिव शरीर को अस्पताल परिसर में ही दाह संस्कार भी किया गया।

इन्हें भी देखें

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